पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१६८

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•बिदरीसाज विधवाना की धातु का काम । (२) बिदर की धातु का बना हुआ धीरे धीरे हँसना । उ.-धरै तहाँ जहँ होइ रजाई। बयो सामान । विदेह बच्चन बिदुराई।-रखुराज । विदरीसाज-संज्ञा पुं० [हिं० विदर+फा० साज ] वह जो बिदर ! बिदुरानी-संशा स्त्री० [हिं० विदुराना ] मुसकराहट । मुस- की धातु से बरतन आदि बनाता हो। बिदर का काम | क्यान । उ०-नये चाँद से बदन बिदुरानि खासी त्यों बनानेवाला। जवाहिर जड़े कडे दिल कादर्ते। भुराज । बिदहना-क्रि० स० [सं० विदहन ] स्त्री. निदहनी ] धान या बिपना* -क्रि० अ० [सं० विदूषण] (1) दोष लगाना । कलंक ककुनी आदि की फसल पर आरंभ में पाटा या हंगा लगाना । ऐथ लगाना । (२) खराब करना । बिगारना । चलाना। बिदेस-संशा पुं० [सं० विदेश ] विदेश । परदेश। अपने देश के विशेष--जिस समय फसल एक बालिश्त हो जाती है और अतिरिक्त और कोई देश । जैसे, देस-विदेस मारे मारे वर्षा होती है, तब मिट्टी गीली हो जाने पर उस पर हंगा फिरना। या पाटा चला देते हैं। इससे फसल लेट जाती है, और विदोख -संशा पुं० [ विद्वेष ] पैर । वैमनस्य । फिर जब उठती है, तब ज़ोरों से बढ़ती है। बिद्दत-संज्ञा स्त्री० [अ० बिदअत ] (1) पुरानी अच्छी बात को बिदहनी-संज्ञा स्त्री० [सं० विदहन ] बिदहने की क्रिया या भाव । विगाइनेवाली नई स्वराब बात । (२) ग्वराधी । बुराई। क्रि० प्र०—करना ।—लगना । —लगाना । दोष । (३) कष्ट । तकलीफ । (४) विपत्ति । आफ़त । (५) बिदा-संज्ञा स्त्री० [अ० बिदाम ] (१) प्रस्थान । गमन । खानगी। अत्याचार । जुल्म । (६) दुर्दशा।। वसत । उ..-बेटी को बिदा के अकुलाने गिरिराज कुल क्रि०प्र०–में पड़ना ।-भोगना ।-सहना । व्याकुल सकल शुद्धि बुद्धि बदली गई। देव । (२) जाने' बिधंसना-कि० म० [सं० विध्वंसन ] नाश करना । विश्वस की आज्ञा । उ०-माँगहु बिदा मातु सन जाई। आवहु करना । नष्ट करना। बेगि चलहु बन भाई। तुलसी। विध-संज्ञा पुं० [सं० विधि ] हाधियों का चारा या रातिब । क्रि० प्र०—देना ।-मांगना ।-मिलना। संशा भी० [सं० विधि] (1) प्रकार । तरह । भाँति । उ.- (३) द्विरागमन । गौना। जद्यपि करनी है करी में हर भाँत मुरार । प्रभु करनी कर बिदाई-संज्ञा स्त्री० [अ० बिदाम ] (1) बिदा होने की क्रिया या आपनी सब विध लेहु सुधार ।-रसनिधि । (२) ब्रह्मा। भाव । (२) बिदा होने की आशा । (३) वह धन जो किसी संज्ञा स्त्री० [सं० विधा लाभ ] जमा खर्च का हिसाव । को बिदा होने के समय, उसका सत्कार करने के लिये आय-व्यय का लेखा। दिया जाय। मुहा०-विध मिलाना आय-व्यय का हिसाब ठाक करना । बिदामी-वि० दे० 'बादामी"। यह दखना कि आय और व्यय की सब म ठीक ठीक लिखें। बिदारना-क्रि० स० [सं० विदारण ] (1) चीरना। फाइना। गई है या नहीं। उ.-सीयबरन सनकेत किअति हिय हारि । किहेसि भँवर बिधना संज्ञा पुं० [सं० विधि+ना (प्रत्य॰)] ब्रह्मा। कार । कर हरवा हृदय विदारि । तुलसी। (२) नष्ट करना। विधि । विधाता । उ.-अहो विधना तो चै अचरा पसारि बिगाड़ना। मांगौ जनम जनम दीजो याही बज बसियो। बिदारी संज्ञा पुं० [सं० विदारी ] (1) शालपर्णी । (२) भूमिकु कि० अ० दे० "विधना"। उ०—(क) बिधबे मैन खिला- मांड । भुर-कुम्हड़ा । (३) अठारह प्रकार के कंठ रोगों में रने रूप जाल हग मीन । रहत सदाई जे भए चपल गनत से एक प्रकार का रोग। रसलीन ।--रसनिधि । (ख) जैसे बधिक अधिक मृग बिदारीकंद-संझा पुं० [सं० विदारीकंद ] एक प्रकार का कंद विधवत राग रागिनी ठानि ।—सूर । जिसकी बेल के पते अरुई के पत्तों के समान होते हैं। यह बिधबंदी-संज्ञा स्त्री० [हिं० विधि जमा+मा० बंदी ] भूमिकर कंद बेल की जद में होता है। इसका रंग कुछ कुछ लाल देने की वह रीति जिसमें बीघे आदि के हिसाब से कोई कर होता है और इसके ऊपर एक प्रकार के छोटे छोटे रोएँ नियत नहीं होता बल्कि कुल ज़मीन के लिये यों ही अंदाज़ होते हैं। वैद्यक में इसे मधुर, शीतल, भारी, स्निग्ध, रक्त- से कुछ रक्कम दे दी जाती है। बिलमुकता। पित्तनाशक, कफकारक, वीर्यवर्द्धक, वर्ण को सुंदर करने- विधवपना-संज्ञा पुं० [सं० विधवा+पन (प्रत्य॰) । वाला और रुधिर-विकार, दाह तथा वमन को दूर करने- वैधव्य । वाला माना है। बिलाई कंद। विधवा-वि० [सं०] (वह बी) जिसका पति मर गया हो। रोद। विदुराना*1-क्रि० अ० [सं० विदुर-चतुर] मुसकराना । विधवाना-क्रि० स० दे."धियाना"।