पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१८५

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बीमार २४७८ बीरबाइटी विशेषतः आर्थिक हानि पूरी करने की जिम्मेदारी जो कुट वीया*-वि० [सं० द्वितीय ] दूसरा । उ॰—(क) तुम जाइ कहहु निश्रित धन लेकर उसके बदले में की जाती है। कुछ धन नवाब मों जौ साँचु राखत जीय में। तो एक बार मिली लेकर इस बात की ज़मानत करना कि पदि अमुफ कार्य हम नहिँ वास कहनी बीय में।-सूदन । (ख) फिर बद- में अमुक प्रकार की हानि होगी तो उसकी पूति हम नेस कुवार वियो सुफतअली । बैठे इकले जाइ करन ममलत इतना धन देकर कर देंगे। भली ।--सूदन । विशेष--आजकल बीमे की गणना एक प्रकार से स्यापार संशा पुं० [सं० बीज ] बीज । दाना। के अंतर्गत होती है और इसके लिये अनेक प्रकार की दीर-वि० दे० "वीर"। कंपनियाँ स्थापित है। उसमें बीमा करनेवाला कुछ संज्ञा पुं० [सं० बीर ] भाई। भ्राता। उ०—(क) सबै निश्चित नियमों के अनुसार, समय समय पर या एक ग्रज है यमुना के तीर । काली नाग के फन पर निर्तत संक- साथ ही कुछ निश्चित धन लेकर अपने ऊपर इस बात पण को बीर ।-सूर। (ख) चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न का जिम्मा लेता है कि यदि बीमा करानेवाले की अमुक सनेह गंभीर । को घटि ये वृषभानुजा वे हलधर के वीर ।- कार्य या व्यापार आदि में अमुक प्रकार की हानि या विहारी। दुर्घटना आदि होगी तो उसके बदले में हम वीमा कराने संज्ञा स्त्री. (१) सामी । सहेली । उ०—(क) बार वाले को इतना धन देंगे। आजकल मकान या गोदाम: बुद्धि बालनि के साथ ही बढ़ी है बीर कुचनि के साथ ही आदि के जलने का, समुद्र में जहाजों के इवने का, भेजे हुए सकुच उर आई है। केशव । (ख) यहक न इहि वहना. माल का ठीक दशा में निपत स्थान तक पहुँचने का पा पने जब तब बीर बिनास । बच्चे न बड़ी मील है चील दुर्घटना आदि के कारण हाथ-पैर टूटने पा शरीर बेकाम हो घौंसुआमास । -बिहारी। (ग) यह जा यसोदा के पास जाने का बीमा होता है। एक प्रकार का बीमा और होना बैठी और कुशल पूछ अशीश दी कि वीर तेरा कान्ह जीव है जो जानबीमा कहलाता है। इसमें बीमा करानेवाले को कोटि बरस । लल्लू । (२) एक आभूषण जिसे स्त्रियाँ प्रति मास, प्रति वर्ष अथवा एक साथ ही कुछ निश्चित कान में पहनती हैं। यह गोल चक्राकार होता है और धन देना पड़ता है और उसके किसी निश्चित अवस्था तक इन्सका ऊपरी भाग ढालुओं और उठा हुआ होता है तथा पहुँचने पर उसे बीमे की रकम मिल जाती है; अथवा यदि इसके दूसरी ओर खूटी होती है जो कान के छेद में डाल उस निश्रित अवस्था तक पहुँचने से पहले ही उसकी मृत्यु कर पहनी जाती है। इसमें दाई तीन अंगुल लंबी कंगनी- हो जाय तो उसके परिवारवालों को वह रकम भिल जाता दार पूँछ सी निकली रहती है जिसमें प्रायः स्त्रियाँ रेशम है। आजकल बालकों के विवाह और पढ़ाई-लिखाई के आदि का झब्बा लगवाती हैं। यह झब्बा पहनते समय म्यर के संबंध में भी बीमा होने लगा है, और वृद्धा. सामने कान की ओर रहता है। बिरिया। चाँद बोल । उ.- वस्था में शरीर अशक्य हो जाने की दशा में जीवन निर्वाह (क) लसै वीरें वका सी घलै श्रुति में भृकुटी जुवा रूप का भी। डाक द्वारा पत्र या माल आदि भेजने का भी रही छबि छवै । (ख) अंग अंग अनंग झलकत सोहत कानन पाक-विभाग के द्वारा बीमा होता है। योर सोभा देत देखत ही वनै जोन्ह में जोन्ह सी फूली।- यौ०बीमा-कराई-वह धन जो बीमा करानेवाला वामा कराने : हरिदास । (३) कलाई में पहनने का एक प्रकार का गहना। के लिये बीमा करनेवाले को देता है। उ०-हाथ पहुँची बीर कंगन जरित मुंदरी भ्राजई।-सूर । (२) वह पत्र या पारसल आदि जिसका इस प्रकार बीमा । (४) पशुओं के चरने का स्थान । चरागाह । घरो । (५) हुआ हो। चरागाह में पशुओं को चराने का वह महसूल जो पशुओं बीमार-वि० [फा०] [सं० बीमारी ] वह जिग्ने कोई बीमारी की संख्या के अनुसार लिया जाता है। हुई हो। रोगग्रस्त । रोगी। बीरउ*-संज्ञा पुं० दे. "बिरवा"। क्रि० प्र०-पड़ना । —होना। बीरज*-संज्ञा पुं० दे० "वीर्य"। बीमारदार-वि० [फा०] रोगी की सुश्रषा करनेवाला । जो बीरन-संज्ञा पुं० [सं० विर ] भाई। उ०-बीरन आए लिवाइने रोगियों की सेवा करे। को तिन की मृदुबानिहुमानि न लेता है। पचाकर । बीमारदारी-संज्ञा स्त्री० [फा० ] रोगियों की सुश्रपा । बीगनि-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] कान में पहनने का एक प्रकार का बीमारी-संज्ञा स्त्री० [फा०] (१) रोग। व्याधि । (२) झंझट । • गहना । ढारों । तरना । बीरी। (बोल चाल )1 (३) बुरी आदत । (बोल.) । बीरबहटी-संज्ञा स्त्री० [सं० विर+बभूटी ] एक छोटा रंगने- बीय-वि० दे० "बीजा"। वाला कीड़ा। यह किलनी की जाति का होता है और