पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१४७

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बारहमासा २४४० बारिगर -. पका। उ०—है वह सब गुन बारहबानी । ए सखि ! मुहा०—बारे ते =जब बालक रहा हो तभी से । बचपन से । साजन, ना सखि, पानी । खुसरो । बाल्यावस्था से । उ०—(क) बुझति है रुक्मिनि, पिय, इनमें संज्ञा स्त्री सूर्य की सी दमक । चोखी चमक । जैसे, को वृषभानु किसोरी । नेकु हमें दिखरावी अपनी बालापन वारहबानी का मोना। की जोरी। परम चतुर जिन कीन्हें मोहन अल्प बैस ही बारहमासा-मंज्ञा पुं० [हिं० बारह+मास ] वह पथ या गीत . थोरी । बारे ते जिन यह पढ़ायो बुधि, बल, कल विधि जिसमें बारह महीनों की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन चोरी -सूर । (ख) थारेहि ते निज हित पति जानी। किसी विरही या विरहिनी के मुँह से कराया गया हो।। लछिमन राम चरन रति मानी।तुलसी। बारहमासी-वि० [हिं० बारह-+मास ] (1) जिसमें बारहो महीनों संज्ञा पुं० यालक । लड़का। में फल फूल लगा करते हों। सब ऋतुओं में फलने फूलने संशा पुं० [ फा . बाला- ऊँचा ] लोहे की कैंगनी जो बेलन वाला । सदाबहार । सदाफल । जैसे, बारहमासी आम, के सिरे पर लगाई जाती है और जिसके फिरने से बेलन बारहमासी गुलाब। (२) बारहों महीने होनेवाला । उ० फिरता है। कुवजा कान्ह दोउ मिलि खेलें बारहमासी फाग।-सूर । संज्ञा पुं० [हिं० बार ] वह दृध जो चरवाहा चौपाए को बारहवतात-संज्ञा पुं० [हिं० वारह अ० वफात ] अरबी महीने . चराने के बदले में आठवें दिन पाता है। रस्त्री-उल-अव्वल की ये बारह तिथियाँ जिनमें, मुसलमानों . संज्ञा पुं० [?] (1) एक गीत जिसे कुएँ से मोट खींचते के विश्वास के अनुसार, महम्मद साहेब बीमार पड़कर : समय गाते हैं । (२) वह आदमी जो कुएँ पर खड़ा होकर भरकर निकले हुए चरमे वा मोट का पानी उलटकर बारहवाँ-वि० [F. बारह ] [ स्त्रीबारच। ] जो स्थान में गिराता है । (३) जनरे से तार खींचने का काम ।। ग्यारहवें के बाद हो। जैसे, यारहवाँ दिन, बारहवीं तिथि, बारात-संशा बी० [सं० परयात्रा, प्रा० बरयत्ता] (१) किसी के बारहवाँ महीना इत्यादि। विवाह में उसके घर के लोगों, संबंधियों, इष्ट मित्रों का वारहसिंगा-संज्ञा पुं० [हिं० बारह+सांग ] हिरन की जाति का मिलकर बधू के घर जाना । वरयात्रा । (२) वह समाज जो एक पशु जो तीन चार फुट ऊँचा और सात आठ फुट लंबा : वर के साथ उसे ज्याहने के लिये सजकर वधू के घर जाता है। होता है। नर के सींगों में कई शाखाएँ निकलती हैं, इसी से क्रि० प्र०—निकलना । —सजना । "बारहसिंगा" नाम पड़ा । और चौपायों के सींगों के मुहा०—बारात उठना-बारात का प्रस्थान करना । समान इसके सींगों पर कड़ा आवरण नहीं होता, कोमल | बारादरी-संज्ञा स्त्री० दे० "बारहदरी"। चमड़ा होता है जिस पर नरम महीन रोएँ होते हैं। इसके बारानी-वि० [फा०] बरसाती। सींग का आवरण प्रति वर्ष फागुन चैत में उतरता है। संज्ञा स्त्री० (१) वह भूमि जिसमें केवल बरसात के पानी से आवरण उतरने पर मांग में से एक नई शाखा का अंकुर फसल उत्पन्न होती है और सींचने की आवश्यकता नहीं दिखाई पड़ता है। इस प्रकार हर साल एक नई शाखा पड़ती है। (२) वह फसल जो बरसात के पानी से बिना निकलती है जो कुआर कातिक तक पूरी बढ़ जाती है। सिंचाई किये उत्पन्न होती हो। (३) वह कपदा जो पानी मादा जिसे सींग नहीं होते, चैत बैसाख में बचा देती है। से बचने के लिये बरसात में पहना वा ओढा जाता हो। बारहों-वि० दे० "बारहवाँ"। यह उन को जमाकर या सूती कपड़े पर मोम आदि लपेटकर बारहीं-संज्ञा स्त्री० [हिं० बारहाँ ] बच्चे के जन्म से बारहवाँ दिन, बनाया जाता है। जिसमें उत्सव आदि किया जाता है। बरही । उ०-छठी बारही बारामीटर-संज्ञा पुं० दे० 'बैरोमीटर"। लोक वेद विधि करि सुविधान विधानी।-तुलसी। बाराह*-संशा पुं० दे० "वाराह"। बारहों-संज्ञा पुं० [हिं० वारह ] (१) किसी मनुष्य के मरने के बाराहीकंद-संज्ञा स्त्री० दे० "वाराहीकंद"। दिन से बारहवाँ दिन । बारहवाँ, द्वादशाह । (२) कन्या या : बारि*-संज्ञा पुं० दे० "वारि"। पुत्र के जन्म से बारहवाँ दिन । इस दिन कुल-व्यवहार के : संज्ञा स्त्री० दे० "बारी"। अनुसार अनेक प्रकार की पूजा होती है। बहुसों के यहाँ बारिक-संज्ञा पुं० [अ० बारक ] ऐसे बैंगलों या मकानों की श्रेणी इसी दिन नामकरण भी होता है। बरही।

या समूह जिनमें फ़ौज के सिपाही रहते हैं। छावनी ।

बारा-वि० [सं० बाल ] बालक । जो सयाना न हो। जिसकी वारिक-मास्टर-संज्ञा पुं० [90 ] वह प्रधान कर्मचारी जो बारिक बाल्यावस्था हो। - की देखभाल और प्रबंध करता हो। यौ-नन्हा बारा। वारिगर*-संज्ञा पुं० [हिं० बारी+गर ] हथियारों पर बाद रखने-