पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२३३

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ब्राह्ममुहूर्त २५२६ ब्लाक ब्राहामहर्म-संशा ५० सं०] रात्रि के पिछले पहर के अंतिम दो ब्राह्मीअनुष्ट्रप-संज्ञा पुं० [सं० एक वैदिक ए जिसमें सब दर। सूर्योदय से पहले दो धड़ी तक का समय । मिलाकर ४८ वर्ण होते है। ब्राह्मसमाज-संशा पु० ( सं० ) वंग देश में प्रवर्तित एक नया ब्रामोउष्णिक-संशा पुं० [सं०] एक वैदिक मंद जिपमें मन मंप्रदाय जिसमें एक मात्र हा काही उपासना की जाती है। मिलाकर ४२ वर्ण होते हैं। विशेष-अंगरेजी राज्य के आरंभ में जब ईसाई उपदेशक | ब्राह्मीकंद-संज्ञा पुं० [सं०] बाराहीकंद। एक ईश्वर की उपासना के उपदेश द्वारा नवशिक्षितों की | घ्राह्मोगायत्री-संशा स्त्री० [सं०] एक वैदिक छंद जिसमें सब आकर्षित कर रहे थे, उस समय राजा राममोहनराय ने | | मिलाकर ३६ वर्ण होते हैं। उपनिषद् में प्रतिपादित अद्वैत ब्रह्म की उपासना पर और प्रालीजगती-संज्ञा स्त्री० [सं० } एक प्रकार का वैदिक छंद जिसमें दिया जिससे बहुत से हिंदू ईमाई न होकर उनके संप्रदाय । मत्र मिलाकर ७२ वर्ण होते हैं। में आ गए। ब्रामीत्रिष्ट्रप-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का वैदिक ईद जिसमें ब्राहियका-संज्ञा स्त्री० [सं०] ब्रह्मयष्टिका । भारंगी। ___ सब मिलाकर ६६ वर्ण होते हैं। प्राली-संज्ञा पुं० [सं०] (1) दुर्गा । (२) शिव की अष्ट मातृ- ब्रानीपंक्ति-संज्ञा स्त्री० [सं० ] एक धैदिक ईद जिसमें सब मिला- काओं में से एक । (३) रोहिणी नक्षत्र (क्योंकि उसके अधि कर ६० वर्ण होते हैं। छाता देवता ब्रह्मा है)। (४) भारतवर्ष की वह प्राचीन ब्राह्मीवहती-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वैदिक छंद जिसमें लिपि जिससे नागरी, बँगला आदि आधुनिक लिपियाँ या मिलाकर ५४ वर्ण होते हैं। निकली है। हिंदुस्तान की एक प्रकार की पुरानी लिखावट | ब्रिगेष्ठ-संशा पुं० [अं0 ] पेना का एक समूह । या अक्षर यौ०-ब्रिगेडियर जनरल । विशेष—यह लिपि उसी प्रकार बाई ओर से दाहनी ओर को ब्रिगेडियर जनरल-संज्ञा पुं० [अं॰] एक सैनिक कर्मचारी जो लिग्बी जाती थी जैसे उसमे निकली हुई आजकल की एक ब्रिगेड भर का संचालक होता है। लिपियाँ । ललितविस्तर में लिपियों के जो नाम गिनाए गए ब्रिटिश-वि० अं०] (1) उस द्वीप से संबंध रखनेवाला जिसमें है, उनमें ब्रह्म लिपि का भी नाम मिला है। इस लिपि का इंगलैंड और स्काटलैंड प्रदेश है। (२) इंगलिस्तान का। सबसे पुराना नमूना अभी तक अशोक के शिलालेखों में ही अगरेजी। मिला है। पाश्चात्य विद्वान् कहते हैं कि भारतवाम्पियों ने ग्रीड़ना-क्रि० अ० [सं० वीड़न ] लजिप्त होना । लजाना अक्षर लिखना विदेशियों से सीखा और ब्राझी लिपि भी उ.-कुंडल झलक कोलन मानहु मीन सुधासर कीमत । उसी प्रकार प्राचीन फिनीशियन लिपि से ली गई जिस भृकुटी धनुप नैन खंजन मानो उड़त नहीं मन बीबत ।- प्रकार अरबी, यूनानी, रोमन आदि लिपियाँ । पर कई देशी' सूर। विद्वानों ने सप्रमाण यह सिद्ध किया है कि प्रायी लिपि का ब्रीडा-संज्ञा स्त्री० दे० "हा"। विकाप भारत में स्वतंत्र रीति से हुआ । दे. “नागरी"। | ब्रीवियर-संज्ञा पुं० [अं०] एक प्रकार का छोटा टाइप जो आठ (५) औषध के काम में आनेवाली एक बूटी जो छत्ते की : वाईट का अर्थात् पाइका का होता है । ग्रीवियर टाइप। तरह जमीन में फैलती है, ऊँची नहीं होती। इसकी पत्तियाँ ब्रीहि-संज्ञा पुं० दे० "वीहि"। छोटी छोटी और गोल होती है और एक ओर खिली सी प्रश-संज्ञा पुं० [अं० । बालों का बना हुआ फँचा जिससे टोपी वा होती है। इसके दो भेद होते हैं। जिन ब्रह्ममइकी कहते । जूते इत्यादि साफ किए जाते हैं। हैं, उसकी पत्तियाँ और भी छोटी होती हैं। वैद्यक में ग्राझी ब्रहम-संझा स्त्री० [अं0 ] एक प्रकार की घोदा गादी जिसे ब्रहम शीनला, कमेली, करवी, बुद्धिदायक, मेधाजनक, आयुर्वईक, ! नामक डाक्टर ने ईजाद किया था। इसमें एक ओर राक्टर अग्निजनक, सारक, कंठशोधक, स्मरणशक्तिवर्द्धक, रसायन के बैठने का और उसके सामने इसरी भोर केवल दवाओं तथा कुष्ठ, पांडु रोग, खाँसी, सूजन, खुजली, पित्त, प्लीहा . का बेग रखने का स्थान होता है। आदि को दूर करनेवाली मानी जाती है। ब्रेवरी-संशा स्त्री॰ [ देश० ] एक प्रकार का कश्मीरी तंबाकू जो पO०-वयस्था। मत्स्याक्षी । सुरसा । ब्रह्मचारिणी । सोम- बहुत अच्छा होता है। वल्लरी । सरस्वती । सुवर्चला पोतवेगा। वैधात्री । दिव्य-ब्लाक-संज्ञा पुं० [अं०] (0) उप्पा जिस पर से कोई चित्र छापा तेजा । ब्रह्मकन्यका। मंडूकमाता । दिम्या । शारदा । जाय । (२) भूमि का कोई चौकोर टुकडा या वर्ग।