पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२३

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फिराना २३१६ फिसलाना मुहा०-फिराक में रहना-ग्वोज में रहना । फ़िक या तलाश में फिरिश्ता-संज्ञा पुं० [फा० फरिश्ता ] देवदूत । रहना। फिरिहरा-संज्ञा पुं० [हिं० फिरना ] एक पक्षी का नाम जिसकी फिराना-कि. म० [हिं० फिरना ] (१) इधर उधर चलाना। कभी इस ओर कभी उत्प ओर ले जाना । इधर उधर । फिरिहरी-संशा स्त्री० [हिं० फिरना+हारा (प्रत्य॰)] फिरकी इलाना । ऐणा घलाना कि कोई एक निश्चित दिशा न रहे। नाम का खिलौना जिसे य नचाते हैं। (२) टहलाना । सैर कराना । जैसे, जाओ, इसे बाहर फिर्का-संज्ञा पुं० दे० "फिरका"। फिरा लाओ। (३) चक्कर देना । बार बार फेरे खिलाना फिल्ली-संशा स्त्री० [ देश ] (1) लोहे की छड़ का एक टुकड़ा लद टू की तरह एक ही स्थान पर घुमाना अथवा मंडल या जो जुलाहों के करघे में तूर में लगाया जाता है। (२) परिधि के किनारे घुमाना । नचाना या परिक्रमण कराना। मिली। जैसे, लट टू फिराना, संदिर के पारों ओर फिराना । उ०- फिश-अन्य [ अनु० ] धिक । फिट । घृणासूचक अव्यय । (क) फिर लाग बोहित तहँ आई । जस कुम्हार धरि चाक फिस-वि० [ अनु० ] कुछ नहीं। फिराई। जायसी । (ब) हम्ति पांच जो आगे आए । ते विशेष---जब कोई आदमी बड़ी तैयारी या मुस्तैदी ये कोई गद धरि इफिराए।—जायसी। काम करने चलता है और उससे नहीं हो सकता तब तिर- संयोक्रि --डालना।-देना।—लेना।। स्कार रूप में यह शब्द कहा जाता है । जैसे,—बहुत कहते (४) ऐठना । मरोड़ना । जैसे, ताली उधर को फिराओ। थे कि यह करेंगे वह करेंगे पर सब फिस । 30--मद गजराज द्वार पर लादो हरि कहो ने बचाय। मुहा०-टॉय टाँय फिस थी तो बड़ी धूम पर हुआ कुछ नहीं। उन नहि मान्यो सम्मुम्ब आयोषकन्यो पूँछ फिराय।--सूर। फिस हो जाना हवा हो जाना । न रह जाना । जैसे, इरादा (५) लोटाना । पलटाना । उ०—तुम नारायण भक्त फिस होना, मामला फिस होना। कहावत । काहे का तुम माहि फिरावत ।--सूर । (६) । फिसड़ी-वि० [ अनु० फिस ] (१) जिपसे कुछ करते धरते न एक ही स्थान पर रग्बकर स्थिति बदलना । सामना एक बने । जिसका कुछ किया न हो। जो काम हाथ में लेकर और ये दुप्पी आर करना । दे. "फेरना"। उ.--मुख उसे पूरा न कर सके । (२) जोकाम में पीछे रहे। जो किसी फिराय मन आने ससा । चलत न तिरिया कर मुख दीसा। बात में बढ़ न सके। ---जायपी। फिसफिसाना-क्रि० अ० [ अनु० फिस] (1) फिल होना । संयो० क्रि०-देना ।—लेना। (२) ढीला पड़ना । शिथिल होना । जोर के साथ न चलना। (७) किसी ओर जाते हुए को दूसरी ओर चला देना। फिसलन-संशा स्त्री० [हिं० फिसलना ] (१) फिसलने की क्रिया धुमाना । दे. “फेरना" 1 (6) और का और करना। या भाव । चिकनाई के कारण न जमने या ठहरने की क्रिया परिवर्तन करना। बदल देना। दे. "फेरना"। (९) बात या भाव । रपटन। (२) ऐसा स्थान जहाँ चिकनाई के पर हद न रहने देना । विचलित करना । दे. "फेरना"। । कारण पैर या और कोई वस्तु न जम सके । चिकनी जगह फिरार-मा पुं० । अ० } | नि फिरारी | भागना । भाग जाना । : जहाँ पड़ने से कोई वस्तु न ठहरे, सरक जाय। मुहा०--फिरार होनाः भागना । बल देना। फिसलना-क्रि० अ० [सं० प्र+सरण ] (१) चिकनाहट और फिगरी-1ि0 फा] (१) भागनेवाला। भगेडू। भगोड़ा। गीलेपन के कारण पैर आदि का न जमना । चिकनाई के (२) वह अपराधी जो दंड पाने के भय से भागता कारण पैर आदि कान ठहर सकना, सरक जाना । रपटना। फिरता हो। खिसलना । जैसे, कीचड़ में पैर फिसलना, पत्थर पर जर्मन फिरिश कि वि० दे. "फिर"। काई पर शरीर फिसलना । फिग्यिाद मा to [अ० फरियाद] (१) वेदनासूचक संयोकि०-जाना।—पड़ना। शब्द । ओह। हाय । (२) दुहाई । आवेदन । पुकार।। (२) प्रवृत्त होना । झुकना । जैसे,—जिधर अपना लाभ उ.-सुग्य में सुमिरन ना किया दुख में कीनी याद । कहै देखते हो उसी ओर फिसल जाते हो। कबीर ता दास की कैसे लगे फिरियाद।-कबीर। मुहा०-जी फिसलना-मन प्रवृत्त या मोहित होना। कि०प्र०—करना । —मचाना।--होना लाना। लगना। वि० जिस पर फिसल जाय । बहुत चिकना । जैसे, फिस- फिरियादी-वि० [फा० फरियादी] (1) फरियाद करनेवाला। लना पत्थर। अपना दुखड़ा सुनाने के लिए पुकार करनेवाला । (२) फिसलाना-क्रि० स० [हिं० फिसलना ] किसी को ऐसा करना आवेदन करनेवाला । नालिश करनेवाला। कि यह फिसल जाय ।