पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१८२

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बीजक बीजाध्यक्ष • सांकेतिक वर्णसमुदाय वा शब्द जिसको कोई व्यक्ति जो | बीजधान्य-संशा पुं० [सं० ] धनियाँ । उसके सांकेतिक भावों को न जानता हो, नहीं समझ | वीजन *-संज्ञा पुं० [सं० व्य जन ] बेना । पंखा। उ०-खासे सकता । (७) गणित का एक भेद जिसमें अध्यक्त संख्या रय बीजन सुखाने पौन वाने म्बुले, ग्वस के ग्व जाने, ग्बप- के सूचक संकेतों का व्यवहार होता है। दे० "बीजगणित"। ग्वाने खूब ग्वस ग्वाय ।-पद्माकर । (4) अध्यक्त संख्या-सूचक संकेत । (९) वह अध्यक्त ध्वनि बीजपादप-संज्ञा पुं० [सं० ] भिलावा । बा शब्द जिसमें तंत्रानुसार किसी देवता को प्रसन्न करने वीजपुष्प-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मरुआ। (२) मदन वृक्ष । की शक्ति मानी गई हो। ( भिन्न भिन्न देवताओं का भिन्न | बीजपूर, बीजपूरक-संगा पुं० [सं०] (1) बिजौरा नीव । (२) भिक्ष बीज मंत्र होता है।) (10) मंत्र का प्रधान भाग चकोतरा। या अंग। बीजपेशिका-संशा श्री० [सं० 1 अंडकोष। विशेष-तंत्रानुसार मंत्र के तीन प्रधान अंग होते हैं-श्रीज, बीजफलक-संज्ञा पुं० [सं०] बिजौरा नीबू । शक्ति और कीलक। बीजबंद-संशा पुं० [हिं० बाज+बाधना ] खिरैटी के बीज । बरि- (११) वह भावपूर्ण सांकेतिक अध्यक्त शब्द जिसमें बहुत से यारे के बीज । बला। भाव सूक्ष्म रूप से सनिवेशित हों और जिम्का तात्पर्य परे | बीजमंत्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) किसी देवता के उद्देश्य से निश्चित लोग, जिन्हें सांकेतिक अर्थों का ज्ञान न हो, न जान सकें। किया हुआ मूल-मंत्र । (२) किती काम को करने का असली ऐसे शब्दों का प्रयोग रासायनिक तथा इसी प्रकार के और ढंग। मूल-मंत्र । गुर। कार्यों के लिये किया जाता है। बीजमातृका-संज्ञा स्त्री० [सं० ] कमलगट्टा । संशा मी० दे० "बिजली" । उ०-अजहुँ शशी मुँह बीजमार्ग-संज्ञा पुं॰ [सं०] वाममार्ग का एक भेद । बीज देखावा । धौध पयो कछु कहै न आवा ।--जायसी। बीजमार्गी-संज्ञा पुं० [सं० बाधमागिन] बीजमार्गपंथ के अनुयायी। बीजक-संज्ञा पुं० [सं०] (१) सूची । फिहरिम्त । (२) वह बीजरल-संज्ञा पुं० [सं० ] उड़द की दाल । सूची जिसमें माल का ब्योरा, दर और मूल्य आदि लिखा | बीजग-संक्षा पुं० दे० "बिजली"। हो। यह सूची बेचनेवाला माल के साथ स्वरीदनेवाले के | बीजरेचन-संज्ञा पुं० [सं०] जमालगोटा । पास भेजता है। (३) वह सूची जो किसी गरे हुए धन | बीजल-संज्ञा पुं० [सं०] वह जिसमें बीज हो। की, उसके साथ, रहती है। (४) असना का वृक्ष । (५) वि. बीजवाला । बीजयुक्त। विजौरा नीव । (६) बीज । (७) जनम के समय बच्चे की | संज्ञा स्त्री० [डि० ] तलवार । वह अवस्था जब उसका सिर दोनों भुजाओं के बीच में बीजवाहन-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव । होकर योनि के द्वार पर भा जाय।(6) कबीरदास के पदों। धीजवृक्ष-संज्ञा पुं० [सं० ] असना का पेड़। के तीन संग्रहों में से एक। बीजम्-संज्ञा स्त्री० [सं०] पृथ्वी। बीजकृत-संज्ञा पुं० [सं०] बाजीकरण । बीजहरा, बीजहारिणी-संज्ञा स्त्री० [सं० Jएक राकिनी का बीजक्रिया-संशा स्त्री० [सं०] बीजगणित के नियमानुसार नाम । गणित के किती प्रश्न की क्रिया । | बीजांकुरन्याय-संज्ञा पुं० [सं०] एक न्याय जिसका व्यवहार बीजखाद-संशा पुं० [हिं० बीज+खाद ] वह रकम जो ज़मींदारों दो संबछ, वस्तुओं के नित्य प्रवाह का दृष्टांत देने के लिये या महाजनों आदि की ओर से किसानों को बीज और खाद होता है। बीज से अंकुर होता है और अंकुर से बीज होता आदि के लिये पेशगी दी जाती है। है। इन दोनों का प्रवाह अनादि काल से चला आता है।दो बीजगणित-संज्ञा पुं० [सं०] गणित का वह भेद जिसमें अक्षरों वस्तुओं में इसी प्रकार का प्रवाह या संबंध विश्वलाने के को संख्याओं का योतक मानकर कुछ सांकेतिक चिह्नों और लिये इसका उपयोग होता है। निश्चित युक्तियों के द्वारा गणना की जाती है, और | बीजा-वि० [सं० द्वितीय, पा० द्वितिया प्रा० दुओ, पु० हिं० दूआ ] विशेषतः अशात संस्थाएँ आदि जानी जाती है। दूसरा । उ.-ए मन के गुण गॅथत जे पहिचानत जानकी बीजगर्भ-संज्ञा पुं० [सं०] परवल । और न बीजो।-हनुमान । बीजगुति-संज्ञा स्त्री० [सं०1 (1) सेम । (२) फली। (३) भूसी। संज्ञा पुं० दे० "बीज"। बीजन्व-संज्ञा पुं० [सं० ] बीज का भाव । बीज-पन । बीजाक्षर-संज्ञा पुं० [सं० 1 किसी बीजमंत्र का पहला अक्षर । बीजदर्शक-संज्ञा पुं० [सं०] नाटकों में अभिनय का परिदर्शफ।बीजाख्य-संज्ञा पुं॰ [सं०] जमालगोटा । वह व्यक्ति जो नाटक के अभिनय की व्यवस्था करता हो। बीजाध्यक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] शिव ।