पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१६४

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बिजली २४५७ बिजली ऐसे पदार्थों को चालक कहते हैं। इनके एक सिरे पर यदि बिजली पहुँच जाय तो वह तुरंत उनके दूसरे सिरे पर जा पहुँचती है। धातुएँ, जल, वृक्ष, शरीर, धर्म आदि पदार्थ । चालक है। कुछ पदार्थ ऐसे भी होते हैं जिनमें बिजली का संचालन नहीं होता और डिनको अवरोधक कहते हैं। जैसे, चूना, हवा, रेशम, शीशा, मोम, उन, लाह आदि । घर्षण से जो बिजली उत्पन्न होती है, वह बहुत थोड़ी होती है और उसके उत्पादन में परिश्रम भी अधिक होता है। इसलिये वैज्ञानिकों ने अनेक रासायनिक प्रयोगों और क्रियाओं की सहायता से बिजली उत्पन्न करने के उपाय निकाले हैं। ऐसे उपायों से थोचे व्यय और कम परिश्रम से बहुत अधिक बिजली उत्पन्न की जाती है जो एकत्र या संग्रह करके भी रखी जाती है। ये यंत्र अनेक आकार और प्रकार के होते हैं और इनसे बहुत अधिक मान में बिजली । उत्पन्न होती है। इस प्रकार उपरत कं हुई बिजली से : आजकल अनेक प्रकार के कार्य लिए जाते हैं। जैसे, रोशनी करना, ग्वा चलाना, अनेक प्रकार की गाड़ियाँ चलाना, एक धातु पर दूसरी धातु चढ़ाना, समाचार भेजना इत्यादि इत्यादि । आजकल भारत के बड़े बड़े नगरों में ऐसी ही बिजली की सहायता से ट्राम गाड़ियाँ और अनेक प्रकार की मशीनें चलती है और रोशनी होती है। इसमे अनेक प्रकार के रोगों की चिकित्साएँ भी होने लगी है। यदि यह बिजली अधिक मान में हो और मनुष्य के शरीर से उसका स्पर्श हो जाय तो उससे तुरंत ही मृत्यु भी हो सकती है। बिजली का आविष्कार पहले पहल थेल्स नामक एक व्यक्ति ने किया था जो ईया से प्रायः ६०० वर्ष पूर्व : हुआ था। उसने पहले पहल इस बात का पता लगाया था कि रेशम के साथ कुछ विशिष्ट वस्तुओं को रगड़ने से उसमें यह शक्ति मा जाती है कि वह कागज के टुकड़ों अथवा : इसी प्रकार के कुछ और हलके पदार्थों को अपनी ओर खींचने लगती है। आरंभ के वैज्ञानिकों में से क्लिन का मत या कि बिजली एक बहुत ही सूक्ष्म और गुरुत्व- हीन द्रव पदार्थ है। पीछे से सेमर ने कल्पना की कि यह धन और ऋण दो गुरत्वहीन द्रव पदार्थों के संयोग से उत्पन्न होती है। परंतु अभी तक इसके संबंध में कुछ विशेष निर्णय नहीं हो सका है। तो भी यह यात प्रायः निश्चित सी है कि बिजली कोई द्रव पदार्थ नहीं है। इसके अतिरिक्त इसका दम्य होना भी निश्चित नहीं है, क्योंकि इसमें कोई | गुरुस्व नहीं होता। (२) आकाश में सहसा उत्पन्न होनेवाला वह प्रकाश जो एक बादल से दूसरे बादल में जानेवाली अथवा किसी बादल से पृथ्वी की ओर आनेवाली वातावरण की बिजली ६१५ के कारण उत्पन्न होता है। चपला । विशेष साधारणतः वातावरण में सदा कुछ न कुछ बिजली रहती है जो प्राय: धनात्मक होती है और जो पृथ्वी से कुछ ऊँचाई पर पाई जाती है। वैज्ञानिकों का मत है कि सूर्य की किरणों के कारण पानी से जो भाप बनती है, उसके साथ इस बिजली का विशेष संबंध है; क्योंकि प्रात:काल वातावरण में यह बिजली थोड़े परिमाण में रहती है और ज्यों ज्यों दिन चढ़ता है, त्यो त्यों बढ़ती जाती है। इसके अतिरिक्त बादलों में भी कहीं धनात्मक और कहीं ऋणात्मक बिजली रहती है। जब धनात्मक और ऋणात्मक बिजलीवाले दो बादल आमने सामने आते है, तब पहले उन दोनों की बिजली में आकर्षण होता है और तब उसका विसर्जन होता है जिससे प्रकाश देख पड़ता है। जिस समय कोई धनविधु त्वाला बादल पृथ्वी के सामने भाता है, उस समय पृथ्वी के ऊपर की ओर ऋणविद्यत् उत्पन्न होती है। और तब दोनों मिलकर वियर्जित होती है जिससे प्रकाश होता है। यही बिजली आकाश मे तिरछी रेखा के रूप में पृथ्वी की ओर बढ़े वेग से चलती है और उसके मार्ग में जो कुछ पड़ता है, उसे जला या नष्ट कर देती है। इसी को साधारण बोलचाल में बिजली गिरना या बिजली पपना आदि कहते हैं। इसके मार्ग में पड़नेवाला वृक्ष और घर गिर जाते हैं और मनुष्य या दूपरे जीव मर जाते है। यह प्रकाश प्रायः मीलों लंबा होता है और इसकी गति प्रायः वक्र होती है। गति की वक्रता का कारण यह है कि वातावरण में इसे जिधर सब से फम अवरोध मिलता है, उधर ही यह बढ़ चलती है। बादलों के गरजने का कारण भी यही बिजली है। क्योंकि जब यादलों में से इसका विसर्जन होता है, तब वायु में बहुत अधिक गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। कभी कभी ऐसा भी होता है, कि यह प्रकाश एक लंबी चादर के रूप में दिखाई पड़ता है। पर यह प्रायः क्षितिज के पास और उसी समय दिखाई देता है जब कि वर्षा अथवा तूफान बहुत दूर पर हो । कभी कभी बिजली के गोले भी आकाश से नीचे गिरते हुए दिखाई देते हैं जो पृथ्वी तक पहुँचने से पहले ही भीषण शब्द उत्पन्न करते हुए फट जाते हैं। पर ऐसे गोले बहुत ही कम गिरते हैं और केवल कुछ ही क्षणों तक दिखाई क्रि० प्र०-चमकना । मुहा-बिजली गिरना या पबना-३० ऊपर "विशेष" । बिजली कहकना=बिजली के विमर्जन के कारण आकाश मे बहुत जोर का शब्द होना । (३) आम की गुठली के अंदर की गिरी । (४) गले