पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ब्रह्माणी २५२५ ब्राह्मण्य नारद । इन्हें प्रजापति भी कहते हैं। महाभारत में २१ के मुस्त्र में गई हुई सामग्री देवताओं को मिलती है; अर्थात् प्रजापति कहे गए हैं। दे. “प्रजापति"। उन्हीं के मुम्ब से वे उसे प्राप्त करते हैं । ब्राह्मणों को अपने पुराणों में रक्षा बंदों के प्रकटकर्ता कहे गए हैं। कर्मा उच पद की मर्यादा रक्षित रखने के लिये आचरण अत्यंत नुसार मनुष्य के शुभाशुभ फल या भाग्य को गर्भ के समय शुद्ध और पवित्र रखना पड़ता था। ऐसी जीविका का उनके स्थिर करनेवाले ब्रह्मा ही माने जाते हैं। लिये निषेध है जिससे किसी प्राणी को दुःख पहुँचे । मनु ने (२) यश का एक ऋत्विक । (३) एक प्रकार का धान जो : कहा है कि उन्हें प्रत्त, अमृत, मृत, प्रमृत या पत्यानृत बहुत जल्दी पकता है। द्वारा जीविका निर्वाह करना चाहिए। प्रत का अर्थ है भूमि ग्रह्माणी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) ब्रह्मा की स्त्री । ब्रह्मा की शक्ति। पर पड़े हुए अनाज के दानों को सुनना (उछ वृत्ति) या उ.---आसिष दै दै सराहहि सादर उमा रमा प्रझानी। छोड़ी हुई बालों मे दाने झापना (शिलवृत्ति) । बिना तुलसी । (२) सरस्वती। (३) रेणुका नामक गंध द्रव्य । माँगे जो कुछ मिल जाय, उसे ले लेना 'अमृत' वृत्ति है। (४) एक छोटी नदी जो कटक के जिले में वैतरणी नदी से भिक्षा मांगने का नाम है मृत वृत्ति । कृषि प्रमृत वृत्ति है मिली है। और वाणिज्य सत्यान्त वृत्ति। इन्हीं वृत्तियों के अनुसार ब्राह्मण ब्रह्मादनी-संज्ञा स्त्री० [सं० ] हंसपदी । रक्त लज्जालु । चार प्रकार के कहे गए है-कुशूलधान्यक, कुंभीधान्यक, ब्रह्मानंद-संशा पुं० [सं०] प्रह्म के स्वरूप के अनुभव का आनंद। यहिक और अश्वस्तनिक । जो तीन वर्ष के लिये अनादि ब्रह्मज्ञान से उत्पन्न आरमतृप्ति । सामग्री संचित कर रखे उसे कुशूलधायक, जो एक वर्ष तक ब्रह्मावर्त-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रदेश का प्राचीन नाम । सर के लिये संचित करे, उसे कुंभाधान्यक, जो तीन दिन के लिये स्वती और दशद्वती नदियों के बीच का प्रदेश । रम्बे. उसे व्यहिक और जो नित्य संग्रह करे और नित्य खाय, विशेष--मनु ने इस देश के परंपरागत आधार को सबसे । उसे अश्वम्तनिक कहते हैं। चारों में अश्वस्तनिक श्रेष्ठ है। श्रेष्ठ माना है। आदिम काल में मंत्रकार या वेदपाठी ऋषि ही ब्राह्मण ब्रह्मासन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह आसन जिससे बैटकर अशा का ! कहलाते थे। ब्राह्मण का परिचय उपके वेद,गोत्र और प्रवर ध्यान किया जाता है। (२) तंत्रोक्त देवपूजा में एक आसन। . से ही होता था । संहिता में जो पि आए है, श्रोत ग्रंथों ब्रह्मास्त्र-संज्ञा पुं॰ [सं०] (१) एक प्रकार का अस्त्र जो मंत्र से में उन्हीं के नाम पर गोत्र कहे गए है। श्रीत ग्रंथों में प्राय: पवित्र करके चलाया जाता था। यह अमोघ अस्त्र सब ! सौ गोत्र गिनाए गए हैं। अस्त्रों में श्रेष्ठ कहा गया है। (२) एक रसौषध जो सनिपात पर्या०-द्विज । द्विजाति । अप्रजन्मा । भूदेव । वाइव । में दिया जाता है। यह रस पारे, गंधक, सींगिया और विप्र । सूत्रकंठ । ज्येष्ठवर्ण । द्विजन्मा । वक्त ज । मैत्र । वेद- काली मिर्च के योग से बनता है। वास । नय । गुरु । पट कर्मा । प्रतिष्ठा-संशा स्त्री० [सं० Jदुर्गा । (३) वेद का वह भाग जी मंत्र नहीं कहलाता । वद का ब्राँडी-संहा पु० [अं॰] एक प्रकार की अँगरेज़ी शराव । मंत्रातिरिक्त अंश । (४) विष्णु । (५) शिव । (६) अग्नि । बात-संज्ञा पुं० दे० "प्रात्य"। ब्राह्मणफ-संज्ञा पुं० [सं०] निंद्य ब्राह्मण । ब्राह्म-वि० [सं०] ब्रह्म संबंधी । जैसे, ब्राह्म दिन । ब्राह्मणत्व-संा पु० [सं०] ब्राह्मण का भाव, अधिकार वा धर्म । संज्ञा पुं० (१) विवाह का एक भेद । (२) एक पुराण। (३) ब्राह्मण-पन । नारद। (४) राजाओं का एक धर्म जिसके अनुसार उन्हें गुरुकुल ब्राह्मणव-संज्ञा पुं॰ [सं० ) केवल कहने भर को ब्राह्मण । कर्म से लौटे हुए ब्राह्मणों की पूजा करनी चाहिए। (५) नक्षत्र । और संस्कार से हीन ब्राह्मण । ब्राह्मण-संहा पुं० [सं०] [ १० बामणी ] (1) चार वर्षों में ग्राह्मणभोजन-संज्ञा पुं० [सं०] ब्राह्मणों का भोजन । बाह्मणों सबसे श्रेष्ठ वर्ण । प्राचीन आय्यों के लोक-विभाग के अनुसार को खिलाना। सबसे ऊँचा माना जानेवाला विभाग। हिन्दुओं में सबसे ब्राह्मणयटिका-संशा स्त्री० [सं० ] भारंगी । भाी। ऊँची जाति जिसके प्रधान फर्म पठन-पाठन, यज्ञ, ज्ञानो- ब्राह्मणाच्छंसी-संशा पु० [सं०] सोमयाग में ब्रह्मा का सहकारी पदेश आदि है। (२) उक्त जाति या वर्ण का मनुष्य। एक ऋश्विक । (ऐतरेय ब्राह्मण) विशेष-ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में ब्राह्मणों की उत्पत्ति विराट | ब्राह्मणी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (१) मााण जाति की स्त्री। (२) या प्रम के मुख से कही गई है। अध्यापन, अध्ययन, बुद्धि । (महाभारत) (३) एक तीर्थ । (महाभारत) यजन, याजन, दान और प्रतिग्रह ये छ: कर्म ब्राह्मणों के ब्राह्मण्य-संहा पु० [सं०] (१) यासाण का धर्म या गुण । कहे गए है, इसीसे उन्हें पट कार्मा भी कहते हैं। बाह्मण | पाहाणत्व । (२) ब्राह्मणों का समूह । (३) शनि ग्रह। ६३२