पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२०७

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बेरादरी २५०० बेल संशा पुं० [देश॰] एक में मिला हुआ जौ और चना । | बेरोज़गार-वि० [फा०] जिसके हाथ में कोई रोज़गार न हो। जिसके पास करने को कोई काम-धंधा न हो। संज्ञा पुं० दे० 'बेड़ा"। बेरोजगारी-संज्ञा स्त्री० [फा०] बेरोजगार होने का भाव । संज्ञा पुं० [अ० बेअरर-वाइक ] यह चपरासी, विशेषतः | बेरौनक-वि० [फा०] जिस पर रौनक न हो। जिसकी शोभा साहब लोगों का वह चपरासी जिसका काम चिट्ठी-पत्री या | न रह गई हो। उदास । समाचार भादि पहुँचाना और ले आना आदि होता है। क्रि० प्र०-छाना ! --होना। बेरादरी-संज्ञा पुं० दे. “बिरादरी"। बेरौनकी-संशा स्त्री० [फा०] बेरौनक होने का भाव । बेरामा-वि० दे० "बीमार"। बेग-संज्ञा पुं० [देश॰] (1) मिले हुए जौ और चमे का बरामी -संज्ञा स्त्री० दे० "बीमारी"। ___आटा । (२) कोई का फल ।। थेरिधा-संज्ञा स्त्री० [सं० वेला समय ] बेला । समय। | बेरांबरारीसंज्ञा पुं० [हिं० बराजौ और चना+फा. मरार- बेरिजा-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] किसी जिले की कुल जमा । लादा हुआ ] अन्न की उगाही। बेरियाँ-संज्ञा स्त्री० [हिं० बेर ] समय । वक्त। काल । खेला। लंदा-वि० [फा० बलंद ] (1) ऊँचा । उ०-(क) पद बेलद उ.-पिया भाषन की भई बेरियाँ दरवजवाँ ठाढी रहूँ। परे जो पाऊँ । तो लोको पर लोक न ठाऊँ। विश्राम । -गीत । (ख) मम सुकृत जागी भूरि भागी भयो विश्व बेलद।- बेरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बेर (फल)] (1) एक प्रकार की लता जो रघुराज। (ग) रघुराज ब्याह होत है गई बेलम आँखें हिमालय में होती है। इसके रेशों से रस्सियां और मछली मिथिला निवासिन मिताई नई की है।-रघुराज । (२) फँसाने के जाल बनते हैं। इसे 'मुस्कूल' भी कहते हैं। जो बुरी तरह परास्त या विफल-मनोरथ हुआ हो। (व्यंग्य) (२) दे. "बेर"। (३) एक में मिली हुई सरसों और | बेलंध*-संज्ञा पुं० दे० "विलंब"। तासी। बेल-संज्ञा पुं० [सं० बिल्व ] मझोले आकार का एक प्रसिद्ध संज्ञा स्त्री० दे० "बेदी"। कॅटीला वृक्ष जो प्रायः सारे भारत में पाया जाता है। संज्ञा स्त्री० [हिं० बार-दफा] (1) दे० "बेर"। (२) इसकी लकड़ी भारी और मजबूत होती है और प्रायः उत्तना अनाज जितना एक बार चाकी में डाला जाता है। देसी के औजार बनाने और इमारत के काम में आती है। अनाज की मुट्ठी जो चक्की में डाली जाती है। इससे ऊख पेरने के कोल्हू और मूमल आदि भी अच्छे बेरीछत-संशा पु० [देश॰] एक शब्द जो महावत लोग हाथी को बनते हैं। इसकी ताज़ी गीली लकड़ी चंदन की तरह पवित्र किपी काम से मना करने के लिये कहते हैं। मानी जाती है और उसे चीरने से एक प्रकार की घेरुआ-संज्ञा पुं० [ देश० ] बाँस का वह टुकरा जो नाव स्वींचने सुगंध निकलती है। इसमें सफेद रंग के सुगंधित फूल भी की गून में भागे की ओर बैंधा रहता है और जिसे कंधे पर होते हैं । इम्पकी पत्तियाँ एक सीके में तीन तीन ( एक रखकर मल्लाह खींचते हुए चलते हैं। सामने और दो दोनों ओर ) होती हैं जिन्हें हिंदू लोग बेही संज्ञा स्त्री० [देश॰] वेश्या । रंडी। महादेव जी पर चढ़ाते हैं। इसमें कैथ से मिलता बेरुकी -संज्ञा स्त्री० [ देश ] एक रोग जिसमें बैलों की जीम पर जुलता एक प्रकार का गोल फल भी लगता है, जिसके ऊपर काले काले छाले हो जाते है और उसे बहुत कष्ट देते हैं। का छिलका बहुत कड़ा होता है और जिसके अंदर गूवा बेरुख-वि० [फा०] (१) जो समय पड़ने पर रुख (मुंह) फेर और बीज होते हैं। पक्के फल का गूदा बहुत मीठा होता है ले। बेमुरश्वत । (२) नाराज़ । क्रुद्ध । और साधारणतः खाने या शरबत आदि बनाने के काम में क्रि० प्र०—पड़ना ।-होना।। आता है। फल औषध के काम में भी आता है और उसके बेरुखी-संशा स्त्री० [फा०] बेहख होने का भाव । अवसर पड़ने कच्चे गूदे का मुरब्बा भी बनता है। वैद्यक में इसे मधुर, पर मुंह फेर लेना । बेमुरव्वती। कसैला, गरम, हवय को हितकारी, रुचिकारक, दीपन, क्रि०प्र०—करना ।-दिखाना। ग्राही, रूखा, पित्तकारक, पाचक और वातातिसार तथा बेरुपा-वि० [सं० विरूप] भद्दी शलवाला। कुरूप । बदशल्ल । ज्वरनाशक माना है। श्रीफल । बेरोक-क्रि०वि० [फा०+हिं० रोक ] बिना किसी प्रकार की पर्या--विष्य । महाकपित्थ । गोहरीतकी । पूतिवात । ___ रुकावट के । बेखटके । निर्विन । मंगल्य । त्रिशिल । मादर । महाफल । शल्य । शैलपत्र । चौ०-वेरोक टोक निर्विघ्नतापूर्वक । बिना किसी रुकावट या पत्रोध । विपत्र । गंधपत्र । लक्ष्मीफल । गंधफल । अडचन के। शिवदुम । सदाफल | सत्यफल ।