पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१४६

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बारनिश २४३९ बारहवानी रोकना । उ०—लिग्वि सों बात सग्विन सों कही। यही ठाँव .. बाटा ।-सुलसी । बारह बाट जाना(२) तितर बितर होना । हौं बारति रही।—जायसी । छिन्न भिन्न होना । उ.-मन बदले भवसिंधु ते बहुत लगाये कि० स० [हिं० अरना ] बालना। जलाना । प्रज्वलित : चाट । मनही के घाले गये वहि धर बारह बाट।-सनिधि । करना । उ.--(क) साँझ सकार दिया लै बारग्वसम (२) नष्ट भ्रष्ट होना । 30-(क) लंक असुभ चरचा चलति छोनि सुमिरै लगवारे। कबीर । (ख) करि शृंगार सघन हाट बाट घर घाट । रावन महित समान अव जाहि कुंजन में निसि दिन करत विहार । नीराजन बहु विधि बारह बाट ।–तुलम्पी । (ग्व) राज करत बिनु कान्हीं बारति है ललितादिक व जनार ।---सूर । (ग) मार सुमार ठटहिं जे ठार कुठाट । तुलसी ते कुरुराज ज्यों जैहैं बारह करी खरी अरी मरीहि न मारि । सी च गुलाब घरी घरी बाट ।-तुलसी । बारह बाट होना-- तितर बितर अरी घरी हि न धारि।--बिहारी। होना । नष्ट होना । उ०—प्रथम एक जे ही किया भया क्रि० स० दे० "वारना"। सो बारह बाट। कसत कसौटी ना टिका पीतर भया बारनिश-मक्षा त्री० [ 9 ] फेरा हुआ रोगन या चमकीला रंग। निराट । कबीर। जैसे, बारनिशदार जूता, कुरसिथों पर यारनिश करना । संज्ञा पुं० (१) बारह की संख्या । (२) बारह का अंक जो मुहा०-बारनिश करना=गेरान या समक.ला रंग चढ़ाना । इस प्रकार लिखा जाता है-१२। बारबँटाई-संशा स्त्री० [फा० बार-बोस+हिं० बांटना ] वह विभाग बारहखड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० द्वादश+अक्षर। it० थारह+वी ] जो फसल का दाने के पहले किया जाय । बोप्रवटाई। वर्णमाला का वह अंश जिसमें प्रत्येक ग्रंजन में अ, बारबधू*-संशा . [ सं० वारवधू ] वेश्या । उ.- आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं और अ: इन बारह (क) नाम अजामिल से खल तारन तारन बारन बारवधू स्वरों को, मात्रा के रूप में लगाकर बोलते या लिखते हैं। को।-तुलनी । (ग्व) कहुँ गोदान करत कहुँ देखे कहुँ कछु बारहदरी-संशा स्त्री० [हिं० बारह-+फा० दर-दरवाना ] चारों सुनत पुरान। कहुँ नर्तत सब बारबधू औ कहुँ गधरब गुनगान । ओर से म्युली वह हवादार बैठक जिसमें बारह द्वार हों। --सूर । (ग) जनु अति नील अलकिया बंसी लाइ । मो उ०-बारहदरीन बीच धारह तरफ़ तैपो बरफ़ बिछाय मन बारबधुअवा मीन बशाइ।रहीम । तापै सीतल सुगटी है।—पमाकर । बारबधूटी-संज्ञा स्त्री० [सं० वारवधूटं। ) वेश्या । उ०—स्यों न विशेष-बारह दरवाजों से कम की बैठक भी यदि चारों ओर कर करतार उबारक ज्यां चितवै वह बारवधूटी। केशव । खुली और हवादार हो तो बारहरी कहलाती है। इसमें बारबरदार-संज्ञा पुं० [फा०] वह जो सामान आदि ढोने का अधिकतर खंभे होते हैं, दरवाज़े नहीं होते। काम करता हो । बोझा ढोनेवाला । बारहपत्थर-संज्ञा पुं० [हिं० बारह+पत्थर ] (१) वह पत्थर बारवरदारी-सशास्त्रा० [ 10 ] (१) सामग्री आदि ढोने की; जो छावनी की सरहद पर गाड़ा जाता है । सीमा। किया। सामान ढोने का काम (२) सामान ढोने की (२) छावनी। मज़दूरी। मुहा०-बारह पत्थर बाहर करना-निकालना । मीमा बाहर बारमुखो-संशा बी० [सं०वारमुग्थ्या] वेया। उ०—(क) बारमुखी करना । लई संग मानो वाही रंग रंगे जानो यह बात करी डर बारहबान-संज्ञा पुं० [सं० द्वादशवर्ण ] एक प्रकार का मोना जो अति भीर की।-प्रियादास । (ख) बारमुखी मुनिवर बहुत अच्छा होता है। बारहबानी का सोना। विलोकि के करत चली कल गाने । घुराज। बारहबाना-वि० [सं० द्वादशवर्ण] (1) सूर्य के समान बारवा-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] एक रागिनी जिसे कुछ लोग श्रीराग . दमकवाला । (२) खरा । चोखा । (सोने के लिये ) की पुत्रवधू मानते हैं। उ०-सूरदास प्रभु हम हैं खोटी तुम तो बारह बाने बारह-वि० [सं० द्वादश, प्रा. वारस, अप० बारह ] [वि. बारहवा ] | हो।-सूर । विशेष—दे."बारहबानी"। जो संख्या में दस और दो हो। उ.---जहँ बारह मास बसंत ' बारहबानी-वि० [सं० द्वादश (आदित्य)+वर्ण, पा० बारम वण ] होय । परमारथ बृझै बिरल कोय ।-कवीर । (१) सूर्य के समान दमकवाला । (२) खरा । पोग्वा । मुहा०-बारह पानी का बारह बरस का मूअर । बारह बच्चे- । (सोने के लिये)। उ०—(क) सोहत लोह परमि पारस वाली सूअरी। बारह बाट करना=तितर बितर वा छिन्न | ज्यों सुबरन बारहवानि ।--सूर । (ख) सिंघल दीप मह भिन्न करना । इधर उधर कर देना । बारह बाट घालना जेती रानी । तिन्ह महँ दीपक बारहबानी।--जायसी । छिन्न भिन्न करना । तितर बितर वा नष्ट भ्रट करना । उ०-- (३) निर्दोष । सच्चा । जिसमें कोई बुराई न हो। पाप- मोहि लगि यह कुठाट तेहि ठाटाघाळेसि सब जग बाहर रहित । (५) जिसमें कुछ कसर न हो। पूरा । पूर्ण ।