पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२०

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फिटकी २३१३ फिरंग हत ! में खुलकर नीचे बैठ जाता है जिसे फिटकिरी का बीज कहते क्रि० प्र०-उठना ।—करना ।-पहना-मचाना । हैं। इस बीज ( अलमीनम सलफेट ) को गरम पानी में फितूरी-वि० [हिं० फितूर ] (1) झगडाल। लड़ाका । (२) घोलकर ६ भाग सलफेट आफ पोटाश मिला देते हैं। फिर उपद्रवी । फसादी। दोनों को आग पर गरम करके गाढ़ा करते हैं। पाँच छ: दिन फिदवी-वि० [अ० फिदाई से फा०] स्वामिभक्त । आज्ञाकारी। में फिटकिरी जम जाती है। फिटकिरी का व्यवहार बहुत संज्ञा पुं० [स्त्री० फिदविया ] दास । कामों में होता है। कसाव के कारण इसमें संकोचन का फिदा-संज्ञा पुं० दे० "पिहा" । गुण बहुत अधिक है। शरीर में पचते ही यह तंतुओं और फिनिया-संज्ञा स्त्री० [देश॰] एक गहना जो कान में पहना रक्त की नलियों को सिकोड़ देती है जिससे रक्तस्राव आदि जाता है। उ.--छोटी छोटी ताजै शीश राजे ग्रहराज कम या बंद हो जाता है। फिटकिरी के पानी से धोने से सम, छोटी छोटी फिनियाँ फबी हैं छोटे कान आई हुई आँख भी अच्छी होती है। वैद्यक में फिटकिरी गरम, में।-रघुराज ।। कसली, झिल्लियों को संकुचित करनेवाली तथा वात, फिनीज-संज्ञा स्त्री० [स्पे० पिनज ] एक छोटी नाव जिस पर दो पित्त, कफ, व्रण और कुष्ट को दूर करनेवाली मानी जाती मस्तूल होते हैं और जो डाँड़े से चलाई जाती है। है। प्रदर मूत्रकृच्छ, वमन, शोथ, त्रिदोष और प्रमेह में फिया-संज्ञा स्त्री० [सं० प्लीहा ) प्लीहा 1 तिल्ली । भी वैद्य इसे देते हैं। कपड़े की रंगाई में तो यह बड़े ही फिरंग-संज्ञा पुं० [अ० फ्रांक ] (१) युरोप का देश । मारों का काम की चीज़ है। इससे कपड़े पर रंग अच्छी तरह चढ़ मुल्क । फिरंगिस्तान । जाता है । इसीसे कपड़े को रंगने के पहले फिटफिरी के विशेष-झांक नाम का जरमन जातियों का एक जत्था था पानी में बोर देते हैं जिसे जमीन या अस्तर देना कहते जो ईसा की तीसरी शताब्दी में तीन दलों में विभन. हुआ। हैं। रंगने के पीछे भी कभी कभी रंग निखारने और इनमें से एक दल दक्षिण की ओर बढ़ा और गाल (फ्रांस बराबर करने के लिए कपड़े फिटकिरी के पानी में बोरे । का पुराना नाम ) से रोमन राज्य उठाकर उसने वहाँ अपना जाते हैं। अधिकार जमाया । तभी से फ्रांस नाम पड़ा । सन् १०९६ फिटकी-संज्ञा स्त्री० [ अनु.] (1) छींटा । (२) सूत के छोटे और १२५० ई. के बीच युरोप के ईसाइयों ने ईमा की छोटे फुचरे जो कपड़े की बुनावट में निकले रहते हैं। : जन्मभूमि को तुर्कों के हाथ से निकालने के लिए कई

  • संज्ञा स्त्री० दे० "फिटकिरी"।

चढ़ाइयाँ की। फ्रांक शब्द का परिचय तभी से तुकों को फिटन-संज्ञा स्त्री० [अं0 ] चार पहिये की एक प्रकार की खुली , हुआ और वे युरोप से आनेवालों को फिरंगी कहने लगे। गाड़ी जिसे एक या दो घोड़े खींचते हैं। धीरे धीरे यह शब्द अरब, फारस आदि होता हुआ हिंदु- फिट्टा-वि० [हिं० फिट ] फटकार खाया हुआ। अपमानित । स्तान में आया। हिंदुस्तान में पहले पुर्तगाली दिखाई उत्तरा हुआ। श्रीहत । उ०-आप में तो सकत नहीं, फिर पड़े इससे इस शब्द का प्रयोग बहुत दिनों तक उन्हीं के ऐसे राजा का, फिट्टे मुँह । हम कहाँ तक आपको सताया लिए होता रहा । फिर युरोपियन मात्र को फिरंगी कहने करेंगे । इनशा० । लो। मुहा०-फिश मुँह-उतरा या फीका पड़ा हुआ चेहरा । । (२) भावप्रकाश के अनुसार एक रोग। गरमी। आतशक । फितना-संज्ञा पुं० [अ०] (1) वह उपद्रव जो अचानक किसी विशेष पहले पहल भावप्रकाश में ही इस रोग का उल्लेख कारण से उठ खड़ा हो। झगड़ा। दंगा फसाद ।। दिखाई पड़ता है और किसी प्राचीन वैद्यक ग्रंथ में नहीं क्रि० प्र०-उठना । —उठाना। है। भावप्रकाश में लिखा है कि फिरंग नाम के देश में (२) एक फूल का नाम । (३) एक प्रकार का इत्र।। यह रोग बहुत होता है इससे इसका नाम फिरंग है। यह फितरती-वि० [अ० फ़ितरत+ई] (1) चालाक । चतुर । (२) भी स्पष्ट कहा गया है कि फिरंग रोग फिरंगी स्त्री के साथ फितूरी । मायावी । धोखेबाज़ ।। संभोग करने से हो जाता है। इस रोग के तीन भेद किये फितूर-संज्ञा पुं० [अ० फूतूर ] [ वि० फितूरी ] (१) न्यूनता । हैं-वाय फिरंग, आभ्यंतर फिरंग और बहिरंतर्भव फिरंग। घाटा । कमी। वाह्य फिरंग विस्फोटक के समान शरीर में फूट फूट कर क्रि० प्र०—आना।—पड़ना । निकलता है और घाव या प्रण हो जाते हैं। यह सुख- (२) विकार । विपश्य॑य । खराबी। साध्य है। आभ्यंतर फिरंग में संधि स्थानों में आमवात के क्रि० प्र०-आना।-उठना ।-पबना । समान शोथ और वेदना होती है। यह कष्टसाध्य है। (३) झगड़ा। बखेड़ा । दंगा फसाद । उपद्रव । बहिरंतर्भव फिरंग एक प्रकार असाध्य है।