पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१६

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फाखता २३०९ फानूस संज्ञा पु० एक रंग का नाम । यह रंग ललाई लिए भूरे रंग का टुकड़ा जो फाड़ने में निकले। (२) दही के ताज़े मक्खन का होता है। आठ माशे वायोलेट को आध सेर मजीठ के की छाँछ जो आग पर तपाने से निकले । काढ़े में मिलाकर इसे बनाते हैं। फाड़ना-कि. म. [ मं० स्फाटन, हिं. फारना ] (1) किती पैनी फारवता-संशा 10 [अ० ] [ वि. फाख्ताई ] पंडुक । धरखा। या नुकीली चीज़ को किसी सतह पर इस प्रकार मारना फाग-संज्ञा पुं० [हिं० फागुन ] (१) फागुन के महीने में होनेवाला या खींचना कि तह का कुछ भाग हट जाय या उपमें उत्पव जिसमें लोग एक दूसरे पर रंग या गुलाल डालते दरार पड़ जायें । धीरना। विदीर्ण करना । जैसे, नावून और वसंतऋतु के गीत गाते हैं। उ-तेहि मिर फूल मे करडे फारना, पेट फायना । उ०-पेट फारि हरनाकुल चदहि जेहि माथे मन भाग । आछंद सदा सुगंध वह जनु मारयो जय नरहरि भगवान |-सूर । वसंत औ फाग।- जायसी। संयो० क्रि०-डालना ।-देना। क्रि० प्र०-खेलना। मुहा०-फाड़ खाना-क्रोध से झल्लाना। विगड़ना। चिड़चिड़ाना । (२) वह गीत जो फाग के उत्स्यव में गाया जाता है। (२) झटके से किसी परत होनेवाली वस्तु का कुछ भाग फागुन-संज्ञा पुं॰ [सं०] शिशिर ऋतु का दूसरा महीना । माघ अलग कर देना । टुकड़े करना। खंड करना। धजियों के बाद का महीना । फाल्गुन । उढ़ाना । जैसे, थान में से कपड़ा फाड़ना, कागज फाइना, विशेष--यथापि इस महीने की गिनती पतझड़ या शिशिर हवा का बादल फादना। में है, पर वसंत का आभास इसमें दिखाई देने लगता है। संयो० कि०-डालना-देना ।---लेना। जैसे, नई पत्तियाँ निकलना आरंभ होना, आमों में मंजरी (३) जुही या मिली हुई वस्तुओं के मिले हुए किनारों को लगना, टेसू फूलना इत्यादि। इस महीने की पूर्णिमा को अलग अलग कर देना । मंधि या जोड़ फैलाकर बोलना। होलिका दहन होता है। यह जानंद का महीना माना जैप, आँग्य फाइना, मुंह फाइना । (४) किसी गाठे द्रव जाता है। इस महीने में जो गीत गाए जाते हैं उन्हें फाग पदार्थ को इस प्रकार करना कि पानी और सार पदार्थ कहते हैं। अलग अलग हो जाय । जैम, (क) बटाई डालकर ध फागुनी--वि० [हिं, फागुन ' फागुन संबंधी । फागुन का । फाइना । (ख) चोट पर लगने से फिटकरी खून फाद फाजिल-वि० [अ० फातिलj (1) अधिक । आवश्यकता ये देती है। ___ अधिक । जरूरत से ज्यादा । खर्च या काम में मचा हुआ। फाणित-मक्षा १० सं० । (१) राय । (२) शीरा । क्रि० प्र०-निकलना । - निकालना । —होना । फातिहा-मा पु० अ०] (१) प्रार्थना। उ.-कबीर काली (२) विद्वान् । सुदरी हाइ बैठी 'अल्लाह । पढे फातहा गैब का हाजिर को फाटक-संज्ञा पुं० [सं० कपाट ] (१) बड़ा द्वार । बड़ा दरवाज़ा । कह नाहि ।—कबीर । (२) वह चड़ावा जो परे हुए तोरण । उ०-चारों ओर तांबे का कोट और पक्की लोगों के नाम पर दिया जाय। उ०-हलवाई की दुकान प्युआन चौड़ी खाई स्फटिक के चार फाटक तिनमें अष्टधाती और दादे का फातिहा। किवाड़ लगे हुए... लल्लू । (२) दरवाजे पर की फानना- 10 | 10 फार ] धुनना । रूई को फटकना । बैठक । (३) मवेशीखाना । कांजी होस । 40 म०म० उपायन | किसी काम को आरंभ करना। संज्ञा पुं० [हिं० फटकना ] फटकन । पछोड़न । भूमी जो अनुष्टाल करना । कोई काम हाथ में लेना । किसी काम में अनाज फटकने से बची हो। उ०—फाटक दै कर, हाटक । हाथ लगा देना। माँगत भोरी निपटहि जानि । मूर। फानृस-संज्ञा पु० । फा. } (1) एक प्रकार का दीपाधार जिसके फाटना-क्रि० अ० दे. "फटना" । उ.-(क) धरती भार न चारों ओर महीन कपड़े या कागज का मंडप सा होता है। अंगव पाँव धरत उठ हाल । कूर्म टूट भुहँ फाटरी तिन हस्तिन . कपड़े या काग़ज़ से मढ़ा हुआ जिरे की शकल का की चाल-जायसी । (म्ब) दूध फाटि घृत दुधे मिला चिरागदान । एक प्रकार की बढ़। कंदील । नाद जो मिला अकास । तन ठूट मन तहँ गया जहाँ धरी विशेष--यह लकड़ी का एक चौकार वा अठपहल ढाँचा मन आएन ।..--कबीर । होता था जिस पर पतला कपड़ा मढ़ा रहता था। इसके फाड़खाऊ-त्रि [.. फाड़+वानः ] (1) फाड़ खानेवाला । भीतर पहले चिरागदान पर चिराय रख कर लोग फरश कटखना । (२) कोधी । विगढ़ल । चिड़चिड़ा । (३) पर रखते थे। उ०-बाल छबीलो तियन में बैठी आप भयानक । घातक। छिपाइ । अरगट ही फानूस मी परगट होति लखाइ ।- फाइन-संज्ञा स्त्री० पु० [हिं० फाइना ) (1) कागज, कपड़े आदि : बिहारी।