पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२१५

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बैठनि २५०८ बैन बैठनि*-संज्ञा स्त्री. दे. "बैठन"। डालना । (१४) काम धंधे के योग्य न रखना । बेकाम कर बैठनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बैठन ] करघे में वह स्थान जहाँ जुलाहे देना । जैसे,—रोग ने उसे बैठा दिया। कपड़ा बुनते समय बैठते है। बैठारना*-कि० स० दे० "बैठाना" | उ.-(क) सादर धरन बैठवा-वि० [हिं० बैठना ] बैठा या दवा हुआ। जो उठा हुआ ' सरोज पवारे । अति पुनीत आसन बैठारे। -तुलसी। न हो। चिपटा । जैसे, बैठवाँ जूता । (ख) रास्वचित सिंहापून धान्यो । तेहि पर कृष्णहिलै बैठवाई-संज्ञा स्त्री० [हिं० बैठना | बैठाने की मजूरी। - बैठायो।-सूर। बैठवाना-क्रि० स० [हि० बैठाना का प्रेरणा० ] (1) बैठाने का बैठालना-क्रि० स० दे० 'बैठाना"। काम दूसरे से कराना । (२) पेड़ पौधे लगवाना । रोपाना। बैदा-क्रि० स० [हिं० बाड़ा, बेढा] बंद करना। बेदना । (पशुओं बैठा-सज्ञा पुं० [हिं० बैठना ] चमचा या अड़ी करछी । (लश.) - को) रोककर रखना । उ०—तू अलि कहा पयो केहि यैठाना-क्रि० स० हिं. बैठना ] (3) स्थित करना । आमीन पेंड़े । न तू ग्राम अजा भयो छमको इहऊ बचत न करना । उपविष्ठ करना । विदा न रखकर कुछ विश्राम की बैंडे । —सूर । स्थिति में करना। चैडाल-वि० [सं० बिडाल ! बिल्ली संबंधी। संयोफि०-दना-लेना। चैड़ालवत-संशा पुं० [सं०] [वि. बैठालनती ] बिल्ली के समान (२) बैठने के लिये कहना। आपन पर विराजने को कहना। अपने घात में रहना और ऊपर से बहुत सीधा सादा बना जैप, लोग तुम्हारे यहाँ आए हैं। उन्हें आदर से ले जाकर रहना। बैठाओ । (३) पद पर स्थापित करना । प्रतिष्ठित करना। बैडालनती-वि० सं.] बिली के समान ऊपर से बांधा सादा, नियत करना । जैपे,---किपी मूर्व को वहाँ बैठा देने में पर समय पर घात करनेवाला । कपटी। काम न चलेगा। उ.--.नरहरि हिरनकगिषु जब मायो। वैण-समा पुं० [सं०] बॉस को काटकर उनी से जीविका करने. अरु ग्रहाद राज बैठान्यो ।-सूर । (४) frयत स्थान पर बाला। बाम का काम करनेवाला। टीक ठीक ठहरना । ठाक जमाना । अदाना या टिकाना । । बैत-संज्ञा स्त्री० [अ० । पद्य । श्लोक । उ.- दरद न जाने पीर जैपे, पंच बैठाना, मूर्ति थैठाना, चूल्हे पर रटलोई बैठाना, कहा। बता पढ़ि पढ़ि जग समुझावै ।-कार । अंगूठी में नग बैठाना। वैतरनी-संशा सी०स. वैतरण] (१) दे. "वैतरणी"। (२) एक महा०-नस बैठाना= दुई नम मलकर लोक जगह पर लाना। प्रकार का धान जो अगहन में तैयार होता है। इसका माप दूर करना । हाथ या पैर बैठाना प्राधान या नोट के चावल कई वर्ष तक रहता है। कारण जोड़ पर से उखड़ा हुआ हाथ या पैर ठीक करना । बैठा बैताल-संज्ञा पुं० दे० "वताल"। भात-वह भान में चावल और पानी एक ही माथ आग पर बैतालिक-वि. अ.र संज्ञः पुं० दे. "वैतालिक" । रखने में पके। बैद-संज्ञा पुं० [सं० वैन्य [ी बंदिन] चिकिल्याशास्त्र का जानने. (५) किसी काम को बार बार करके हाथ को अभ्यस्त वाला पुरुष । वैद्य । उ०-(क) कुमय साँग रुज म्याकुल करना। माँजना । जैसे, लिवकर हाथ बैठाना । (६) रोगी । बैद न देइ सुनहु मुनि जोगी।-मुलसी (ख) पानी आदि में घुली वस्तु को तल में ले जाकर जमाना। बहु धन लै अहमान के पारी देत सराहि । बैद बधू हँसि जैसे,—यह दवा सब मैल नीचे बैठा देगी। (७) |साना भेद से रही नाह मुग्व चाहि ।-विहारी। या डुबाना । नीचे की ओर ले जाना। जैथे, इतना भारी : वैदई -संज्ञा स्त्री० [हिं० बैद ] वैध की विद्या या व्यवसाय । वैद्य वांश दीवार बैठा देगा । (4) सूजा या उभरा हुआ न रहने का काम । उ०~-चाँचि न आ लपि कळू देखत छाँह न देना । दवाकर बराबर या गहरा करना। पचकाना या घाम । अर्थ सुनारी बैदई करि जानत पति राम। केशव । धयाना । जैसे,—यह दवा गिलटी को बैठा देगी। (१) बैदूर्य-संज्ञा पुं० दे० " यं। (कारबार) चलता न रहने देना । बिगाड़ना । (१०) फेंक बैदेही-संज्ञा स्त्री० दे० "वैदेही"। या चलाकर कोई चीज़ ठीक जगह पर पहुँचाना । क्षिप्त बैन*-संज्ञा पुं० [सं० वचन, प्रा. वयन] (1) वचन । बात । वस्तु को निर्दिष्ट स्थान पर डालना । लक्ष्य पर जमाना । उ०-(क) माया डोले मोहती बोलै कहुआ बैन । कोई जैमे, निशाना बैठाना, इंडा बैठाना । (११) घोड़े आदि घायल ना मिल, साई हिरदा सैन । कबीर । (ख) विष पर सवार कराना (१२) पौधे को पालने के लिये ज़मीन आइ माला दये कहे कुशल के वैन । कुँवरि पत्यारो तत्र में गाइना । लगाना। जमानः । जैसे, जड़हन बैठाना । कियो जब देख्यो निज नैन ।—सूर । (१३) किसी स्त्री को पत्नी के रूप में रख लेना। घर में मुहा०-प्रयन झरनावात निकलना । बोल निकलना। उ०-