पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२२०

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बोषा २५१३ बोल संयकि०-गलना ।-देना।-लेना। यौ०-बोराबंदी। (२) बिग्वराना । छितराना । इधर उधर डालना। ___ संक्षा पुं० [हिं० बोर ] चांदी वा सोने का बना छोटा धरू। बोषा-संज्ञा पुं० [देश॰] [स्त्री० योवी ] (1) स्तन । धन। दे. "बोर"। चूँची। उ०-शिशु उदास जब तजि बोबा । तब दोऊ | बोरिका-संज्ञा पुं० [हिं० बोरना ] वह मिट्टी का बरतन जिसमें मिलि लागत रोक्ष । निश्चल । (२) घर का साज लड़के लिखने के लिये खदिया घोलकर रखते हैं। बोरका । सामान । अंगद खंगम । (३) गट्ठर । गठरी। उ०-सीन । बोरिया-संशा सी० [हिं० बोरा ] छोटा थैला । भयों तहँ धोबी साबो । बालन पीठ लियो द्रुत बोषी।- सज्ञा पुं० [फा०] चटाई । बिस्तर । गर्गसंहिता। यौ०-बोरिया वधना। बोम्बी-संशा स्त्री० [ देश० ] पुनाग या सुलताना l की जाति ' मुहा०-बोरिया उठाना या बोरिया बधना उठाना=चलने की का एक सदाबहार देब जो दक्षिण में पच्छिमी घाट की : तैयारी करना । प्रस्थान करना। पहाड़ियों में होता है। बोरी-संशासी० [हिं० बोरा टाट की छोटी थैली।छोटा बोरा।उ बोया-संज्ञा स्त्री० [फा० बू] (1) गंध । वास । (२) सुगंध। सूर श्याम विप्रन बंदोजन देत रतन कंचन की बोरी।-सूर। उ.-कल करील की कुंज सो उठत अतर की योय । भयो मुहा०—योरी बांधना-चलने की तैयारी करना । उ०- तोहिं भाभी कहा उठी अचानक रोय। -भाकर । जानउँ लाई काहु ठगोरी । खन पुकार, खन बाँधै बारी। बोर-संज्ञा पुं० [हिं० बोरना ] डुबाने की क्रिया। डुबाव । जैसे,- -जायसी। एक बोर में रंग अच्छा नहीं चढ़ेगा, कई बार दो। बोरो-संज्ञा पुं० [हिं० बोरना ] एक प्रकार का मोटा धान जो नदी क्रि०प्र०-देना। | के किनारे का संद में बोया जाता है। संज्ञा पुं० [सं० वरील] (१) चाँदी या सोने का बना हुआ बोरांबाँस-संज्ञा पुं० [ देश. बोरो+हि० बॉस | एक प्रकार का गोल nanो आभषणों में राया जाता है। घाँय जो पूर्वी बंगाल में होता है। जैसे, पाजेब के बोर । (२) गुंबज के आकार का सिर , वार्ड संशा पु० [अ० ] (1) किसी स्थायी कार्य के लिये धनी हुई पर पहनने का एक गहना जिसमें मीनाकारी का काम होता समिति । (२) माल के मामलों के फैसले या प्रबंध के लिये है और रत्नादि भी जड़े हुए होते हैं । इसे 'बीजु' भी कहते बनी हुई समिति या कमेटी । (३) काग़ज़ की मोटी दाती। है। संशा पुं० गड्ढा । खड्डा बिल । बोडिंग हाउस-संशा पुं० [अं॰] वह घर जो विद्यार्थियों के पोरका-संशा पुं० [हिं० बोरना ] (१) दवात । (२) मिट्टी की रहने के लिये बना हो । छात्रावाम । दवात जिसमें लड़के खदिया घोलकर रखते हैं। बालंगी बाँस-सज्ञा पुं० [देश० बोलगी+हिं, बॉस ] एक प्रकार का बोरना -क्रि० स० [हिं० चूडना ] (1) जल या किसी और द्रव । बाँसको उदीया और चटगाँव की ओर होता है । यह घरों पदार्थ में निमन कर देना। पानी या पानी सी चीज़ में में लगता है और टोकरे बनाने के काम में आता है। इस प्रकार ढालना कि चारों ओर पानी हो जाय । डुबाना। बोल-सा पुं० [ft० बोलना ] (1) मनुष्य के मुँह मे उच्चारण (२) दुबाकर भिगांनाापानी आदि में डालकर तर करना। किया हुआ शब्द या वाक्य । वचन । वाणी । (२) ताना । जैसे,-कई बार बोरने से रंग चढ़ेगा । उ०—मानो मजीठ . व्यंग्य । लगती हुई बात । की माठ दुरी इक और ते चाँदनी बोरति आवति ।- क्रि० प्र०-सुनाना । नृपसंभु । (३) कलंकित करना । बदनाम कर देना। मुहा०-बोल मारना-ताना दना । व्यंग्य वचन कहना । जैसे, कुल बोरना, नाम बोरना । उ०—तासु दूत है हम । (३) बाजों का बँधा या गठा हुआ शन्द । जैसे, तबले का कुल बोरा ।-तुलसी (४) युक्त या आवष्टित करना।। बोल, सितार का बोल । (४) कही हुई बात या किया हुआ योग देना या मिलाना । उ०-कपट बोरि बानी मृदुल . वादा । कथन या प्रतिज्ञा । जैसे,—उसके बोल का कोई बोलेउ जुगुति समेत ।-तुलसी (५) घुले रंग में डुबाकर : मोल नहीं। रंगना। उ.-लागी जबै ललिता पहिरावन कान्ह को मुहा०--(किपी का) बोल बाला रहना=(१) बात की साख काकी केसर बोरी ।-पाकर । बनी रहना । बात स्थिर रहना । बात का मान होता जाना । बोरसी-संज्ञा स्त्री० [हिं० गोरसी ] मिट्टी का बरतन जिसमें आग (२) मान मर्यादा का बना रहना । भाग्य या प्रताप का बना रखकर जलाते हैं। अँगीठी। रहना । योल बाला होना=(१) बात की साख होना । बात बोरा-संक्षा पुं० [सं० पुर=दोना या पत्र ] (9) टाट का बना भेला का माना जाना या आदर होना । (२) मान मर्यादा की बढ़ती जिसमें अनाज आदि रखते हैं, विशेषत: कहीं ले जाने के लिये ।। होना । प्रताप या भाग्य बढ़कर होना । (३) प्रसिद्धि होना । ६२९