पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१९०

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२४८३ बुद्धि इन्हें कौशिक विवामित्र ने अनेक शास्त्रों, भाषाओं और को भी अपने उपदेशो से मुग्ध करके अपना अनुयायी बना कालाओं आदि की शिक्षा दी थी। बाल्यावस्था में ही ये लिया। इसके कुछ दिनों के उपरांत लिपिछवि महाराज का प्रायः एकांत में बैठकर त्रिविध दुःखों को निवृत्ति के निमंत्रण पाकर ये वैशाली गए थे। वहाँ से चसकर ये उपाय सोचा करते थे। युवावस्था में इनका विवाह देवदह संकाश्य, श्रावस्ती, कौशांबी, राजगृह, पाटलिपुत्र, की राजकुमारी गोपा के साथ हुआ। शुद्धोदन ने इनकी कुशीनगर आदि अनेक स्थानों में भ्रमण करते फिरते थे; उदासीन वृत्ति देखकर इनके मनोविनोद के लिये अनेक और सभी जगह हज़ारों आदमी इनके उपदेश से संसार सुंदर प्रासाद आदि बनवा दिए थे और और सामग्री एकत्र त्यागते थे। इनके अनेक शिष्य भी चारों ओर घूम घूम कर कर दी थी तिस पर भी एकांतवास और खिताशीलता धर्मप्रचार किया करते थे। इनके धर्म का इनके जीवनकाल कम न होती थी। एक बार एक दुर्बल वृन्द्व को, एक में ही बहुत अधिक प्रचार हो गया था । इसका कारण यह बार एक रोगी को और एक बार एक शव को देख कर पे था कि इनके समय में कर्मकांड का ज़ोर बहुत बड़ चुका संसार से और भी अधिक विरक्त तथा उदासीन हो गए। था और यज्ञों आदि में पशुओं की हत्या बहुत अधिक होने पर पीछे एक संन्यासी को देखकर इन्होंने सोचा कि लगी थी। इन्होंने इस निरर्थक हत्या को रोककर लोगों को संसार के कष्टों से छुटकारा पाने का उपाय वैराग्य ही है। जीवमात्र पर दया करने का उपदेश दिया था।होंने वे संन्यासी होने की चिंता करने लगे और अंत में एक दिन प्रायः ४४ वर्ष तक बिहार तथा काशी के आस पास के जब उन्हें समाचार मिला कि गोपा के गर्भ से एक पुत्र प्रांतों में धर्म प्रचार किया था। अंत में कुशीनगर के पास उरण हुआ है, तब उन्होंने संसार को त्याग देना निश्चित के वन में एक शालवृक्ष के नीचे वृद्धावस्था में इनका शरीरांत कर लिया। कुछ दिनों बाद आषाद की पूर्णिमा की रात को या परिनिर्वाण हुआ था। पीछे से इनके कुल उपदेशों का अपनी स्त्री को निद्रावस्था में छोड़कर उतीस वर्ष की संग्रह हुआ जो तीन भागों में होने के कारण त्रिपिटक अवस्था में ये घर से निकल गए और जंगल में जाकर कहलाया। इनका दार्शनिक सिद्धांत ब्रह्मवाद या सर्वाग्म- इन्होंने प्रवृज्या ग्रहण की। इसके उपरांत इन्होंने गया | वाद था। ये संसार को कार्य-कारण के अविस्थित नियम के समीप निरंजना नदी के किनारे उहधि प्राम में में बलू और अनादि मानते थे तथा छःइदियों और अष्टांग कुछ दिनों तक रह कर योग-साधन तथा तपश्चर्या मार्ग को ज्ञान तथा मोक्ष का साधन समझते थे। विशेष- की और अपनी काम, कोष आदि वृत्तियों का पूर्ण रूप दे. "बौद्ध-धर्म"। से नाश कर लिया। उसी अवसर पर घर से निकलने के ... विशेष—हिंदू शायरों के अनुसार कुछ देव दस अवतारों में से प्रायः सात वर्ष बाद एक दिन आषाढ़ की पूर्णिमा की नवें अवतार और चौकीस अवतारों में से तेईसवें अवतार रात को महाबोधि वृक्ष के नीचे इनको उद्बोधन हुआ और माने जाते हैं। विष्णुपुराण और वेदांत सूत्र आदि में इन्होंने दिग्य ज्ञान प्राप्त किया। उसी दिन से ये गौतम इनके संबंध की बाते और कमाएँ दी हुई है। बुद्ध या बुद्धदेव कहलाए । इसके उपरांत ये धर्मप्रचार बुद्धि-संशा स्त्री० [सं०] (1) वह शक्ति जिसके अनुसार करने के लिए काशी आए। इनके उपदेश सुनकर धीरे धीरे मनुष्य किसी उपस्थित विषय के संबंध में ठीक ठीक बहुत से लोग इनके शिष्य और अनुयायी होने लो और । विचार या निर्णय करता है। विवेक या निश्रय करने की बोदेही दिनों में अनेक राजा, राजकुमार और दूसरे प्रति शक्ति । माल । समझ । ठित पुरुष इनके अनुयायी बन गए जिनमें मगध के राजा . विशेष—हमारे यहाँ बुन्धि अंतःकरण की चार वृत्तियों में से बिबिसार भी थे। उस समय तक प्रायः सारे उत्तर भारत : दूसरी वृत्ति मानी गई है और इसके निल्य और अनित्य में उनकी याति हो चुकी थी। कई बार महाराज शुद्धी दो भेद रखे गए हैं। इसमें से नित्य बुद्धि परमात्मा की वन ने इनको देखने के लिये कपिलवस्तु में बुलाना चाहा; : और अनिष्य बुद्धि जीव की मानी गई है। सांस्य के मत पर जो लोग इनको बुलाने के लिये जाते थे, वे इनके उप से त्रिगुणास्मिका प्रकृति का पहला विकार यही बुद्धितत्व देश सुनकर विरक्त हो जाते और इन्हीं के साम राने लगते है; और इसी को महत्तस्त्र भी कहा गया है। सांप में यह थे। अंत में ये एक बार स्वयं कपिलवस्तु गए थे जहाँ इनके भी माना गया है कि आरंभ में ज्यों ही जगत् अपनी पिता अपने बथु-बांधवों सहित इनके दर्शनों के लिये आए सुपुप्तावस्था से उठा था, उस समय सब से पहले इसी थे। उस समय तक शुद्धोदन को भाशा बी कि सिद्धार्थ माहन् या बुद्धितत्व का विकास हुआ था। नैयायिकों में गौतम काने सुनने से फिर गृहस्थ आश्रम में भा जायेंगे इसके अनुभूति और स्मृति ये दो प्रकार माने। कुछ और राजपद ग्रहण कर लेंगे। पर इन्होंने अपने पुनराइल लोगों के मत से बुद्धि के इष्टानिष्ट, विपत्ति, व्यवसाय,