पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बिजलीमार विझुकाना में पहनने का एक प्रकार का गहना । (५) कान में पहनने करनेवाला माना है। इस वृक्ष की जड़, इसके फल और का एक प्रकार का गहना । फलों के बीज तीनों औषध के काम में आते हैं। वि० (३) बहुत अधिक चघल या तेज़ । (२) बहुत अधिक पर्या०-बीजपूर । मातुलंग । रुचक । फलपूरक ! अम्लकेशर । चमकनेवाला । चमकीला । बीजपूर्ण। पूर्णबीज । सुकेश । बीजक । सुपूर । बीजफरक । बिजलीमार-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जो बहुत . जंतुन। पूरक । रोचनफल। सुन्दर और छायादार होता है। इसके हीर की लकी बहुत बिजौरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बीज+औरी (प्रत्य०) ] उड़द की पीठी कड़ी होती है और प्रायः सिरिस की लकड़ी की तरह काम और पेठे के मेल से बनी हुई बड़ी। कुम्हड़ौरी । में आती है। यह आसाम और दारजिलिंग के आस पास बिज्जु-संगा स्त्री. दे. "बिजली"। की तराइयों में अधिकता से होता है। आसामवाले इस बिज्जुपात-संशा पुं० [सं० विथुरपात ] बिजली का गिरना । वृक्ष पर एक प्रकार की लाख भी उत्पका करते हैं। वज्रपात । बिजन-वि० [जिबीन+न] जिसका बीज नष्ट हो गया हो। बिज्जुल -संज्ञा पुं० [सं० विज्जुल ] त्वचा । छिलका। जिसकी रोपण शक्ति नष्ट हो गई हो । जैसे, बिजहन गेहूँ। . सज्ञा मा० [सं० विद्युत् ] विजुली। दामिनि । उ०—कहुँ बिजाती-वि० [सं. विजातीय । (१) दृखरी जाति का । और कहुँ मृग निरजन बन माहीं। चमकत भजत बिजुल की जाति या तरह का । उ०-गुरुजन नैन विजातियन परी नाई।-पमाकर । कौन यह यानप्रीतम मुख अबलोक तन होत जुआड़े बिज्जू-संशा पुं० [देश॰] बिल्ली के आकार प्रकार का एक आन । सनिधि । (२) जो जाति मे बहिष्कृत कर दिया . जंगली जानवर जो प्रायः दो हाथ लया होता है। यह गया हो। जाति में निकाला हुआ। अजाती। प्रायः जंगलों में दिल खोद कर अपनी मादा के साथ उसी विजान-संगा पं० [ फा० वि+शान ] अज्ञान । अनजान ।। में रहता है। दिन के समय यह जल्दी बाहर नहीं निक- उ.-जो यह एकै जानिया सौ जानौ सब जान । जो यह लता, पर रात को बाहर निकलकर चूहों, मुरगियों आदि एक न जानिया तो सत्रही जानु विजान-कबीर । का शिकार करता और उनको खा जाता है। कभी कभी बिजायट-संज्ञा पुं० [सं० विजय ] बाँह पर पहनने का बाजूबंद : यह कत्रों को स्वोदकर उनमें से मृत-शरीरों को निकाल नामक गहना । अंगद । भुज । बाजू। कर भी खा जाता है। बीजू । बिजार-संज्ञा पुं० [ देश. ] (१) बैल । (२) साँद। बिज्जृहा-संज्ञा पुं० [?] एक वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में बिजुरी-मंज्ञा स्त्री० दे० "बिजली"। दो 'रंगण' होते हैं। उ.---पुन्य के पाल है। दीन के धाल विजुका, बिजखा-संज्ञा पुं० [ देश ] (1) खेतों में पक्षियों हैं। सीय के हेत हैं। नैन से भेत हैं। (इसी का नाम आदि को हराकर दूर रखने के उद्देश्य से लकड़ी के ऊपर विमोहा और बिजोहा भी है।) उलटी रखी हुई काली हाँसी । (२) धोखा । छल । (क्त्र०) | बिस्वारी-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] छत्तीसगढ़ में बोली जानेवाली बिजैसार-संज्ञा स्त्री० दे० "विजयसार"। एक प्रकार की भाषा । बिजोग -संज्ञा पुं० "वियोग"। बिझरा-संशा पुं० [हिं० मेझरना-मिलाना ] एक में मिला हुआ बिजोरा-संज्ञा पुं० दे० "बिजौरा" । मटर, चना, गेहूँ और जौ । वि० सं० वि+का जोर ताकन ] कमजोर । अशक्त । बिझुकाना-कि० अ० [हिं० झोंका ] (1) भड़कना । उ०- निर्बल। बोले झुकै उझकै अनबोले फिरै बिझुके से हिये महँ फूले।- बिजोहा-संज्ञा पु. [ ? ] केशव के अनुसार एक छेद का नाम । केशव । (२) उरना । भयभीत होना । उ॰—हँसि उठ्यो विशेष—दे. "विज्जूहा"। नरनायक चाइकै । रिसभरी विझुकै सरसाइकै।-गुमान । बिजौग-संज्ञा पुं० [सं० वाजपूरक ] नीबू की जाति का एक वृक्ष (३) टेढ़ा होना । तनना । उ.-नेह उरसे से नैन देखिबे जिसके पत्ते नीबू के पत्तों के समान, पर उससे बहुत अधिक को बिरुझे से बिझुकी सी भौंह उसके से डर जात हैं।- बड़े होते हैं। इसके फूलों का रंग सफेद होता है और फल केशव । यदी नारंगी के बराबर होते हैं। यह दो प्रकार का होता : बिझुकाना-क्रि० स० [हिं० विझुकना का स० रूप] (१) भड़- है, एक वट्ट फलवाला और दूसरा मीठे फलवाला । फलों काना । उ०-भाग बोजु रधी तुमलों वह तो विझुकाद का छिलका बहुत मोटा होता है। वैद्यक में इसे खट्टा कहो कहें कीजै। केशव । (२) बराना। उ.--दान गरम, कंठशोधक, तीक्ष्ण, हलका, दीपक, रुचिकारक, श्या शुभ शील सखा विमुकै गुण भिक्षुक को बिझुकावै । स्वादिष्ट और त्रिदोष, तृषा, खाँसी, हिचकी आदि को दूर --केशव ।