पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१९५

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बूकना २४८८ बड़ा वृक्ष जो पूर्वी हिमालय में ५००० से १००० कुट की बृजन-संज्ञा पुं० [फा०] बंदर । ( फलंदर ) ऊँचाई तक पाया जाता है। यह प्रायः ७५ से १०० हाथ बूजना-क्रि० स० [१] छिपाना । धोखा देना। उ०-पाडाबूजी तक ऊँचा होता है। इसकी लकड़ी यदि सूखे स्थान में रहे भगति है लोहर बाडा माहि। परगट पेड़ा इत बसै तह तो बहुत दिनों तक खराब नहीं होती। इस लकड़ी से खंभे, संत काहे को जाहि।-दादू । धौखटे और धरने आदि बनाई जाती है। दारजिलिंग के | बूझ-संशा स्त्री० [सं० बुद्धि] (1) समक्ष । बुद्धि । ल । ज्ञान । आस पास के जंगलों में इससे बढ़कर उपयोगी और कोई (२) पहेली । वृक्ष कदाचित् ही होता हो। वहाँ इसकी पत्तियों से चमड़ा झन*-संशा स्त्री० दे० "बुझ"। भी मिलाया जाता है। सलसी । बिझना-क्रि० स० [हिं० बूझ (बुधि)] (१) समझना। जानना । संशा पु० [हि. बकोटा ] हाथ के पंजों की वह स्थिति जैसे, किसी के मन की बात बृझना, पहेली वृझना । (२) जो उँगलियों को बिना हथेली से लगाए किसी वस्तु को । पूछना । प्रभ करना। पकड़ने, उठाने या लेने के समय होती है। चंगुल । बकोटा। वूट-संज्ञा पुं० [सं० विटप; हिं० बृट। 1 (1) चने का हरा पौधा । उ.-पुनि सँधान बहु आनहि परसहिं बूकहि बुक । (२) चने का हरा दाना । (३) वृक्ष । पेड़ । पौधा । उ०- करे सवार गुमाई जहाँ परी कछु चूक |-जायसी। सीता राम लपन निवास बास मुनिन को सिद्धि साधु मुकना-कि० स० [सं० वृक्षतोडा फोड़ा हुआ ] (1) सिल और | साधक विवेक बूट सी -तुलसी। बह की सहायता ये किसी चीज़ को महीन पीसना । पीस । संज्ञा पुं० [अं॰] एक प्रकार का अँगरेज़ी ढंग का जूता कर चूर्ण करना। जिससे पैर के गहे तक ढंक जाते हैं। संयो० क्रि०-डालना ।-देना । बूटनि*-संशा स्त्री० [हिं० बहूट! ] बीरबहूटी नाम का कीड़ा । (२) अपने को अधिक योग्य प्रमाणित करने के लिये गढ़ उ.-आछी भूमि हरी हरी आछी बूटनि की रेंगनि काम गढ़ कर बातें करना । जैसे, कानून बुकना, अंगरेज़ी बूकना। करोरनि । हरिदास । वृका-संशा ए० (दश वह भूमि जो नदी के हटने मे निकल बूटा-संशा पुं० [सं० विटप] (1) छोटा चश्न । पौधा । (२) आती है। गंग-बरार। एक छोटा पौधा जो पश्चिमी हिमालय में गढ़वाल से अफ़- संज्ञा पुं० दे० "बुक्का"। गानिस्तान तक पाया जाता है। (३) फूलों या वृक्षों आदि बूगा-संश पुं० [ देश० ] भूसा । के आकार के चिह्न जो काही या दीवारों आदि पर अनेक च-संशा पु० [अ० बूच ] बड़ी मेख । (लश०) प्रकार से ( जैसे, सूत, रेशम, रंग आदि की सहायता मुहा०-वृच मारना-गोले या गोली आदि की मार से होनेवाले से ) बनाए जाते हैं। बड़ी बूटी। छन्द को डाट लगा कर बंद करना । यौ०–बेल बूटा-किसी चीज पर बनाए हुए फूल पत्ते । बुटेदार= संक्षा पुं० [अ० बंच-गुच्छा ! करदे काग़ज़ या चमड़े: जिस पर बूटे बने हों।। आदि का वह टुकड़ा जो बंदूक आदि में गोली या बारूद बूटी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बूटा का स्त्री० रूप ] (१) वनस्पति । वनौ- को पथास्थान स्थिर रखने के लिये उसके चारों ओर लगाया षधि । जड़ी। (२) भांग। भंग। (मुहा० के लिये दे० जाता है । (लश०) "भंग"।) (३) एक पौधा जिसके रेशे से रस्सियाँ बनाई बूचड़-संज्ञा पुं० [अ० बुचर ] वह जो पशुओं का मांस आदि । जाती है। उदल ! गुलबादला । (४) फूलों के छोटे चिह्न बेचने के लिये उनकी हत्या करता है। कसाई । जो कपड़ों आदि पर बनाए जाते हैं। छोटा बृटा । (५) यौ०-चड़खाना। खेलने के ताश के पत्तों पर बनी हुई टिक्की । बूचड़खाना-संश पुं० [हिं० बू+का खाना ] वह स्थान जहाँ बूड, बृहना-संशा स्त्री॰ [ अनु० बबुक-टूबने का शब्द ] जल की पशुओं की हत्या होती है। कसाई-बाड़ा। इतनी गहराई जिसमें आदमी डूब सके। डबाव । बचा-वि० [सं० बुस-विभाग करना] (1) जिसके कान कटे | बृहना-क्रि० स० [सं० बुद्ध-दृबना ] (१) डूबना। निम्ज्जित हुए हों । कनकटा। (२) जिसके ऐसे अंग कट गए हों, होना। गर्क होना। उ.--(क) बड़े सकल समाज चढ़े अथवा न हों, जिनके कारण वह कुरूप जान पड़ता हो।: जो प्रथमहि मोह बस । तुलसी । (स्त्र) बूदत भव निधि जैसे,—पत्तियाँ शब जाने से यह पेड़ था मालूम होता है। नाव निवाहक । निगुणिन के तुमही गुणगाहक ।- खूची-वि० [हिं० बूचा ] वह भेद जिसके कान बाहर निकले रघुराजसिंह। हुए न हो, बहिक जिसके कान के स्थान में केवल छोटा (२) लीन होना। निमग्न होना । गूद विचार करना । उ०- सा छेद ही हो। गुजरी। अशा गुनि गौरि की बिलोकि गेह वारे लो एरी सखी रोग