पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१३९

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बादामा २४३२ बाधमा हार औषधों में और पकवानों आदि को स्वादिष्ट करने में | बादूना-संज्ञा पुं० [देश॰] एक औज़ार जो घेवर नाम की भी होता है। इसकी एक और जाति होती है जिसका मिठाई बनाने के काम में आता है। यह साँचा चढ़ाने के फल या गिरी करनी होती है। दोनों प्रकार के बादामों कालवृत के समान लोहे या पीतल का बना होता में से एक प्रकार का तेल निकलता है जो औषधों, है । इसे भट्ठी के मुंह पर रखकर उसमें घी भरते और सुगंधियों और छोटी मशीनों के पुरज़ों आदि में डालने पतला मैदा डाल देते हैं। मैदा पक जाने पर उसे के काम में आता है। इस वृक्ष में से एक प्रकार का चीनी की चाशनी में पाग लेते हैं। गोंद भी निकलता है जो फारख से हिंदुस्तान आता और : बाध-संज्ञा पुं० [सं०] (१) बाधा, रुकावट । अड़चन । (२) यहाँ मे युरोप जाता है। वैद्यक में बादाम ( गिरी): पीरा । कष्ट । (३) कठिनता। मुश्किल । (४) अर्थ की गरम, स्निग्ध, वातनाशक, शुक्रवर्द्धक, भारी और सारक . असंगति । मानी का ठीक न बैठना । ध्याधात । जैसे,- माना गया है और इसका तेल मृदुरेधी, बाजीकर, मस्तक जहाँ वाच्यार्थ लेने से अर्थ में बाधा पड़ती है वहाँ लक्षणा रोगनाशक, पित्तनाशक, बातघ्न, हलका, प्रमेहकारक और से अर्थ निकाला जाता है। (५) वह पक्ष जिसमें साध्य शीतल कहा गया है। का अभाव सा हो। (न्याय) बादामा संज्ञा पुं० [फा०] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा। संशा युं० [सं० बद्ध ] [ स्त्री० बाधी ] मूंज की रस्सी । बादामी-वि० [फा० बादाम-नई (प्रत्य॰)] (1) बादाम के छिलके ! बाधक-संशा पुं० [सं०] प्रतिबंधक । रुकावट डालनेवाला । के रंग का । कुछ पीलापन लिए लाल रस का। (२) : रोकनेवाला । किनकर्ता। (२) दुःखदायी। हानिकारक । बादाम के आकार का । अंडाकार । जैसे, बादामी आँख। (३) स्त्रियों का एक रोग जिसमें उन्हें संतति नहीं होती संशा पुं० (१) एक प्रकार का धान । (२) बादाम के । या संतति होने में बड़ी पीड़ा या कठिनता होती है। आकार का एक प्रकार की छोटी डिबिया जिसमें गहने विशेष-वैद्यक के अनुसार चार प्रकार के दोषों से बाधक आदि रखते हैं। (३) वह स्वाजासरा जिसकी द्रिय बहुत रोग होता है-रतमाद्री, यठी, अंकुर और जलकुमार । छोटी हो।(४) एक प्रकार की छोटी चिड़िया जो रक्तमादी में कटि, नाभि, पेड़, आदि में वेदना होती है और पानी के किनारे रहती और मछलियाँ खाती है। किलकिला। ऋतु ठीक समय पर नहीं होता । यष्ठी बाधक में ऋतु- वि० दे० "किलकिला" । (५) शादाम के रंग का काल में आँखों, हथेलियों और पोनि में जलन होती है, घोदा । उ०—लीले लक्खी, लक्ख धोज, बादामी, चीनी । और रक्तस्त्राव लालायुक्त (शाग मिला) होता है तथा -सूदन। ऋतु महीने में दो बार होता है। अंकुर बाधक में ऋतु- बादि-अव्य० [सं० बादि, हिं० वादि--हठ करके ] व्यर्थ । नियोजन । काल में उद्वेग रहता है, शरीर भारी रहता है, रक्तस्राव फिज़ल । नियफल । उ०—सो श्रम बादि बाल कवि करहीं। बहुत होता है। नाभि के नीचे शूल होता है, तीन तीन —तुलसी। चार चार महीने पर ऋतु होता है, हाथ पैर में जलन बादित्य*-संज्ञा पुं० दे० "वादित्य" । रहती है । जलकुमार में शरीर सूज जाता है, बहुत दिनों बादिया-संशा पु० [ देश० ] लुहारों का पेच बनाने का एक में ऋतु हुआ करता है, सो भी यहुत थोड़ा; गर्भ न रहने औज़ार। पर भी गर्भ सा मालूम होता है। इन चारों वाधकों से बादी-वि० [फा०] (1) बात संबंधी । वायु संबंधी। (२) प्रायः गर्भ नहीं रहता। घायुविकार संबंधी । जैसे, बादी बवासीर । (३) वायु | कुपित करनेवाला । बात का विकार उत्पन्न करनेवाला । | बाधन-संज्ञा पुं० [सं०] [वि. बाधित, वाधनीय, बाध्य ] (1) जैसे,—बैंगन बहुत बादी होता है। रुकावट या विघ्न डालना । (२) पीड़ा पहुँचाना । कष्ट संज्ञा स्त्री० शरीरस्य वायु । वात । वातविकार । वायु का देना। दोष । जैसे,—उनका शरीर बादी से फूला है। बाधना-क्रि० स० [सं० बाधन ] (1) बाधा डालना । रुकावट संज्ञा पुं० [सं० वादिन् , बादी ] (1) किसी के विरुद्ध डालना । रोकना । उ०—(क) सुमिरत हरिहि सापगति अभियोग लानेवाला । मुधई । (२) प्रतिद्वन्द्वी। शत्रु । बाधी। सहज त्रिमल मन लागि समाधी । तुलसी। बैरी । विशेष-दे. "वादी"। (३) राग में प्रधान रूप से (ख) देखत ही आधे पल बाधी जात बाधा सब राधाजू लगनेवाला स्वर जिसके कारण राग शुद्ध होता है। की रसना सुरूप की सी रानी है। केशव । (२) विन संशा पुं० [देश॰] लुहारों का सिकली करने का औज़ार' करना। बाधा डालना । उ.--(क) काम सुभासुभ बादुर-संज्ञा पुं० [ देश० ] चमगादड़। चमचटक । तुमहिन बाधा । अब लगि तुमहि न काहू साधा।-