पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ब्रह्मशिर ब्राह्मा - - (२) यह गाँव या भूमि जो राजा की ओर से ब्राह्मण को ब्रह्मदय-संज्ञा पुं० [सं० प्रथम वर्ग के १९ नक्षत्रों में से एक दी गई हो। । नक्षन्न जिसे अँगरेजी में कैपेल्ला ( Capella) कहते हैं। ब्रह्मशिर-संशा पुं० [सं० भाभिम् | एक अस्त्र जिसका उल्लेव ब्रह्मांड-संज्ञा पुं० [सं० । (२) चौदहों भुवनों का समूह । विध- रामायण और महाभारस दोनों में है। इस अस्त्र का चलाना गोलक । संपूर्ण विश्व, जिसके भीतर अनंत लोक है। अगस्त्य से सीखकर द्रोणाचार्य ने अर्जुन और अश्वत्थामा विशेष—मनु ने लिखा है कि स्वयंभू भगवान् ने प्रजा सृष्टि को सिवाया था। की इच्छा से पहले जल की सृष्टि की और उसमें बीज ब्रह्मसती-संज्ञा स्त्री० [सं०] सरस्वती नदी। फेंका । बीज पड़ते ही सूर्य के समान प्रकाशवाला स्वाभ ग्रामसत्र-संज्ञा पुं० [सं०] विधिपूर्वक घेदपाठ । बह्मयज्ञ। । अं या गोल उत्पन हुआ। पितामह बझा का इसी अंग ग्रासदन-संज्ञा पुं० [सं०] यज्ञ में ब्रह्मा नामक ऋत्विक का या ज्योतिर्गोलक में जाम हुआ । उसमें अपने एक आपन जो वारुणी काष्ठ का और कुश मेतका हुआ होना संवत्सर तक निवास करके उन्होंने उसके आधे आध दो था ( कात्या० श्रोत.)। खंड किए। ऊध्वखंड में स्वर्ग आदि लोकों की और ब्रह्मसभा-संशा स्त्री० [सं०] (१) ब्रह्माजी की सभा । (२) अधोखंड में पृथ्वंर आदि की रचना की। विश्वगोलक ब्राह्मणों की सभा। इसी से ब्रह्मांड कहा जाता है। हिरण्यगर्भ से सृष्टि की ब्रह्मसमाज-संज्ञा पुं॰ [सं०] एक नया संप्रदाय जिसके प्रवर्तक उत्पत्ति श्रुतियों में भी कही गई है। ज्योतिगोलक की बंगाल के राजा राममोहनराय थे। इसमें उपनिषदों में यह कल्पना जगदुत्पत्ति के आधुनिक सिद्धांत से कुछ कुछ निरूपित एक ब्रह्म की उपासना और मनुष्यमात्र के प्रति : मिलती है जिसमें आदिम ज्योतिष्क नीहारिका मंडल भ्रातृभाव का उपदेश मुख्य है। बंग देश के नवशिक्षितों में : या गोलक से सूर्य और ग्रहों उपग्रहों आदि की उत्पत्ति एक समय इसका बहुत प्रचार हो चला था। • निरूपित की गई है। ब्रह्मसर-संज्ञा पुं० [सं० ब्रह्मसरस ] एक प्राचीन तीर्थ । (महाभारत) : (२) मत्स्यपुराण के अनुसार एक महादान जिसमें सोने का ब्रह्मसावर्णि-संशा पु० [सं० ] दसवें मनु का नाम । विश्वगोलक ( जिसमें लोक, लोकपाल आदि बने रहते हैं) विशेष-भागवत के अनुसार इनके मन्वंतर में विश्वकपन : दान दिया जाता है। (३) खोपड़ी। कपाल । अवतार और इंद्र, शंभु, सुवासन, विरुद्ध इत्यादि देवता महा---ग्रह्मांड चटकना-(१) खोपड़ी फटना । (२) अधिक होंगे। ताप या गरमी से सिर में असब्य पीड़ा होना। ब्रह्मसिद्धांत-संज्ञा पुं० [सं० ] ज्योतिष की एफ सिद्धांत-पद्धति। ग्राह्मा-संह पुं० [सं० ] (1) ब्रह्म के तीन सगुण रूपों में से सृष्टि ब्रह्मसुत-संज्ञा पुं० [सं०] मरीचि आदि ग्रह्मा के पुत्र । की रचना करनेवाला रूप । सृष्टिकर्ता। विधाता। पितामह । ब्रह्मसुता-संशा स्त्री० [सं०] सरस्वती। विशेष-मनुस्मृति के अनुसार स्वयंभू भगवान् ने जल की ब्रह्मसवर्चला-संज्ञा स्त्री० [सं०] हुरहुन या हुरहुर नाम का सृष्टि करके उसमें जो बीज फेका, उसी से ज्योतिर्मय अंड पौधा । पहले तपस्व। लोग इसका कड़वा रस पीते थे। उत्पन्न हुआ जिसके भीतर से ब्रह्मा का प्रादुर्भाव हुआ (दे० ब्रह्ममू-संशा पु० [सं० ] विष्णु की चतुत्यूहात्मक मूर्तियों में से ब्रह्मांड ) भागवत आदि पुराणों में लिखा है कि भगवान् एक। विष्णु ने पहले महत्तव, अहंकार, पंचतन्मात्रा द्वारा एकादश ब्रह्ममूत्र-संशा पु० [सं०] (1) जनेऊ । यज्ञोस्वीत । (२) व्यास इंद्रियाँ और पंचमहाभूत इन सोलह कलाओं से विशिष्ट का शारीरक सुत्र जिसमें ब्रह्म का प्रतिपादन है और जो विराट रूप धारण किया। एकाव में योगनिद्रा में पड़कर वेदांत दर्शन का आधार है। जब उन्होंने शयन किया, तब उनकी नाभि से जो कमल ब्रह्मसृज-संज्ञा पु० [सं०] (१) ब्रह्मा को उत्पत करनेवाला । निकला, उस पर ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा के चार मुम्ब (२) शिव का एक नाम । माने जाते हैं जिनके संबंध में मत्स्यपुराण में यह कथा है। ब्रह्मस्तय-संच पुं० [सं.] गुरु की अनुमति के बिना अन्य को अक्षा के शरीर से जय एक अत्यंत सुंदरी कन्या उत्पन्न हुई, पढ़ाया हुआ पाठ सुनकर अध्ययन करना । (मनु०) : तब वे उस पर मोहित होकर उस ताकने ललो । वह उनके ब्रह्मस्व-संशा पु० [सं० बाह्मण का भाग । बामण का धन ।। चारों ओर घूमने लगी। जिधर वह जाती, उधर देखने के ब्रह्महत्या-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) ब्राह्मणवध । ब्राह्मण को मार । लिये ब्रह्मा को एक सिर उत्पन्न होता । इस प्रकार उन्हें बालना। चार मुँह हो गए। विशेष-मनु आदि ने ब्रह्महत्या, सुरापान, चोरी और गुरु ब्रह्मा के क्रमश: दस मानस पुत्र हुए मरीचि, अत्रि, . पनी के साथ गमन को महापातक कहा है। अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, प्रनेता, वसिष्ठ, भृगु और