पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१४३

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बाबिल २४३६ बाय करी बैरी हुन कराहि चंद्रबदन मृगलोचनी याषा कहि! होता है। इसके फूल को तेल में डालकर एक तेल कहि जाहि।—केशव । (५) एक संबोधन जिसका व्यव बनाया जाता है जिसे "बाबूने का तेल" कहते हैं। यह हार साधु फाकीर करते हैं। जैसे,—भला हो, बाया। पेट की पीड़ा शूल और निर्बलता को हटाता है। इसका विशेष-झगड़े या बातचीत में जब कोई बहुत साधु या शांत गरम काढ़ा वमन कराने के लिये दिया जाता है और भाव प्रकट करना चाहता है और दूसरे से न्यायपूर्वक विचार स्त्रियों के मासिक धर्म बंद होने पर भी उपकारी माना करने या शांत होने के लिये कहता है तब वह प्रायः इस । जाता है। शब्द से संबोधन करता है । जैसे,—(क) याबा ! जो कुछ बाभन-संज्ञा पुं० दे० (१) "ब्राह्मण", (२) "भूमिहार"। तुम्हारा मेरे जिम्मे निकलता हो वह मुझसे ले लो। (ख) बाम-वि० दे० "वाम" । एक-अभी यका मादा आ रहा हूँ फिर शहर जाऊँ? संज्ञा पुं० [फा०] (1) अटारी । कोठा । (२) मकान के दूसरा-बाबा ! यह कौन कहता है कि तुम अभी जाओ? ऊपर की छत । घर के ऊपर का सब से ऊँचा भाग । धर संशा पुं० [अ० ] लड़कों के लिये प्यार का शब्द । की चोटी। उ०—तूर पर जैसे किसी वक्त में चमकै थी बाबिल-संज्ञा पुं० [ बाबुल ] एशिया खंड का एक अत्यंत प्राचीन झलक । कुछ सरेबाम मे वैसाही उजाला निकला।- नगर जो फ़ारस के पश्चिम फरात नदी के किनारे था। नज़ीर । (३) साढ़े तीन हाथ का एक मान । पुरसा। ३००० वर्ष पूर्व यह एक अत्यंत सभ्य और प्रतापी जाति । संज्ञा स्त्री० [सं० आह्मी ] एक मछली जो देखने में साँप की राजधानी था और उस समय सब से बड़ा नगर गिना सी पतली गोल और लंबी होती है। इसकी पीठ पर काँटा जाता था। होता है। यह खाने में स्वादिष्ट होती है और इसमें केवल बाथी* -संज्ञा स्त्री० [हिं० बाबा ] (1) साधु स्त्री। संन्यासिन : एक ही काँटा होता है। उ.-कामी से कुत्ता भला ऋतु सिर खोले काँच । राम संज्ञा स्त्री० (१) दे. "वामा"। (२) स्त्रियों का एक गहना नाम जाना नहीं बाबी जाय न बाँच।-कधीर । (२) जिसे वे कानों में पहनती हैं। लड़कियों के लिये प्यार का शब्द । बामदेव-संशा पुं० दे. "वामदेव"। बाबना-संज्ञा पुं० [देश॰] पीले रंग का एक पक्षी जिसकी आँख बामन-संज्ञा पुं० दे. "वामन"। के ऊपर का रंग सफेद, चोंच काली और आँखें लाल | बामा-संज्ञा स्त्री० दे. "वामा"। होती हैं। बामो-संज्ञा स्त्री० दे. "बाबी"। बाबुल-संज्ञा पुं० [हिं० बाबू] (1) बान् । उ०-घरही में बावुल ! : ग्रामन-संज्ञा पुं० दे. "ब्राह्मण" । बादी रारि । अंग उठि उठि लागै चपल नारि ।—कबीर । । बाय-वि० [सं० वाम ] (१) बायाँ । (२) खाली। चूका हुआ। (२) दे. "बाबिल"। दार्च या लक्ष्य पर न बैठा हुआ। बाबू-संश पुं० [हिं० बाप वा बावा ] (१) राजा के नीचे उनके मुहा०-बाय देना (१) बना जाना। छोड़ना । (२) तरह बंधु बांधवों या और क्षत्रिय ज़मीदारों के लिए प्रयुक्त शब्द। देना । कुछ ध्यान न देना । (३) फेरा देना । चक्कर देना । (२) एक आदर-सूचक शब्द । भलामानुस । 30-निंदक न्हाय गहन कुरुवेत । अरपै नारि सिँगार विशेषआजकल अँगरेज़ी पढ़े लिखे लोगों के लिये इस समेत । चौंसठ कृऔं बायें दिवावे । तौ भी निंदक नरकहि शब्द का व्यवहार अधिक होता है। उ०-(क) बाबू ऐसी जावे ।-कबीर। है संसार तुम्हारा ये कलि है व्यवहारा । को अब अनख बायो*-संशा स्त्री० [सं० वायु ] (१) वायु । हवा । उ०—(क) सहै प्रति दिन को नाहिन रहनि हमारा। कबीर । (ख) एक धान बेग ही उड़ाने जातुधान जात सूखि गये गात है 'आयसु आदेश, बाबू (?) भलो भलो भाव सिन्ध' तुलसी पतौआ भये बाय के।-तुलसी। (ख) हित करि तुम बिचारि जोगी कहत पुकारि है।-तुलसी। पठयो लगे वा बिजना की बाय । टरी तपन तन की तऊ 1(३) पिता का संबोधन । चली पसीना न्हाय ।-बिहारी । (२) बाई। बात का बाबूड़ा-संशा पुं० [हिं० बाबू+ड़ा (प्रत्य॰)] "बाबू" के लिये : कोप जो प्रायः सनिपात होने पर होता है और जिसमें हास्य, य्यम्य या घृणासूचक शब्द । लांग बकते झकते हैं। उ०—जीवनजुर जुबती कुपथ्य करि बाबूना-संशा पुं० [फा० ] एक छोटा पौधा जो युरोप और फारस भयो त्रिदोष भरि मदन बाय । —तुलसी । में होता है। इसको पंजाब में भी बोते है। इसका सूखा संज्ञा स्त्री० [सं० वापी ] बाउली। बेहर । उ०—अति फूल बाजारों में मिलता है और सफेद रंग का होता है। अगाध अति औथरी नदी कूप सर याय । सो ताक सागर इसमें एक प्रकार की गंध होती है और इसका स्वाद कबुवा । जहाँ जाकी प्यास बुझाय।-बिहारी ।