पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१४०

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बाधा २४३३ बाना तुलसी । (ख) दुख सुख ये बाधै जेहि नाही तेहि तुम छरियाँ भी बनती है। पतियाँ और छाल धमदे सिमाने के जानौ ज्ञानी। नानक मुकुत ताहि तुम मानौ यहि बिधि काम आती है। को जो प्राणी। संज्ञा पुं० [सं० बाण ] (1) बाण । तीर । (२) एक प्रकार बाधा-संक्षा बी० [सं० ] (1) विघ्न । रुकावट । रोक । अदाचन । की आतशबाज़ी जो तीर के आकार की होती है। इसमें उ.-द्विज भोजन मख होम सराधा । सब के जाइ करहु आग लगते ही यह आफाश की ओर बढ़े वेग से छूट जाती तुम यात्रा -तुलसी। है। (३) समुद्र या नवी की ऊँची लहर । (४) वह गुंबद- क्रि०प्र०-आना ।----करना ।—होना । दार छोटा टंडा जिससे धुनकी (कमान) की ताँत को झटका मुहा०---बाधा डालना या देना-रुकावट खड़ी करना। देकर रूई धुनते हैं। विघ्न उपस्थित करना । वाधा पड़ना-रुकावट खड़ी होना । संश स्त्री० [हिं० बनना ] (१) बनावट । सजधज । वेश- विन्न उपस्थित होना । बाधा पहुँचना-दे० 'बाधा विन्यास । (२) टेव । आदत । अभ्यास । पड़ना'। क्रि०प्र०-डालना।-पड़ना ।—लगना । (२) संकट । कष्ट । दुःख । पीना । उ०-(क) क्षुधा संज्ञा पुं० [सं० वर्ण ] रंग। आच । कांति । उ०—कनकहि व्याधि धाधा भा भारी। वेदन नहिं जानै महतारी !-- बान चदै जिमि दाहे । तिमि प्रियतम पद नेम निबाहे।- तुलमी। (ख) मेरी भव बाधा हरौ राधा नागरि सोह। जा तन की झाई परे स्याम हरित दुति होइ । —बिहारो। बानइता-वि० [हिं० बाना ] याना चलाने वा खेलनेवाला । दे. (३) भय । डर । आशंका । उ०—(क) मारेसि निसिचर "बानत"। केहि अपराधा । कहु सठ तोहि न प्रान कै बाधा ।-तुलसी। वि० [हिं० वाण ] (१) बाण चलानेवाला । उ०-रोपे (ख) आजुही प्रात इक चरित देक्यो नयो तबहि ते मोहि रन रावन बुलाए बीर धानइत जानत जे रीति सय सुजुग यह भई बाधा ।-सूर । समाज की 1-तुलसी । (२) योद्वा । वीर । बहादुर । बाधित-वि० [सं०] (१) जो रोका गया हो। बाधायुक्त। उ०-लोकपाल महिगल बान बानत दसानन सके न (२) जिसके साधन में रुकावट पड़ी हो। (३) जिसके सिद्ध चाप चढ़ाई।-तुलसी। या प्रमाणित होने में रुकावट हो । जो तर्क से ठीक न थानक-संज्ञा स्त्री० [हिं० बनाना ] (1) वेष । भेस । सजधज । हो । असंगत । (३) अम्त । गृहीत । प्रभावहीन । जैसे, उ०—(क) सोभा भरे स्यामहि पै सोहै। बलि बलि व्याकरण में वह सूत्र जो किसी अपवाद या बाधक सूत्र जाउँ छबीले मुख की या पटतर को को है ?। या बानक के कारण किसी स्थल विशेष में न लगता हो। उपमा देबे को सुकवि कहा टकटो है ? देखत अंग थके मन बाधिर्य-संज्ञा पुं॰ [सं० ] बहिरापन। में शशि कोटि मदन छवि मोहै। --सूर। (ख) आपने बाधी-संज्ञा पुं० [सं० पापिन् ] बाधा करनेवाला । अपाने थल, आपने अपाने साज आपनी अपानी बर बानक बाध्य-वि० [सं०] (1) जो रोका या दवाया जानेवाला हो बनाइये । -तुलसी। (२) एक प्रकार का रेशम जो पीला (२) विवश किया जानेवाला । मजबूर होनेवाला । या सफेद होता है। यह तेहुरी से कुछ घटिया होता है और बान-संज्ञा पुं० [दे० ] (1) शालि वा जबहन को रोपने के रामपुर-हाट बंगाल से आता है। समय उतनी पेड़ियाँ जो एक साथ लेकर एक थान में बानगी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बयाना+गी (प्रत्य॰)] किसी माल का रोपी जाती है। जबहन के खेत में रोपी हुई धान वह अंश जो ग्राहक को देखने के लिए निकाल कर दिया की जूरी। वा भेजा जाय। क्रि० प्र०--बैठाना ।--रोपना। वानरी-संज्ञा पुं० [सं० यानर ) [स्त्री० वानरी] बंदर । (२) एक पेड़ जो अफगानिस्तान में तथा हिमालय में | बानवे-वि० [सं० द्विनवति, प्रा. बाणवइ ] जो गिनती में नब्बे से आसाम तक सात हज़ार से नौ हजार फुट की ऊँचाई तक दो अधिक हो। दो ऊपर नब्बे। होता है । इसके पेड़ बहुत ऊँचे होते हैं और यद्यपि इसका संज्ञा पुं० नब्बे से दो अधिक की संख्या या अंक जो इस पतझाद नहीं होता तो भी वसंत ऋतु में इसकी पत्तियाँ प्रकार लिखा जाता है-५२। रंग बदलती है। इसकी लफडी भीतर से ललाई लिए बाना-संज्ञा पुं० [हिं० बनाना वा सं० वर्ण-रूप ] (1) पहनावा । सफेद रंग की होती है और बहुत मजबूत होती है। इसका पत्र । पोशाक । वेशविन्यास । भेस । उ०—(क) बाना वज़न प्रतिघन फुट तीस सेर तक होता है और यह पर पहिरे सिंह का चले भैग की लार । बोली बोले स्यार और खेती के सामान बनाने में काम आती है। इसकी। की कुत्ता खाए फार ।-कबीर । (ख) विविध भौति फूले