पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२०८

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दल २५०१ बेलन संशा पुं० [सं० मह या महो ] वह स्थान जहाँ शकर तैयार क्रि० प्र०-डालना। होती हो। (३) एक प्रकार का लंबा खुरपा । संचा पुं० [अं०] पदे या काग़ज़ आदि की वह बबी गठरी *संज्ञा पुं० बेले का फूल । उ.-सिय तुब अंगरंग मिलि जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने के लिये बनाई अधिक उदोत । हार बेलि पहिरावों पचपक होत ।-तुलसी। जाती है। गाँठ।

  • सिंज्ञा पुं० दे. "बेला"।

संज्ञा स्त्री० [सं० वली (1) वनस्पति शास्त्र के अनुसार वे बेलका-संज्ञा पुं॰ [देश. ] फरसा । फावड़ा। छोटे कोमल पौधे जिनमें कार या मोटे तने नहीं होते और बेलकी-संशा पुं० [देश॰] घरवाहा । जो अपने बल पर अपर की ओर उठकर नहीं बढ़ सकते। वेलखजी-संशा पुं० [देश॰] एक प्रकार का बहुत ऊँचा वृक्ष बल्ली । लता । लसर । जिसके हीर की लकड़ी लाल होती है। यह पूर्वी हिमालय विशेष साधारणतः बेल दो प्रकार की होती है। एक वह । में ४००० फुट की ऊँचाई तक होता है। इसकी लकड़ी जो अपने उत्पन्न होने के स्थान से आस-पास के पृथ्वी-सल मज़बूत होती है जिससे चाय के संदक, हमारती और अथवा और किसी तल पर दूर तक फैलती हुई चली जाती आरामशी सामान तैयार किए जाते हैं। वृक्ष को काटने के है। जैसे, कुम्हड़े की बेल । दूसरी वह जो आस-पास के | बाद इसकी जड़ें जल्दी फूट आती हैं। वृक्षों अथवा इसी काम के लिये लगाए हुए बाँसों आदि के बेलगगरा-संज्ञा स्त्री० [देश० ] एक प्रकार की मछली। सहारे उनके चारों ओर घूमती हुई ऊपर की ओर जाती है। बेलगिरी-संशा स्त्री० [हिं० रेल+गिरी-मांगी ] बेल के फल जैसे, सुरपेचा, मारती आदि । साधारणतः बेलों के तने | का गूदा । बहुत ही कोमल और पतले होते हैं और ऊपर की ओर ! बलचका-संज्ञा पुं० दे० "बेलचा"। आपसे आप खड़े नहीं रह सकते।। बेलचा-संज्ञा पुं॰ [फा०] (1) एक प्रकार की छोटी कुदाल जिससे मुहा०-बेल मॅढ़े चढ़ना=किसी कार्य का अंत तक ठीक ठीक माली लोग बाग की क्यारियों आदि बनाते हैं। (२) कोई पूरा जतरना । आरंभ किए हुए कार्य में पूरी सफलता होना। छोटी कुदाल । कुदारी । (३) एक प्रकार की लंबी खुरपी। (२) संतान । वंश। बेलज्जत-वि० [ 'का. ] जिसमें किसी प्रकार का स्वाद न हो। मुहा०-बेल बदनावंश वृद्धि होना । पुत्र-पौत्र आदि होना। स्वादु-रहित । (२) जिसमें कोई सुम्ब न मिले । जैसे, (३) विवाह आदि में कुछ विशिष्ट अवसरों पर संबंधियों गुनाह बेलज्जत । और बिरादरीवालों की ओर से हजामों, गानेवालियों और बेलडो-संशा श्री० [हिं० बल+ढी (प्रत्य०) छोटी बेल या इसी प्रकार के और नेगियों को मिलनेवाला थोदा थोदा धन। एता । बौर । क्रि० प्र०-देना।-पड़ना । | बेलदार-संज्ञा पुं० [फा० ] वह मजदूर जो फावड़ा चलाने या (१) कपड़े या दीवार आदि पर एक पंक्ति में दूर तक! ज़मीन खोदने का काम करता हो। बनी हुई फूल पत्तियाँ आदि जो देखने में बेल के समान बेलदारी-संज्ञा स्त्री० [फा०] फावड़ा चलाने का काम । बेलदार जान पड़ती हों। (५) रेशमी या मखमली फीते आधि का काम। पर जरदोजी आदि से बनी हुई इसी प्रकार की फूल-पत्तियाँ | बेलन-संज्ञा पुं० [सं० वलन ] (1) लकबी, पत्थर या लोहे आदि जो प्रायः पहनने के कपड़ों पर टॉकी जाती है। का बना हुआ वह भारी, गोल और दंड के आकार का खंड यौ०–बेलबूटा। जो अपने अक्ष पर घूमता है और जिसे लुढ़काकर किसी क्रि० प्र०-टाँफना।—लगाना । चीज़ को पीसते, किसी स्थान को समतल करते अथवा (६) नाव खेने का डर । बल्ली। कद पत्थर आदि कूटकर सड़के बनाते हैं। रोलर । (२) (७) घोड़ों का एक रोग जिसमें उनका पैर नीचे से ऊपर । किसी यंत्र आदि में लगा हुआ इस आकार का कोई बड़ा तक सूज जाता है। बदनाम । गुमनाम । पुरज़ा जो धुमाकर दबाने आदि के काम में आता है। संश पुं० [फा० बेलच:] (1) एक प्रकार की कुदाली जिससे जैसे, छापने की मशीन का बेलन, ऊख पेरने की कल मज़दूरे ज़मीन खोदते है। का बेलन । (३) कोल्हू का जाठ । (४) करघे में का यौ०-बेलदार। पौसार । वि.दे. "पौसार" । (५) रुई धुनकने की (२) सहक आदि बनाने के लिये चूने आदि से जमीन पर मुठिया या हत्या । वि० दे. "धुनको"। (६) कोई गोल डाली हुई लकीर जो केवल चिह्न के रूप में अथवा सीमा और लंबा लुढ़कनेवाला पदार्थ । जैसे,---छापने की कल में निर्धारित करने के लिये होती है। स्याही लगानेवाला बेलन । (७). "बेलना"।