पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१५५

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मासकर्णी बासु उ०—तिय के सम दूजो नहीं मुख सोई त्रिरेख लिख्यो बासर-संज्ञा पुं० [सं० वासर ] (1) दिन । (२) सवेरा । प्रात: विधि बास धरे।-सेवकस्याम । काल । सुबह । (३) वह राग जो सबेरे गाया जाता है। संज्ञा स्त्री० [सं० वाशिः] (1) अग्नि । आग। (२) एक जैसे, प्रभाती, भैरवी इत्यादि । उ.-सर सो प्रतियासर प्रकार का अन । उ.-गिरधरदास तीर तुपक समंचा वासर लागै। तन घाव नहीं मन प्राणन खाँगै ।---केशव । लिए लरै बहु भाँति वास धार बरसे अखंड-गिरधर । बासव-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्र। (३) सेज़ धारवाली छुरी, चाक, कैंची इत्यादि छोटे छोटे बासवी-संज्ञा पुं० [सं० वासवि ] अर्जुन । (हिं.) शस्त्र जो रण में तोपों में भर कर फेंके जाते हैं। बासवीदिशा-संज्ञा पुं० [सं०] पूर्व दिशा, जो इंद्र की दिशा संशा पुं० [देश. एक वृक्ष जो बहुत ऊँचा होता है और मानी जाती है। जिसकी लकदी रंग में लाली लिए काली और इतनी बाससी-संज्ञा पुं० [सं०] कपड़ा । वस्त्र उ.-सूल तेल बोरि मजबूत होती है कि साधारण कुरुहाड़ियों से नहीं कट घोरि जोरि जोरि बाससी । लै अपार सर ऊन दून सूत सकती। यह लकड़ी पलंग के पाये और दूसरे सजावटी सों कसी। केशव । सामान बनाने के काम में आती है। इसमें बहुत ही सुगं-बासा-संज्ञा पुं० [देश॰] (1) एक प्रकार का पक्षी। (२) धित फूल लगते हैं और गोंद निकलता है जो कई कामों अब या। में आता है। पहाड़ों में यह वृक्ष ३००० फुट की उँचाई संज्ञा पुं० [हिं० बॉस ] एक प्रकार की घास जो आकार तक होता है। विपरसा। में बाँस के पत्तों के समान होती है। यह पशुओं को बासकाणी-संत्रा स्त्री० [सं० ] यज्ञशाला। खिलाई जाती है। वासकसज्जा-संशा स्त्री० [सं० } वह नायिका जो अपने पति या संज्ञा पु० दे० "बास"। प्रियतम के आने के समय केलि सामग्री सज्जित करे। संज्ञा पुं० दे. "पियाबाब"। नायक के आने के समय उससे मिलने की तैयारी करने-बामिन-वि० [सं० बामित ] सुगंधित किया हुआ। वाली नायिका। | बासिष्ठी-संज्ञा सी० [सं० वशिघ्र | बनास नदी का एक नाम । बासठ-वि० [सं० विपष्ठि, प्रा० दाहि, बासद्धि | माठ और दो। ऐसा माना जाता है कि यसिष्ठजी के तप-प्रभाव से ही यह इकतीस का दूना । नदी प्रकट हुई थी। संज्ञा पु० माठ और दो की संख्या या उपको सूचित करने- | बासी-वि० [सं० बामर या बामगंध ] (1) देर का बना हुआ। वाला अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है—६२। जो ताज़ा न हो। (खाद्य पदार्थ) जिसे तैयार हुए अधिक बासठपाँ-वि० [सं० दिपष्टितम, हिं.. वामठ+या (प्रत्य॰) । जो क्रम ममय हो चुका हो और जिम्मका स्वाद विगढ़ चुका हो । में यामठ के स्थान पर हो। गिनती में बासठ के स्थान जैसे, बासी भात, बासी पूरी, बासी मिठाई । (२) जो पर पड़नेवाला। कुछ समय तक रखा रहा हो । जैसे, बासी पानी। (३) वासदेव-संज्ञा पुं० [सं० वाशि:देवं ] अग्नि । आग। (डिंगल)। जो सूखा या कुम्हलाया हुआ हो । जो हरा भरा न हो। संज्ञा पुं० दे. "वासुदेव"। जैसे, यामी फूल, बासी साग। (१) ( फल आदि) जिसे बासन-संशा पु० [सं० ] बरतन । भाँडा । डाल से टूटे हुए अधिक समय बीत चुका हो। जिसे पेड़ से बासना-संज्ञा स्त्री० [सं० बामना J (1) इच्छा । बांछा। चाह । अलग हुए ज़्यादा देर हो गई हो । जैसे, बासी अमरूद, . "वासना" । (२) गंध । महक । ७। उ.-आपु यासी आम भँवर आपुहि कमल आपुहि रंग सुवास । लेत आपुही. मुहा०–बासी कड़ी में उबाल आना=(१) बुढ़ापे मे जवाना बासना आपु लपत सब पाम । -रसनिधि । की उमंग उठना । (२) किसी बात का समय बिलकुल बीत क्रि० स० [सं० बास ] सुगंधित करना । महकाना । सुवा जाने पर उसके संबंध में कोई वासना उत्पन्न होना । (३) अम- सित करना । उ०-- सुमन तिल बासि के अरु खरि मर्थ में सामर्थ्य के लक्षण दिखाई दना । बासी मुंह-(१) जिस परिहरि रख लेत । —सुलसी। मुंह में सबेरे से कोई खाथ पदार्थ न गया हो । जैसे,-बासी बासफूल-संशा पु० [हिं० बास-गंध+फूल] (1) एक प्रकार मुँह दवा पी लेना । (२) जिसने राल के भोजन के उपरांत का धान । (२) इस धान का चावल। फिर प्रातःकाल कुछ भी न खाया हो । जैसे,-मुझे क्या बासमती-संज्ञा पुं० [हिं० बास-महया+मता (प्रत्य॰)] (1) मालूम कि आप अभी तक बासी मुंह हैं। एक प्रकार का धान । (२) इस धान का चावल जो पकाने वि० [सं० वासिन् ] रहनेवाला । बसनेवाला। पर अमन सुगंध देता है। | वासु-संज्ञा स्त्री० दे० "बास"।