पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१५१

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बालचर्य बाला --- -- ये कुछ विशिष्ट रोग ही है जो ग्रहों के रूप में मान लिए । बालभद्रक-संशा पुं० [सं०] एक प्रकार का विष जिसे शांभव भी कहते है। बालचर्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) बालकों की चर्या । (२) कार्तिकेय । : बालभोग-संशा पुं० [सं०] (1) यह नैवेच जो देवताओं, विशे- बालछड़-मंशा स्त्री० [देश॰ ] जटामासी । षतः बालकृष्ण आदि की मूर्तियों के सामने प्रातःकाल बालटी-संशा स्त्री० [ अं. बंकट ] एक प्रकार की होलची जिसका ' रखा जाता है। (२) जल-पान । कलेवा । नाश्ता । पैदा चिपटा और जिसका घेरा नीचे की ओर सँकरा और बालभाज्य-संश पुं० [सं०] चना। ऊपर की और अधिक चौड़ा होता है। इसमें ऊपर की ओर बालभैषज्य-संशा पुं० [सं०] रसांजन । उठाने के लिये एक दम्ता भी लगा रहता है। बालम-संज्ञा पुं० [सं० वल्लभ ] (1) पति । स्वामी। (२) बालतंत्र-संज्ञा पुं० [सं० ] बालकों के लालनपालन आदि की प्रणयी। प्रेमी । जार। विद्या । कौमारभृत्य । दायागिरी। बालमत्स्य-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार की छोटी मछली जिसके बालतनय-संज्ञा पुं० [सं०] खैर का पेड़ । ऊपर छिलका नहीं होता। इसका मांस पथ्य और बर- बालदा-संज्ञा पुं० [सं० बलद ] बैल । कारक माना जाता है। बालदलक-संज्ञा पुं० [सं०] खैर का पेड़। बालमुकुंद-संशा पुं० [सं०] (9) बाल्यावस्था के श्रीकृष्ण । बालधि-संज्ञा पुं० सं०] दुम । पूँछ। उ०-कानन दलि! (२) श्रीकृष्ण की शिशुकाल की वह मूर्ति जिसमें वे घुटनों होरी रचि बनाइ । हठि तेल बसन बालधि बँधाइ। के बल चलते हुए दिखाए जाते हैं। तुलसी। । बालमूलक-संशा पुं० [सं०] छोटी और कश्ची मूली जो वैधक बालधी-संज्ञा स्त्री० [सं० बालधि ] पूँछ । दुम । के अनुसार कटु, उष्ण, तिक, तीक्ष्ण तथा श्वास, अर्श, बालना-क्रि० स० [सं० ज्वलन] (१) जलाना । जैसे, आग | क्षय और नेत्र रोग आदि की नाशक, पाचक, तथा बलवर्धक बालना । (२) रोशन करना। प्रज्वलित करना । जैसे, मानी जाती है। दीआ बालना। बालमूलिका-संशा स्त्री० [सं० ] आम का पेड़। बालपत्र-संशा पुं० [सं०] (१) खैर का पेड़। (२) जबासा। बालरस-संज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार की औषध बालपन-संज्ञा पुं० [सं० बाल+पन (प्रत्य॰)] (१) बालक जो पारे, गंधक और सोनामक्खी से बनाई जाती और होने का भाव। (२) बालक होने की अवस्था । लड़कान। बालकों को पुराने ज्वर, खाँसी और शूल आदि में दी बचपन। जाती है। बालपाश्या-संशा स्त्री० [सं०] सिर के बालों में पहनने का | बालराज-संज्ञा पुं० [सं०] वैतूर्य मणि । प्राचीन काल का एक प्रकार का आभूषण । बाललीला-संज्ञा स्त्री० [सं०] बालकों के खेल । बालकों बालपुष्पी-संज्ञा स्त्री० [सं०] जूही। की कीड़ा। बालबच्चे-संशा पुं० [सं० बाल+हि ० बच्चा ] लड़केघाले।संतान। बालव-संज्ञा पुं० [सं०] फलित ज्योतिष के अनुसार दूसरा औलाद। करण जिसमें शुभ कर्म करना वर्जित नहीं है। कहते हैं बालविधवा-संशा स्त्री० [सं०] वह स्त्री जो बाल्यावस्था ही में । कि इस करण में जिसका जन्म होता है, वह बहुत कार्य- विधवा हो गई हो। कुशल, अपने परिवार के लोगों का पालन करनेवाला, कुल. बालविवाह-संवा पुं० [सं०] वह विवाह जो बाल्यावस्था में ही शील-संपन, उदार तथा बलवान होता है । दे."करण"। हो। छोटी अवस्था में होनेवाला विवाह । बालवत्स्य -संश पु० [सं० ] कबूतर । बालपद्धि-संज्ञा स्त्री० [सं०] बालकों की सी बुद्धि। छोटी बालविधु-संज्ञा पुं० [सं०] अमावास्या के पीछे का नया चंद्रमा । बुद्धि । थोड़ी अल शुक्ल पक्ष की द्वितीया का चंद्रमा । वि० जिसकी बुन्डूि बच्चों की सी हो। बहुत ही थोड़ी बुद्धि- बालच्यजन-संज्ञा पुं० [सं०] चामर । चवर। वाला । मंदबुद्धि । बालवत-संज्ञा पुं० [सं० ] मंजुश्री या मंजुघोष का एक नाम । बालबोध-संज्ञा स्त्री० [सं० ] देवनागरी लिपि । बालसाँगड़ा, बालसिंगड़ा-संज्ञा पुं० [सं० बाल शृंखला ] कुश्ती वि. जो बालकों की समझ में भी आ जाय। बहुत सहज का एक च।। बालब्रह्मचारी-संज्ञा पुं० [सं० ] वह जिसने बाल्यावस्था से ही बालसूर्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) उदयकाल के सूर्य । प्रात:काल ब्रह्मचर्य-प्रत धारण किया हो। बहुत ही छोटी उम्र से | के, उगते हुए सूर्य । (२) वैदूर्य मणि । ब्रह्मचर्य रखनेवाला। बाला-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) युवतीसी । जवान सी । बारह-