पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२०४

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येनजीर बेदखली-संज्ञा स्त्री० [फा०] दखल या कम्जे का हटाया जाना है। (३) एक प्रकार का अरिश्क जिसे अंबरवारी या अथवा न होना । अधिकार में न रहने का भाव । (इसका कश्मस भी कहते हैं। दारुहल्दी । चित्रा । वि० दे. "घर- व्यवहार केवल स्थावर संपत्ति के लिये होता है।) बारी"। (४) एक प्रकार का मीठा छोटा शहतूत । (५) बेदनरोग-संज्ञा पुं० [सं० वेदना+रोग ] पशुओं का एक प्रकार एक प्रकार की छोटे दाने की मीठी बुदिया जो बहुत का छत वाला भीषण ज्वर जिसमें रोगी पशु बहुत सुस्त रसदार होती है। होकर काँपने लगता है, उसका सारा शरीर गरम और लाल वि० [हिं० बे (प्रत्य॰) का० दाना=बुद्धिमान् ] जो दाना या हो जाता है, उसे भूख बिलकुल नहीं और प्यास बहुत समझदार न हो। मूर्ख । बेवकूफ । उ०-वेदाना से होत अधिक लगती है और पाखाने के साथ आँध निकलती है।। है दाना एक किनार । बेदाना नहि भादरी दाना एक बेदम-वि० [फा०] (1) जिसमें दम या जान न हो। मृतक। अनार । रसनिधि । मुरवा । (२) जिसकी जीवनी शक्ति बहुत घट गई हो। बेदाम-संज्ञा पुं० दे. "बादाम"। मृतप्राय । अधमरा।(३) जो काम देने योग्य न रह गया कि.वि. बिना दाम का। जिसका कुछ मूल्य न दिया हो । जर्जर । बोदा। गया हो। बेदमजनूँ-संज्ञा पुं० [फा०] एक प्रकार का वृक्ष जिसकी शाखाएं बेधड़क-क्रि० वि० [फा० बे+हिं० धड़क ] (1) बिना किसी बहुत झुकी हुई रहती हैं और जो इसी कारण बहुत मुर प्रकार के संकोच के। नि:संकोच। (२) बिना किसी प्रकार झाया और ठिठुरा हुआ जान पड़ता है। इसकी छाल और के भय या आशंका के । बेखौफ़ । निडर होकर । (३) फलों आदि का व्यवहार औषध में होता है। बिना किसी प्रकार की रोक टोक के । बे रुकावट । (५) बेदमल, बेदमाल-संज्ञा पुं॰ [देश० लकड़ी की वह तख्ती जिप बिना आगा-पीछा किए। बिना कुछ सोचे समझे। पर तेल लगाकर सिकलीगर लोग अपना मरिकला नामक वि० (१) जिसे किसी प्रकार का संकोच या खटका न हो। औज़ार रगडकर चमकाते है। निद्र । (२) जिसे किसी प्रकार का भय या आशंका न बेदमुश्क-संज्ञा पुं० [फा०] एक प्रकार का वृक्ष जी पश्चिम भारत हो। निडर । निर्भय । और विशेषत: पंजाब में अधिकता से होता है । इसमें एक बेधना-क्रि० स० [सं० बेधन ] (1) किसी नुकीली चीज़ की प्रकार के बहुत ही कोमल और सुगंधित फूल लगते हैं सहायता से छेद करना । सूराव करना । छेदना । भेदना। जिनके अर्क का व्यवहार औषध के रूप में होता है । यह जैसे, मोती बेधना । (२) शरीर में क्षत करना । घाव करना। अर्क बहुत ही ठंडा और चित्त को प्रसन्न करनेवाला माना . बेधर्म-वि० [सं० विधर्म ] जिसे अपने धर्म का ध्यान न हो। जाता है। धर्म मे गिरा हुआ। धर्मच्युत। बेदरी-वि०० "बिदरी"। बेधीर-वि० [फा० बे+हिं . धीर } जिसका धर्य टूट गया हो। घेदर्द-वि० [फा०] जिसके हृदय में किसी के प्रति मोह या दया अधीर । उ०-अधर निधि बेधीर करिक करतानन हास। न हो । जो किसी की व्यथा को न समझे । कठोर हृदय। फिरे भाँवरिखस्म भूषण अग्नि मानो भास। -सूर । निर्दय । बेनंग-संशा पुं० [ देश० ] छोटी जाति का एक प्रकार का पहाड़ी बेदर्दी-संशनी [फा०] बेदर्द होने का भाव । निर्दयता। बेर बाँस जो प्रायः लता के समान होता है। इसकी टहनियों हमी । कठोरता। से लोग छप्परों की लकड़ियाँआदि बाँधते हैं । यह जयंतिया

  • वि० दे० "बेदर्द"।

पहादी में होता है। घेदलैला-संशा पुं० [फा०] एक प्रकार का पौधा जिसमें सुदर बेना-संज्ञा पुं० सं० वेणु] (1) बंशी । मुरली । बाँसुरी । (२) फूल लगते हैं। सरों के बजाने की सूमडी । महुवर । (३) बाँस । (४) एक बेदाग-वि० [फा०] (१) जिसमें कोई दाग था धा न हो। प्रकार का वृक्ष । उ०-बेन बेल अरु तिमिस तमाला । साफ़ । (२) जिसमें कोई ऐब न हो । निर्दोष । शुद्ध । (३). संज्ञा पुं॰ [अं० वेन ] एक प्रकार की मंडी जो जहाज के जिसने कोई अपराध न किया हो। निरपराध । बेकसूर।। मस्तूल पर लगा दी जाती है और जिसके फहराने से यह बेदाना-संज्ञा पुं० [हिं० विहीदाना या का० +दामा] (1) एक प्रकार पता चलता है कि हवा किस रूख की है। (ल.) का बढ़िया काबुली अनार जिसका छिलका बहुत पतला ___ संचा पुं० [अं० विंड ] हवा । वायु । (लश.) होता है। (२) बिहीवाना नामक फल का बीज जिसे पानी यो...बोनसेद।। में भिगाने से लुभाब निकलता है। लोग प्राय: इसका शर-, बेनडर-संक्षा पुं.. "बिनौला"। बत बनाकर पीते हैं। यहवा और बलकारक माना जाता । बेनजीर-वि० [फा०+10 नजीर ] जिसके समान और कोई