पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१६१

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विगाना २४५४ विधनहरन ने रुपए दे देकर उनके लड़के को बिगाड़ दिया। (५) स्त्री कोप मधुकैटभ संभारे अरि ताही ते विगूचे बलराम सों न का सतीत्व नष्ट करना । पातियत्य भंग करना । (६) मेल है। -हृदयराम । स्वभाव ख़राय करना। बुरी आदत लगाना । (७) बह. क्रि० स० [सं० बिकुंचन ] दबोचना । धर दबाना । छोप काना । (4) व्यर्थ व्यय करना । जैसे,-तुप तो यों ही लेना। उ.--लै परनालो सिवा सरजा करनाटक लौं सब अनावश्यक कामों में रुपए बिगाड़ा करते हो। । देस विगूचे । भूषन । बिगाना -वि० { फा० बगाना ] (1) जो अपना न हो। जिसमे ! बिगूतना-क्रि० अ० दे. "थिगूचना"। आपसदारी का कोई संबंध न हो। पराया। गैर। (२) विगांना-क्रि० स० [सं० विगोपन ] (1) नष्ट करना । विनाश अजनबी । अनजान । करना । बिगाड़ना । उ०-(क) सूर सनेह कर जो तुम सों बिगारा-संशा पुं० दे० "बिगार"। सो पुनि आप विगोऊ। सूर । (ख) जिन्ह एहि षारि न संशा श्री० दे० "बेगार"। मानस धोए। ते कायर कलिकाल बिगोए।—तुलसी । बिगारिश-संशा स्त्री० दे० "बेगार"। उ०-नाहिँ तो भव' (ग) पचय सपान न जानै कोई । छठएँ महँ सत्र गैल. बिगारि मह परिहो छूटत अति कठिनाई हो। सुलगी। । बिगोई।-कबीर । (घ) तुम जब पाए तनहीं चढ़ाय ल्याए बिगारी-संक्षा • दे. "बेगारी"। राम न्याव नेक कीजे बीर यों बिगोइयत है।-हृदयराम । संशा पुं० दे. "बेगारी"। (२) छिपाना । दुराना । उ०—द्वैत बच्चन को स्मरण जु बिगास-संक्षा पु० दे."विकास"। हो। है साक्षात तू ताहि बिगोचे ।-निश्वरदाम । (३) तंग बिगाहा-संशा ५० दे० "बिग्गाहा"। करना । दिक करना । (४) भ्रम में डालना । बहकाना । बिगिर -कि० वि० दे. "बगैर"। उ.-(क) प्रथम मोह मोहि बहुत बिगोवा । राम विमुग्व बिगुन -वि० [सं० विगुण | जिसमें कोई गुण न हो। गुण सुख कबहुँ न सोवा ।-तुलसी। (ख) ताहि बिगोय रहित। सिवा गरजा भनि भूषन औनि छपा यों पछान्यो।- विगुचिन*-संशा० [सं० विवेचन ] दे॰ "बिगूचन"। उ० भूपन । (५) व्यतीत करना । बिताना । उ.--बहु राछया कविरा परजा साह की तू जिन करे म्बुवार । खरी बिगुर सहित तरु के तर तुमरे बिरह निज जनम बिगावति । चिन होयगी लेखा देती बार।-कबीर। -तुलसी। विगुरदा*-संश। पुं० [देश. ] प्राचीन काल का एक प्रकार का बिग्गाहा-संशा पुं० [सं० विगाथा ] आर्या छंद का एक भेद जिसे हथियार। उ०-कपटी जब लो कपट नहिंसाच विगुरदा 'उद्गाति' भी कहते हैं। इसके पहले पाद में १२, दूसरे में धार। तब ली कैसे मिलेगो प्रभु साँची रिझवार ।-रम १५, तीसरे में १२ और चौथे में मात्राएँ होती है। निधि। उ०—राम भजहु मन लाई, तन मन धन के सहित माता। विगुचन -संशा . दे. "बिगूचन"। रामहिँ निसि दिन ध्याओ, राम भजै तबहिँ जान जग बिगुल-संक्षा १० [अं॰] अँगरेजी ढंग की एक प्रकार की जीता। तुरही जो प्रापः सैनिकों को एकत्र करने अथवा इसीविग्रह-संता पुं० [सं० विग्रह ] (1) शरीर । देह । उ०-भगत प्रकार का कोई और काम करने के लिए संकेत-रूप में हेतु नर विग्रह सुर वर गुन गोतीता--तुलसी। (२) बनाई जाती है। झगड़ा लबाई । कलह । विरोध । उ०-वयरु न विग्रह विगुलर-संज्ञा पुं० [अं0 ] फौज में बिगुल यजानेवाला । । आस न वासा । सुख मय ताहि सदा सब आसा ।- बिगुचन-संशा श्री० [सं० विकुंचन अथवा विवेचन ] (1) वह अव- । तुलसी । (३) विभाग । (४) दे. “विग्रह"। स्था जिसमें मनुष्य किं-कर्तव्य-विमूढ़ हो जाता है। अस- बिघटना-क्रि० स० [सं० विघटन ] विनाश करना । विगाड़ना । मंजम्प । अवचन। (२) कठिनता । दिशात। उ.-सूरदास तोदना फोड़ना। उ०—(क) रजनीचर मत्तगयंद घटा अब होत बिगूचन, भजि लै सारंगपान ।—सूर ।। विघटै मृगराज के साज लरें ।-तुलसी । (ख) विगूचना-कि० अ० [सं० विकुंचन] (1) संकोच में पड़ना। दिक्कत सुघट ग्रीव रस सीव कंठ मुकुता विघटत तम ।- में पड़ना। अबचन या असमंजस में पड़ना। उ०—(क) हृदयराम। संगति सोइ बिगूचन जो है साकट साथ ! कॅचन कटोरा बिघन-संज्ञा पुं० दे."विन"। उ०—ाणपति विपन बिनासन छोदि के सनहक लीन्ही हाथ । कबीर। (ख) ताकर हारे। हाल होल अधकूचा। छह दशान में जैन बिगूथा । बिधनहरन*-वि० [सं० विघ्नहरण ] बाधा को हटानेवाला । कबीर। (२) दवाया जाना। पकड़ा जाना । उ०—ाम ही के | बाधा दूर करनेवाला ।