पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/१९९

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वताना २४९२ बेकारी की लकड़ी। अरगल । गज । ग्योंदा। दे. "अरगल"। बेउँगा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] बाँस का वह चोंगा जिसे कंबल की बवताना-क्रि० स० [हिं० ब्योतना का प्रे० रूप ] न्योतने का काम पटिया बुनते समय ताने की साँधी अलग करने के लिए दूसरे से कराना । सिलाने के लिए किसी से कपड़ा नपवाना। ताने में रखते हैं। बे-अव्य० [सं० वि । मि. फा०] बिना । बगैर । (इसका प्रयोग | बेउज-वि० [ फा बे+अ० उजू ) जो आज्ञापालन अथवा और प्राय: फारसी आदि शन्नों के साथ यौगिक में होता है। | कोई काम करने में कभी किसी प्रकार की आपत्ति न करे। जैसे, बेगैरत, बेइज़्ज़त ।) येफदर-वि० [फा०] जिसकी कोई कदर या प्रतिष्ठा न हो। अव्य० [हिं० हे ] छोटों के लिए एक संबोधन शब्द जो बेइजत । अप्रतिष्ठित । प्रायः अशिष्टतासूचक माना जाता है। खेकदरी-संज्ञा स्त्री० [फा०] बेकदर होने का भाव । बेइज्जती । मुहा०—बे ते करना=किसी को तुच्छ समझते हुए उसके साथ अप्रतिष्ठा। ____ अशिष्टतापूर्वक बाते करना । बेकरा-संशा पुं० [देश॰] पशुओं का खुरपका नामक रोग। बेअंत* -क्रि० वि० [हिं० बे-बगैर+सं० अंत ] जिसका कोई - खुरहा। अंत न हो। अनंत । असीम । बेहद । बेकरार-वि० [फा०] जिसे शांति या चैन न हो। घबराया येअकल-वि० [ फा बे+अ० अक्ल ] मूर्ख । नासमझ । बेवाफ । हुआ व्याकुल । विकल। बेनकली-संशा स्त्री० [फा० + अ० अझ ] मूर्वता । बेबाकफी बेकरारी-संशा स्त्री० [फा०] बेकरार होने का भाव । घबराहट । बेअदब-वि० [ फा मे+अ. अदब ] जो किसी का अदब न बे चैनी । व्याकुलता । करता हो। जो यहों का आदर-सम्मान न करे। बेकल*- वि० [सं० विकल ] व्याकुल । विकल । बेचैन । येअदबी-संज्ञा स्त्री० [फा० ने+अ० अदब ] बेअदब होने का भाव। बेकली-संशा स्त्री० [हिं० बेकल+ई (प्रत्य॰)] (१) बेफल होने बड़ों का आदर-सम्मान न करना । गुस्ताखी । शोखी।। का भाव । घबराहट । बेचैनी । व्याकुलता । (२) स्त्रियों बेश्राब-वि० [फा० दे+अ० आम ] (१) जिसमें आब (चमक) का एक रोग जिसमें उनकी धरन या गर्भाशय अपने स्थान न हो। (२) जिसकी कोई प्रतिष्ठा न हो। से कुछ हट जाता है और जिसमें रोगी को बहुत अधिक बेश्राबरू-वि० [फा० ] जिसकी कोई प्रतिष्ठा न हो । बेइज्ज़त । पीड़ा होती है। बेत्राबी-संक्षा सी० [फा० बे+अ. आब ] बेआब होने का भाव । | बेकस-वि० [फा०] (1) निःसहाय । निराश्रय । (२) गरीब । मलिनता। निस्तेजता। मुहताज । दीन । (३) मातृ-पितृ-हीन । बिना माँ बाप बेधारा-संज्ञा पुं० [ देश० ] एक में मिला हुआ जौ और चना। का । अनाथ । यतीम । बेश्रोनी-संशा स्त्री॰ [देश॰] जुलाहों का एक औज़ार जो प्राय: | बेकहा-वि० [हिं० बे+कहना ] जो किसी का कहना न माने । कंधी के आकार का होता और ताने के सूत के बीच में किसी की आज्ञा था परामर्श को न माननेवाला। रहता है। घेकानूनी-वि० [फा० दे+अ० कानून ] जो कानून या कायदे बेइंसाफ़ी-संज्ञा स्त्री० [फा०] ईसाफ़ का अभाव । अन्याय के खिलाफ हो। नियमविरुद्ध । बेइज्जत-वि० [फा० बे+अ० इज्जत ] (1) जिसको कोई प्रतिष्ठा बेकाखू-वि० [फा० ने+अ० कानू] () जिसका अपने ऊपर न हो। अप्रतिष्ठित । (२) जिसका अपमान किया गया: काबू न हो। विवश । लाचार । (२) जिस पर किसी का हो। अपमानित । काबू न हो। जो किसी के वश में न हो। येइज्जती-संज्ञा स्त्री० [फा०] (1) अप्रतिष्ठा । (२) अपमान। बेकाम-वि० [हिं० ने+काम ] जिसे कोई काम न हो। निकम्मा । बेइलिा -संशा पुं० दे० "बेला" । उ०---मौलसिरी बेइलि अउ निठल्ला । ___ करना । सबइ फूल फूले बहु बरना।—जायसी। क्रि. वि. व्यर्थ । निरर्थक । बेमतलब । निष्प्रयोजन । येइल्म-वि० [ फा . बे+अ० इल्म ] जो कोई विद्या न जानता बेकायदा-वि० [फा० ने+अ० कायदा ) कायदे के खिलाफ । हो। जो कुछ पढ़ा लिखा न हो। नियमविरुव। बेमान-वि० [फा०] (1) जिसका ईमान ठीक न हो। जिसे | बेकार-वि० [फा०] (1) जिसके पास करने के लिए कोई काम धर्म का विचार न हो। अधर्मी। (२) जो विश्वास के न हो। निकम्मा । निठल्ला । (२) जो किसी काम में न आ योग्य न हो। अविश्वसनीय । (३) जो अन्याय, कपट या सके। जिसका कोई उपयोग न हो सके । निरर्थक । भ्यर्थ । और किसी प्रकार का अनाचार करता हो।। क्रि० वि० व्यर्थ । बिना किसी काम के । (प्रब) घेईमानी-संज्ञा स्त्री० [फा० ने+अ० ईमान ] बेईमान होने में बेकारी-संशा स्त्री० [फा०] बेकार होने का भाव । खाली का भाव। या नियम होने का भाव ।