पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२१०

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बेघरेवार २५०३ बेसाहा बेषरेषार-वि० [हिं० बेवरा+बार (प्रत्य॰) ] तफ़सीलवार । बेसन-संशा पुं० [ देश. चने की दाल का आया चने का विवरण सहित । आटा । रेहन । बेधस्था-संज्ञा स्त्री० हे. "व्यवस्था"। बेसनी-वि० [हिं० बेसन (प्रत्य॰)] बेसन का बना हुआ। बेघहरना-क्रि० अ० [सं० व्यवहार ] व्यवहार करना। बरसाव संज्ञा स्त्री० (१) बेसन की बनी हुई पूरी। (२) वह कचौरी करना । बरतना । जिसमें बेसन भरा हो। बेवहरिया*-संज्ञा पुं० [सं० व्यवहार+इया (प्रत्य॰)] (1) लेन- | बेसबब-क्रि० वि० [फा० ] बिना किसी सबब या कारण के। देन करनेवाला । महाजन | उ-जेहि बेवहरिया कर बेव अकारण । हारू । काले देव जउँ ठेकहि बारू। जायसी । (२) | बेसषग-वि० [ फा +अ० सा+आ (प्रत्य०) ] जिसे सत्र या लेन-देन का हिसाब किताब करनेवाला । मुनीम । उ.- संतोष न होता हो । जो संतोष न रख सके । अधीर । अय आनिय वेवहरिया बोली । तुरत देउँ मैं थैली खोली। बेसवरी-संशा श्री० [फा. ] बेसन होने का भाव । अधैर्य । -तुलसी। असंतोष । बेवहार-संशा पुं० दे० "व्यवहार"। बेसमझ-वि० [फा० दे+हिं० समझ ] मूर्ख । निर्बुद्धि । नासमझ । बेवा-संज्ञा स्त्री० [फा०] वह स्त्री जिसका पति मर गया हो। बेसमझी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बेसमझ+ई (प्रत्य०) ] बेसमझ होने विधवादि। का भाव । नासमझी। मूर्खता। बेवाई-संज्ञा स्त्री० दे० "बिवाई"। बेसरा-वि० [फा० ने+सरा ठहरने का स्थान ] जिसे ठहरने का बेवान*-संज्ञा पुं० दे० "विमान"। कोई स्थान म हो । आश्रयहीन । उ०-विहितरी कहूँ बेश-संज्ञा पुं० दे० "वंश"। निवहत सुनौ लगर अगर हित बेस । बासौ पावत बेसरा बेशकर-वि० [फा० बे+अ० शऊर ] जिसे कुछ भी शऊर न हो। सही प्रेम के देस।-रसनिधि । मूर्ख । फूहर। नासमझ । बेसलीका। संज्ञा पुं॰ [देश॰] एक प्रकार का शिकारी पक्षी। उ बेशकरी-संज्ञा स्त्री० [ फा ने+10 शऊर+ई (प्रत्य॰)] बेशकर बहरी सुबेसरा कुही संग । जे गहत नीर घर बहुत खंग । होने का भाव । मूर्खता । नासमझी। बेशक-क्रि० वि० [फा० अ० शक ] बिना किसी शक के। बेसरांसामान-वि० [फा० ] जिसके पास कुछ भी सामग्री न ___ अवश्य । नि:संदेह । ज़रूर । हो। दरिद्र । कंगाल । बेशकीमत, वेशकीमती-वि० [फा०पेश+अ० क्रीमत ] जिसका | बेसवा-संज्ञा स्त्री० [सं० वेश्या ] रंडी। वश्या । काम्बी मूल्य बहुत अधिक हो । बहुमूल्य । मूल्यवान । बेसघार-संशा पुं० [देश॰] वह समाया हुआ मसाला जिससे बेशरम-वि० [फा० बर्शम ] जिसे शर्म-हया न हो। निर्लज । शराब चुआई जाती है। जाया। येहया। उ०-बाँह पकरितू ल्याई काको अति बेशरम ! बेसा*-संज्ञा स्त्री० [सं० वेश्या ) रंडी। वारांगना । कस्त्री। गँवारि । सूरस्याम मेरे आगे खेलत जोबनमद मतवारि।। उ.-पुनि सिंगारहार धनि देसा । कह सिंगार तह बड्डी धेसा ।--जायसी। बेशरमी-संशा स्त्री० [फा० वेशमा ] निर्लजता। बेहयाई। संज्ञा पुं० दे० "भेष" । उ.-जनि राहु मुनि सिद्ध बेशी-संज्ञा स्त्री० [फा०] (1) अधिकता। ज्यादती। (२) सुरेसा । तुमहि लागि धरिहउँ नर बेसा । -तुलसी। साधारण से अधिक कार्य करने की मजूरी। (३) लाभ। बेसारा*-वि० [हिं० बैठाना, गुज० बैसाना ] (1) बैठानेवाला। नफा। (२) रखने या जमानेवाला । उ०-मातु भूमि पितु बीज बेशमार-वि० [फा०] अगणित । असंख्य । अनगिनत । बेसारा । काल निसान जीव तृण भारा ।—विश्राम । बेश्म-संज्ञा पुं॰ [सं० वेश्म वा वेश्मन् पर । गृह । निवासस्थान। बेसाहना-क्रि० अ० [देश॰] (1) मोल लेना। खरीदना । उ.--निज रहिये हित घेश्म जो छेउ सो सुनि लेहु । उ.-भरत कि राउर पूत न होहीं। आनेहु मोल बेसाहि विश्राम । कि मोहीं।-सुलसी । (२) जान बूझकर अपने पीछे बेसंदर -संज्ञा पुं० [सं० वैश्वनर ] अग्नि । उ.--यह कुबेर जयत्ति लगाना । (झगडे, बैर, विरोध आदि के संबंध में सदर । बैठे और अनेक मुमिंदर ।-सपलसिंह। बोलते हैं।) बेसभर* -वि. [ फा. वे+हिं० सैंमाल सुध] बेहोश बेसाहा-संज्ञा पुं० [हिं० वेसाहना ] खरीदी हुई चीज़ । सौदा । उ.-रापो बिजली मारा बेसमर कुछ न संभार । सामग्री। उ.-जेहि न हाट एहि लीम्ह बेसाहा । ताकह -जायसी। आन हाट कित लाहा ।—जायसी।