पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२०१

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बेचघाना २४९४ बेठन संयाक्रि--डालना ।-देना।। होते है जिनसे यह अपने रहने के लिए बिल खोदता है। मुहा०—बेच खाना-खो देना । गवा देना । 30-(क) सुनु इसका मांस खाया जाता है और इसकी दुम के बालों से मया याकी देव लरन की सकुच चि सी खाई।-मुलसी। चित्रों आदि में रंग भरने या दादी में साबुन लगाने के (ख) पुरुष केरी सबै सोहै कुबरी के काज । सूर प्रभु की शुरुश बनाए जाते हैं। प्रायः शिकारी लोग इसे बिलों से कहा कहिए बैंच खाई लाज। सूर । ज़बरदस्ती निकालकर कुत्तों से इसका शिकार कराते है। बेचवाना-क्रि० स० दे० "बिकवाना"। बेजोड़-वि० [फा० बे+हिं० जोड़ ] (1) जिसमें जोब न हो। बेचाना-फि० स० [हिं० ] दे. "यिकवाना"। जो एक ही टुकड़े का बना हो। अखंड। (२) जिसके बेचारा-वि० [ 10 ] [स्त्री० बेचारी ] जो दीन और निस्सहात जोड़ का और कोई न हो। जिसकी समता न हो सके। हो। जिसका कोई साधी या अवलंब न हो। ग़रीब । दीन । अद्वितीय । निरुपम । बचिराग-वि० [फा०+चिराग ] जहाँ दीआ तक न वझरा- संज्ञा पुं० [हिं० भरना --मिलाना ] गेहूं, जौ, मटर, चने जलता हो । उजड़ा हुआ। इत्यादि अनाजों में से कोई दो या तीन मिले हुए अझ । बचन-वि० [फा०] जिस किसी प्रकार चैन न पड़ता हो। | बेझा*-संक्षा पुं० [सं० वेध ] निशाना। लक्ष्य । उ०—(क) वदन ___व्याकुल । विकल । बेकल । के बेझे पै मदन कमनैती के चुटारी शर घोटन चटा से बेचनी-संवा स्त्री० [फा०] बेचैन होने का भाव । विकलता।। चमकत है।-देव । (ख) तिय कत कमनैती पड़ी बिन व्याकुलता । बेकली । घबराहट । जिह भौंह कमान । चित चल बेझे चुकति नहि बैंक बेजड़-वि० [फा० बे+हि. जड़ ] जिसकी कोई जब या बुनि बिलोकनि वान ।-बिहारी। याद न हो। जिसके मूल में कोई तव या सार न हो। वटकी*-संज्ञा स्त्री० [हिं० वटा] बेटी । कन्या । पुत्री । लड़की। जो यों ही मन से गढ़ा या बना लिया गया हो। निर्मूल । | 30-ऊँचे नीचे करम धरम अधरम करि पेटही को पचत जैग,-आप तो रोज़ यों ही बेजब की बातें उड़ाया बेचत बेटा बेटकी।—तुलसी । | बेटला-संज्ञा पुं० दे० "बेटा" । उ०-गई गाँव के बेटला मेरे बेज़वान-वि० [फा०] (8) जिसमें बातचीत करने की शक्ति न ! आदि सहाई । इनकी हम लज्जा नहीं तुम राज बड़ाई। हो। जो बोलकर अपने मन के भाव प्रकट न कर सकता -सूर । हो। मूंगा। मूक । जैसे,--श्रेज़बान जानवरों की रक्षा | बंटवा -संज्ञा पुं० दे० "बेटा"। करनी चाहिए । (२) जो अपनी दीनता या नम्रता के | बेटा-संज्ञा पुं० [सं० बटु-बालक] [स्त्री० बेटी ] पुत्र । सुत । कारण किसी प्रकार का विरोध न करे। दीन । गरीब । लड़का। बेजा-वि० [फा०] (१) जो अपने उचित स्थान पर न हो। मुहा०-बेटा बनाना=किसी बालक को दत्तक लेकर अपना पुत्र बेठिकाने । वेमौके । (२) अनुचित । नामुनासिव । (३) बनाना । बेटेवाला-वर का पिता अथवा वर-पक्ष का और कोई ख़राब । धुरा। बड़ा आदमी। बेटीवाला बधू का पिता अथवा बधू-पक्ष का और बेजान-वि० [फा० ] (१) जिसमें जान न हो। मुरदा। मृतक। कोई बड़ा आदमी। (२) जिसमें जीवन शक्ति बहुत ही थोड़ी हो। जिसमें । यौ०-बेटा बेटी संतान । औलाद । बेटे पोते-संतान और संतान कुछ भी दम न हो। (३) मुरझाया हुआ। कुम्हलाया की संतान । पुत्र, पौत्र आदि । हुआ। (४) निर्बल । कमज़ोर । | बेटौना-संज्ञा पुं० दे. "बेटा"। बेज़ाब्ता-वि० [फा० बे+अ० जान्ता ] जो जाब्ते के अनुसार न चट्टा-संज्ञा पुं० [ देश ] एक प्रकार का भंसा जो मैसूर देश में हो।कानून या नियम आदि के विरूद्ध । जैसे,—जान्ते की होता है। कार्रवाई न करके आप बेज़ाब्ता काम क्यों करने गए। संशा पुं० दे. "बेटा"। बेज़ार-वि० [ 10 ] जो किसी बात से बहुत तंग आ गया हो। बेठ-संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार की उसर ज़मीन जिसे बीहर जिसका चित्त किसी बात से बहुत दु:खी हो । जैसे,—आप भी कहते है। तो दिन पर दिन अपनी जिंदगी से बेज़ार हुए जाते हैं। संशा स्त्री० दे० "अंठ" । बेज़-संशा पं० [अ० बैजर ] हे दो हाथ लंबा एक प्रकार का बेठन-संज्ञा पुं० [सं० बेठन ] वह कपड़ा जो किसी चीज़ को जंगली जानवर जो प्रायः सभी गरम देशों में पाया जाता . गर्द आदि से बचाने के लिए उस पर लपेट दिया जाय । है। इसके शरीर का रंग भूरा और पैर छोटे होते हैं। यह कपया जो किसी चीज़ को लपेटने के काम में आये । इसकी दुम बहुत छोटी होती है और पंजे लये तथा हद बंधना।