पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१८१

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बीज (२) भेद । अंसर । फरक । उ०—(क) बदौं संत असजन क्रि० वि० दरमियान । अंदर । में । उ०-जानी न ऐसी चरना । दुग्बप्रद उभय श्रीच कछु बरना । —तुलसी। पदाचदी में किहिधी कटि बीच ही टूटि लई सी।- (ख) धन्य हो धन्य हो तुम घोप नारी । मोहि धोखो गयो । पद्माकर । दरस तुमको भयो नुमहि मोहिं देखोरीबीच भारी। सूर। : । संज्ञा स्त्री० [सं० वाचि ] लहर । तरंग। दे. "बीचि"। मुहा०-पांच करना=(१) लड़नेवाली को लड़ने से रोकने के बीचु*-संज्ञा पुं० [हिं० बीच ] (1) अवसर । मौका । (२) लिये अलग अलग करना । उ०-ललित भृकुटि तिलक भाल अंतर। फरक । उ०-चतुर गंभीर राम महतारी। बीघु पाइ चिबुफ अधर, द्विज रसाल, हास चारुतर करोल नासिका . निज बात सवारी।-तुलसी। सुहाई । मधुकर जुग पंकज बिच मुख बिलोकि नीरज पर बीचोबीच-क्रि० वि० [हिं० बीच ] बिलकुल बीच में । ठीक मध्य लरत मधुप अवली मानों पांच कियो आई।--तुलगी। में । उ०-श्रीकृष्णचंद भी अर्जुन को साथ ले वहाँ गए (२) झगड़ा निबटाना। अगड़ा मिटाना । उ०--(क) चोरी के और जा के बीचोबीच स्वयंवर के खड़े हुए। लहलू । फल तुमहि दिग्वाऊँ । कंचन खंभ होर कंचन की देखो बीछना*-क्रि० स० [सं० विच वा विचयन ] (1) चुनना । नुमाहि बँधाऊँ। खंडी एक अंग कछु तुमसे चोरी नाउँ छाँटना । पसंद करके अलग करना । उ.---यानुज सानंद मिटाऊँ। जो काही पोई सब लहां यह कहि द मैगाऊँ। हिये आगे है जनक लिए रचना हचिर सब सादर देखाह के । बीच करन जो अवै कोऊ ताको सौंह दिवाऊँ। सूरश्याम : दिये दिव्य आसन सुपास सावकास अति आछे आछे बीछे 'चोरन के राजा बहुरि कहा मैं पाऊँ।-सूर । (ख) रहा कोई : पीछे बिछौना बिछाई कै। तुलसी । (२) एक एक को धरहरिया करे जो दोउ मह बीच । --जायसी। बीच बना अलग अलग देखना। (१) परिर्वतन होना। और का और होना । बदल जाना । उ० बीछी*-संज्ञा स्त्री० [सं० वृश्चिक ] बिच्छू । उ०—(क) साँप कोटि जतन कोऊ करे परेन प्रकृतिहि बीच । नल बल जल बीछि को मंत्र है माहुर झारे जाय । विकट नारि के पाले ऊँचे चढ़ अंत नीच को नीच । (२) झगड़ा निपटाने के लिये परा काटि करेजा ग्वाय ।-कबीर । (ख) ग्रहगृहीत पुनि पंग बनना । मध्यस्थ होना। बीच पारना वा सलमा बात बस तेहि पुनि बीछी मार । ताहि पियाई बारुनी (१) परिर्वतन करना । (२) विभेद वा पार्थवय करना । उ.- | ___ कहहु कवन उपचार ।-तुलसी। (क) विधि न सकेउ सहि मोर दुलारा । नीच बीच जननी क्रि० प्र०-मारना। मिस पारा।-तुलसी । (ख) गिरि सो गिरि आनि मुहा०--बीची बदनाबिच्छू के डंक का विष चढ़ना । 30- मिलावती फेरि उपाय के बीचहि पारती है।-प्रताप । नगर ब्यापि गइ बात सुतीछी । छुवत चढ़ी जनु सत्र तन बीच में पबना=(१) मध्यस्थ होना । (२) जिम्मेदार बनना । बीछी।-तुलसी। प्रतिभू बनना। बीच रग्बना भेद करना । दुराव रखना। बी*1-संज्ञा पुं० (1) दे. "बिच्छू"। उ०-सीत अमह विष पराया ममदाना । उ.-कीन्ह प्रीति कछु बीच नराखा । चित चहै सुख न मद परिजक । बिनु मोहन अगहन हने लछिमन राम चरित सब भाषा -तुलसी। बीच में बी कैसो डंक ।-शृंगार सतः । (२) दे० "बिछुआ"। कूदना अनावश्यक हस्तक्षेप करना । व्यर्थ टॉग अड़ाना । ( हथियार ) उ०-धीछू के घाय गिरे अफजल्लाहि ऊपर ही किमी को बीच देना या बीच में देना=(१) मध्यस्थ बनाना ।। सिवराज निहारों।-भूषण।। (२) साक्षी बनाना । ( ईश्वर आदि को) बीच में रखकर बीज-संश। पुं० [सं०1(9) फूलवाले वृक्षों का गर्भीड जिसमे कहना=(ईश्वर आदि की ) शपथ खाना । कसम खाना । वृक्ष अंकुरित होकर उत्पन्न होता है। यह गाड एक छिलके विशेष-इस अर्थ में कभी कभी जिसकी कपम खानी होती है, : में बंद रहता है और इसमें अव्यक्त रूप से भावी वृक्ष का उसका नाम लेकर और उसके साथ केवल "वीध" शब्द भ्रूण रहता है। जब इस गार को उपयुक्त जल-वायु लगाकर भी बोलते हैं। जैसे,--ईश्वर बीच, हम कुछ नहीं और स्थान मिलता है, तब वह भ्रूण जिसमें अंकुर अव्यक्त जानते। उ०-तोहि अलि कीन्ह आप भा केवा । हौं रहता है, प्रबुद्ध होकर बढ़ता और अंकुर रूप में परिणत हो पठवा गुरु बीच परेवा । जापसी। जाता है। यही अंकुर समय पाकर बढ़ता है और बढ़कर (३) दो वस्तुओं वा खंडों के बीच का अंतर । अवकाश । वैसा ही पेस हो जाता है जैसे पेड़ के गभीर से वह स्वयं उ.--अवनि यमहि जाँच कैकेई । महिय बीच विधि मीचु निकला था। बीया । सुरुम । दाना। न देई । -तुलसी। (४) अवसर । मौका । अवकाश 1 | क्रि० प्र०-उगना ।-पालना -योना । उ०-चतुर गंभीर राम महतारी । बीघु पाइ निज बात (२) प्रधान कारण । मूल प्रकृति । (३) जब । मूल । सँवारी।—तुलसी। (४) हेतु । कारण । (५) शुक्र । वीर्य । (६) वह अग्यक