पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१९२

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बुधवार २४८५ खुरादा बुधवार-संशा पुं० [सं०] सात बारों में से एक बार जो बुध ग्रह रोना । उ.-जहाँ तहाँ बुबुकि बिलोकि बुधुकारी देत जरत का माना जाता है। यह मंगलवार के बाद और बृहस्पति निकेत धावो धावो लागि आगि रे। तुलसी। वार से पहले पड़ता है। रविवार से चौथा दिन । क्रि० प्र०—देना । मारना । खुधि* -संज्ञा स्त्री० दे. "बुद्धि"।

युभुक्षा-संशा स्त्री० [सं० ] खाने की इच्छा । शुधा । भूव ।

बुनना-क्रि० स० [सं० वयन ] (9) जुलाहों की वह किया बुभुक्षित-वि० [सं०] जिसे भूख लगी हो। भूखा । श्रुधिन । जिससे वे सूतों या तारों की सहायता से कपड़ा तैयार करते | बुभूषा-संज्ञा स्त्री० [सं०] यश की इच्छा रखना। हैं । इस क्रिया में पहले करगह में लंबाई के बल बहुत से बुयाम-संज्ञा पुं० [अ० १] चीनी मिट्टी का बना हुआ एक प्रकार सूत बराबर बराबर फैलाए जाते हैं, जिसे ताना कहते का गोल और ऊँचा बड़ा पान जो साधारणत: तेज़ाब और हैं। इसमें करगह को राछों की सहायता से ऐसी | अचार आदि रखने के काम में आता है । जार । व्यवस्था कर दी जाती है कि सम संख्याओं पर पड़नेवाले खुरकना-क्रि० स० [अनु॰] किसी पिसी हुई या महीन चीज़ को सूत आवश्यकता पड़ने पर विषम संख्याओं पर पड़नेवाले हाथ से धीरे धीरे किसी दूसरी चीज़ पर छिरकना । भुर- सूतों से अलग करके ऊपर उठाए या नीचे गिराए जा सकें। भुराना। अब ताने के इन सूतों में से आधे सूतों को कुछ ऊपर उठाते संज्ञा पुं० बच्चों की वह दावात जिसमें वे पटिया आदि और आधे को कुछ नीचे गिराते हैं और तब दोनों के पर लिखने के लिए खरिया मिट्टी घोलकर रखते हैं। बीच में से होकर ढरकी, जिसकी नरी में वाने का सूत बुरका-संज्ञा पुं० [अ०] (१) प्राय: थैले के आकार का मुसलमान लपेटा हुआ होता है, एक ओर से दूसरी ओर को जाती है, खियों का एक प्रकार का पहनावा जो दूसरे सब वस्त्र पहन जिससे खाने का सूत तानेवाले सूतों में पड़ जाता है। इसके दुकने के उपरांत सिर पर से डाल लिया जाता है और उपरांत फिर ताने के सूतों में से ऊपरवाले सूतों को नीचे जिससे सिर से पैर तक सब अंग ढके रहते हैं। इसमें का और नीचेवाले सूतों को ऊपर करके दोनों के बीच में से जो भाग आँखों के आगे बता है, उसमें जाली लगी रहती उसी प्रकार बाने के सूत को फिर पीछे की ओर ले जाते है जिसमें चलते समय सामने की चीजें दिखाई पड़े। हैं। इसी प्रकार बार बार करने से तानों के सूतों में बाने (२) बह झिल्ली जिसमें जन्म के समय बचा लिपटा रहता के सूत पढ़ते जाते हैं जिनमे अंत में कपड़ा तैयार हो जाता है। दी। है। ताने के सूतों में उक्त नियम के अनुसार बाने के सूतों बुरकाना-क्रि० स० [हिं० पुरकना का प्र० रू.५ ] पुरकने का को बैठाने की यही क्रिया "बुनना" कहलाती है। बिनना। काम दूसरे से कराना। दूसरे को बुरकने में प्रवृत्त (२) बहुत से सीधे और बेटे सूतों को मिलाकर उनको करना। कुछ के ऊपर और कुछ के नीचे से निकालकर अथवा बुरदू-संज्ञा पुं० [ अंक बोर्ड 1 (1) पात्र । बग़ल । (२) ओर । उनमें गोंट आदि देकर कोई चीज़ तैयार करना । जैसे, ! तरफ़ । (३) जहाज का बालबाला भाग । (४) जहाज़ का गुल्लूयंद बुनना, जाल बुनना । (३) बहुत से तारों वह भाग जो हवा या तूफान के रुख पर न पड़ता हो, आदि की सहायता से उक्त क्रिया मे अथवा उसम्मे मिलती बल्कि पीछे की ओर हो। (लश०) जुलती किपी और क्रिया से कोई चीज़ तैयार करना। बुरा-वि० [सं० विरूप ] जो अच्छा या उत्तम न हो। वरात्र । जैसे, मफड़ी का जाल बुनना। निकृष्ट । मंदा । संयो० कि०-सलमा।-देना। मुहा०-पुरा मानना टेप रखना । बैर रखना । ग्वार खाना । बुनाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बुनना+ई (प्रत्य॰)] (6) बुनने की यो०---बुरा भला--(१) हानि लाभ । अच्छा और खराब । (२) क्रिया या भाव । युनावट । (२) बुनने की मज़दी। । गाली गलौज । लानत मलागत । बुनावट-संज्ञा स्त्री० [हिं० बुनना+आवट (प्रत्य॰)] धुनने में सूतों; धुराई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बुरा+ई ( प्रत्य० ) ] (1) बुरे होने का की मिलावट का ढंग । सूतों के संयोग का प्रकार । भाव । बुरापन । खराबी । (२) खोटापन । नीचता । जैसे,-- बुनियाद-संशा श्री० [फा०] (1) जड़ । मूल । नींव । (२) हमने किसी के साथ बुराई नहीं की। (३) अवगुण । दोष । असलियत । वास्तविकता । दुर्गुण । ऐच । जैसे,—उसमें बुराई यही है कि वह बहुत खुषकना-कि० अ० [ अनु. ] ज़ोर ज़ोर से रोना । खुका फाइना । झठ बोलता है। (४) किसी के संबंध में कही हुई कोई बुरी गह मारना। बात । शिकायत । मिदा। जैसे,--तुम तो सब की पुराई बुधुकारी-संशा सी० [अनु० मुलुक+आरी (प्रत्य॰)] बाद मार ही करते फिरते हो। कर रोने की क्रिया। खुका फाइकर रोना। ज़ोर ज़ोर से | बुरादा-संशा पुं० [फा०] (0) वह चूर्ण जो लकदी को आरे से ६२२