पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१९४

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बुलाकी २४८० का खुलाकी-संज्ञा पुं० [तु० बुलाक] घोड़े की एक जाति । उ.--- ___ कर लेता है। कतरा । टोप। जैसे, पानी की बूंद, ओस मुश्की और हिरमंजिइराकी । तुरकी कंगी भुथोर बुलाकी । की बूंद, खन की बूंद, पसीने की बूंद। -जायसी। मुहा०-बूंदे गिरना या पड़ना-धीमी वर्षा होना । थोका थोपा खुलाना-क्रि० स० [हिं० बोलना का सक० रूप ] (1) आवाज पानी बरसना । बूंद भर--बहुत थोड़ा । देना । पुकारना। (२) अपने पास आने के लिये कहना। यौ०-बूंदाबांदी। (३) किसी को बोलने में प्रवृत्त करना। बोलने में दूसरे (२) वीर्य। (३) एक प्रकार का रंगीन देशी कपड़ा को लगाना। जिसमें बूंदों के आकार की छोटी छोटी बूटियाँ बनी होती बुलाषा-संज्ञा पुं० [हिं० बुलाना+आवा (प्रत्य॰)] बुलाने की क्रिया : है और जो नियों के लहँगे आदि बनाने के काम में आता है। या भाव । निमंत्रण। वि० बहुत अच्छा था तेज़ । (इस अर्थ में इसका क्रि० प्र०-आना।-जाना । भेजना। भ्यवहार केवल तलवार, कटार आदि काटनेवाले हथियारों बुलाह-संज्ञा पुं० [सं० वोलाइ ] वह धोका जिसकी गरदन और और शराब के संबंध में होता है।) छ के बाल पीले हों। ( अश्वद्यक) बूंदा-संज्ञा पुं० [हिं०] (1) बड़ी टिकुली। (२) सुराहीदार बुलि-संशा स्त्री० [हिं० ] योनि । मणि वा मोती जो कान वा नथ में पहना जाता है। बलिन-संज्ञा स्त्री० [अ० बुलियन ] एक विशेष प्रकार का रस्सा, बूंदाबांदी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बूंद+अनु० बाँद ] अल्प वृष्टि । जो चौकोर पाल के लग्घे में बांधा जाता है । (लश०) हलकी या योदी वर्षा। बुलेली-संज्ञा पुं० [तामिल ] मझोले आकार का एक पेड़ जो बूंदी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बूंद+ई (प्रत्य॰)] (३) एक प्रकार की मैसूर और पूर्वी घाट में अधिकता से होता है। इसकी मिठाई जो अच्छी तरह फेटे हुए बेसन को भरने में से लकही साकेद और चिकनी होती है और तस्वीरों के चौग्वटे, बूंद बूंद टपका कर और घी में छान कर बनाई जाती है। मेज़, कुरसियाँ आदि बनाने के काम में आती है। इसके यह मीठी और नमकीन दो प्रकार की होती है। नमकीन बीजों से एक प्रकार का तेल निकलता है जो मशीनों आदि खूनी बनाने के लिये पहले ही बेसन को घोलते समय के पुरज़ों में राला जाता है। उसमें नमक, मिर्च आदि मिला देते है; पर मीठी बंदी खुलौषा-संशा पुं० दे० "बुलावा"। बनाने के लिये बेसन घोलते समय उसमें और कुछ भी नहीं बुल्लन-संशा पुं० [ देश] (1) मुँह । चेहरा । (दलाली) । (२) मिलाया जाता। उसे घी में छानकर शीरे में जुया देते हैं गिरई की तरह की पर भूरे रंग की एक मछली जिसके और तब फिर काम में लाते हैं। छोटे दानों की बूंदी का मूंछे नहीं होती। लडु भी याँधते हैं जो बूंदी का लड्डू कहलाता है। संचा पुं० [अनु० या हिं० बुलबुला ] पानी का बुलबुला ऐसेही लड्डू पर जब कंद या दाने का चूर लपेट देते हैं बुदबुद । तब वह मोतीचूर का लड्डू कहलाता है। धुंदिया। (२) खुस-संशा पुं० [सं० तुष ] अनाज आदि के ऊपर का छिलका। वर्षा के जल की बूंद। भूसी। क्रि०प्र०-पहना। बुहरी-संज्ञा स्त्री० दे. "बहुरी"। बू-संशा स्त्री० [फा० ] (1) बाप । गंध । महक । (२) दुर्गंध । बुहारना-क्रि० स० [सं० बहुकर+ना (प्रत्य०) ] भाडू से जगह बदबू । साफ करना । झाड़ देना। झाइना। उ०-द्वार बुहारत क्रि० प्र०-आना ।-निकलना। फिरत अष्ट सिधि। कौरेन सथिया चीतति नवनिधि ।-मूर। आ-संशा स्त्री० [ देश० ] (1) पिता की बहन । फूफी । (२) बुहारा-संज्ञा पुं० [हिं० बुझारना ] साद की सीकों का बना हुआ बड़ी बहन । (३) सियों का परस्पर आदरसूचक संबोधन । बड़ा झाडू। (मुसल.)। (४) एक प्रकार की मछली जो भारत की बड़ी बहारी-संज्ञा स्त्री० [सं० बहुकरी हिं० गुहारना+ई (प्रत्य॰)] साहू.। . यदी नदियों में पाई जाती है। इसका मांस रूखा होता बढ़नी । सोहनी। है। ककसी। बँच, बूंछ-संज्ञा स्त्री० [हिं० गूंछ ] एक प्रकार की मछली। ई-संज्ञा पुं॰ [देश० ] ऊमरी और खार आदि की जाति का एक प्रकार का पौधा जो दिल्ली से सिंध तक और दक्षिण भारत बूंद-संज्ञा स्त्री० [सं० विंदु] (१) जल या और किसी तरल पदार्थ में पाया जाता है। इसे जलाकर सजीवार निकालते हैं। का वह बहुत ही थोबा अंधा जो गिरने आदि के समय कौदा। प्रायः छोटी सी गोली या दाने आदि का रूप धारण | बूक-संशा पुं० [ देश० ] माजूफल की जाति का एक प्रकार का २५ता