पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२१८

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२५११ बोझा बानर घरार बाघ बैहर पिलार विग बगरे बराह जानवरन के (ख) एक जलके को अपने यहाँ रखना योझ हो रहा है। जोम है।-भूषण। (५) कठिन लगनेवाली बात पूरी करने की चिंता, खटका 1* संज्ञा स्त्री० [सं० वायु ] वायु । 30-बैहर बगारन की। या असमंजस । अरि के अगारन की नापती पगारन नगारन की धमकै क्रि० प्र०-पड़ना। भूषण । (५) किसी कार्य को करने में होनेवाला श्रम, कष्ट या बोक-संज्ञा पुं० [हिं० बंक, बाँक ? ] लोहे का वह तिकोना कीला व्यय । मिहनत, हैरानी, खर्च या तकलीफ़ जो किपी काम जो किवाड़ के पल्ले में नीरे को चूल की जगह लगाया के करने में हो । कार्य-भार । जैसे,--(क) तुम सब कामों जाता है। का बांझ हमारे ऊपर डालकर चल देते हो। (ख) गृहस्थी बोगना-संचा पुं० [हिं० बहुगुना ] [स्त्री० बोंगनियां ] पीतल का का मारा बोन उपके ऊपर है। (ग) वे इस काम में बहुत एक बर्तन जिसकी बा ऊँची और सीधी ऊपर को उठी हुई । रुप दे चुके हैं, अब उन पर और घोप्र न डालो। (घ) होती है। बहुगुना । उन पर ऋण का वोझ न डालो। बॉडरी-संवा स्त्री० दे० "शोरी"। क्रि० प्र०-उठाना ।-उतारना ।-डालना ।-पचना। बोंडो-संज्ञा स्त्री० दे० "बौंडी"। (६) वह व्यक्ति या वन्तु जिनके संबंध में कोई ऐसी बात बोआई-संशास्त्री० [हि. बोना (१) कोने का काम । (२) बोने करनी हो जो कठिन जान पड़े। जैसे,—यह लड़का तुम्हें की मजदूरी। बोझ हो, तो मैं इसे अपने यहाँ ले जाकर रवू गा। (७) बोका-संश। पुं० [हिं० बकरा ) बकरा । उ०-कहूँ बैल भैया मिरे घाम, लकड़ी आदि का उतना ढेर जितना एक आदमी लाद भीम भारे । कहूँ एण पुणीन के हेत कारे। कहूँ बोक बाँके कर ले चल सके। गट्ठा । जैसे,-बोश भर से ज्यादा लकड़ी क मेष सूरे। कहूँ मत्त देतील. लोह पूरे। केशव । नहीं है। (4) उतना ढेर जितना बैल, घोड़े, गादी आदि बोकरा-संशा पुं० दे० 'दकरा"। पर लद सके । जैसे,—अब गारी का पूरा बोझ हो गया, बोकरी-संज्ञा स्त्री० दे० "बकरी"। अब मत लादो। बांकला-संक्षा पुं० दे० "बकला"। मुहा०-बोझ उठना किसी काठन बात का हो सकना । किसी बोकाण-संज्ञा पुं० [देश॰] पश्चिम दिशा का एक पर्वत ।। कठिन कार्य का भार लिया जा सकना । बोझ उठाना--किसी (वृहत्संहिता) कठिन कार्य का भार ऊपर लेना । कोई ऐसी बात करने का बोखार-संशा पुं० दे. "बुखार"। नियम करना जिसमे बहुत मेहनत, खर्च, हैरानी या तकलीफ बोगुमा-संज्ञा पुं० [?] घोड़ों की एक बीमारी जिससे उनके पेट हो । जैसे,-गृहस्थी का बोझ उठाना । खर्च का बोझ में ऐसी पीला होता है कि वे बेचैन हो जाते हैं। उठाना । बोझ उतरना=किमा कठिन काम से छुट्टी पाना । बोज-संज्ञा पुं॰ [देश॰] घोड़ों का एक भेद । उ०—लीले लक्खी । पिता या खटक की बात का दूर होना । जी हलका होना । लक्ख योज बादामी चीनी ।-सूदन । जैसे,—आज उसका रुपया दे दिया, मानो बड़ा भारी बांजा-सं। खी० [फा० बोजः ] चावल से बना हुआ मध । चावल यौन उतर गया। बोझ उतारना=(१) किमी कठिन काम से की शराव। उ०—जे बोजा बिजया पिय तिन पै आवत छुटकारा देना। चिंता या खटके की बान दूर करना । (२) कोई हैफ। मन मोहन हग अमल में क्या थोरी है कैफ। ऐसा काम कर डालना जिससे चिंता या खटका मिट जाय । रसनिधि । जैसे,-धीरे धीरे महाजन का रुपया देकर बोझ उतार दो। बोझ-संज्ञा पुं० [१] (1) ऐसा विजिसे गुरुत्व के कारण उठाने । (३) किसी काम को बिना मन लगाए यो हो किसी प्रकार में कठिनता हो। ऐसी राशि, गट्टर या वस्तु जो उठाने या ममाप्त कर देना । बेगार टालना। ले चलने में भारी जान पड़े। भार । जैसे,—तुमने मन भर | बोझना-कि० स० [हे. बोझ ] योन के माहित करना । लादना । का बोझ उसके सिर पर लाद दिया, वह कैसे चले। किमी नाव या गादी पर माल रखना । उ०—नैया मेरी कि० प्र०-उठना । उठाना।-उतरना ।-उतारना।- तनक सी वोमी पाथर भार ।-गिरिधरराय। लदना । लादना ।-होना । बोझल, बांझिल-वि० [हिं० बोझ ] वजनी । भारी । वज़नदार । (२) भारीपन । गुरुत्व । वज़न । जैसे, इसका कुछ बहुत: गुरु । घोस नहीं। (३) कोई ऐसा कठिन काम जिसके पूरे होने । बोझा-संश। पुं० [?] (1) दे. "बोझ"1(२) संदूक की तरह की की चिता घराबर बनी रहे। मुश्किल काम । फठिन बात।। तंग कोठरी जिसमें राब के बोरे पलिये नीचे ऊपर रखे जैसे,—(क) बड़ा भारी बोझ तो कन्या का विवाह है। जाते हैं जिसमें शारा या जूसी निकल जाय ।