पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२३४

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२५२७ भंगा भ-हिंदी वर्णमाला का चौबीसवाँ और पवर्ग का चौथा वर्ण।। एक प्रकार का मोटा कपका जो रिछाने या बोरा बनाने के इसका उच्चारण स्थान ओष्ठ है और इसका प्रथम संवार, | काम में आता है। नाद और धोष है। यह महाप्राण है और इसका अल्पप्राण संज्ञा पुं० [सं० भृगराज ] एक प्रकार की वनस्पति जो परमात में विशेष कर प्रायः ऐसी जगह, जहाँ पानी का सोत बहता मसा-संशा स्त्री० दे० "भैस"। है, या कुएं आदि के किनारे उगती है । इसकी पत्तियाँ भंकारी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) भुनगा । (२) एक प्रकार का | लयोतरी, नुकीली, कटावदार और मोटे दल की होती है, छोटा मच्छर जिनका ऊपरी भाग गहरे हरे रंग का और नीचे का भाग भंग-संज्ञा पुं० [सं०] (1) तरंग । लहर । (२) पराजय हार। हलके रंग का खुद्रा होता है। इसकी पत्तियों को निचो- (३) खेर । टुकड़ा । (४) भेद । (५) कुटिलता । टेढ़ापन । बने से काले रंग का रस निकलता है। वचक में इसका (६) रोग। (७) गमन । (4) जलनिर्गम । स्रोत । (९) एक स्वाद कड़वा, चरपरा, प्रकृति रूखी, गरम सथा गुण नाग का नाम । (१०) भय । (11) टूटने का भाव । कफनाशक, रक्त-शांधक, नेत्ररोग और शिर को पीड़ा को विनाश । विश्वंस । उ०—(क) अकिल बिहूना सिंह ज्यों । दूर करनेवाला लिखा है और इसे रसायन माना है। यह गयो शसा के संग। अपनी प्रतिमा देखिके भयो जो तन तीन प्रकार का होता है-एक पीले फूल का जिसे स्वर्ग,गार, को भंग।कबीर । (ख) प्रभु नारद संबाद कहि मारुत हरिवास, देवप्रिय आदि कहते हैं। दूसरा सफेद फूल का मिलन प्रसंग। पुनि सुग्रीव मिताई बालि प्रान को भंग।- और तीसरा काले फूल का जिसे नील शृंगराज, महानील, तुलसी। (ग) देवराज मख-भंग जानि के दरस्यो अज पै, सुनीलक, महाग, नीलपुप या श्यामल कहते हैं। सफेद आई । सूर श्याम राखे सब निज कर गिरि लै भए सहाई। भंगरा तो प्राय: सब जगह और पीला भंगरा कहीं कहीं सूर । (१२) बाधा । उच्छत्ति । अड़चन रोक । उ. होता है; पर काले फूल का भैंगरा जल्दी नहीं मिलता । यह (क) कबीर छुधा है कूकरी करत भजन में भंग। याको टुकड़ा अलभ्य है और रसायन माना गया है। लोगों का विश्वास बारि के सुमरन करी सुसंग।-कबीर । (ख) छादि मन है कि काले फूल के मैंगरे के प्रयोग से सफेद पके बाल हरि त्रिमुखन को संग। जिनके सँग कुबुद्धि उपजति है। सदा के लिये काले हो जाते हैं। सफेद फूल के भैंगरे की दो परत भजन में भंग ।-सूर । (१३) टेटे होने वा झुकने जातियाँ है-एक हरे ठलवाली, दूसरी काले उठलवाली। का भाव। (१४) लकवा नामक रोग जिसमें रोगी के अंग! भंगरैया। भंगराज । टेढ़े और बेकाम हो जाते है। पर्या०-मार्कव । मुंगराज । केशरंजन । रंगक । कुवेल- यौ०-अस्थिभंग । कर्णभंग । गानभंग । प्रीवाभंग । भ्रमंग।। बर्द्धन । भृगार । मर्कर। प्रसवभंग । वनभंग। भगनय । भंगसार्थ । भंगराज-संशा पुं० [सं० भुंगराज ] (1) काले रंग की कोयल के संशा स्त्री० दे० "भाँग"। आकार की एक चिड़िया जो सिर से दुम तक १२६च लंबी भंगकार-संशा पुं० [सं०] (1) हरिवंश के अनुसार सत्राजित होती है और जिसमें इंच केवल पूँछ होती है। यह के पुत्र का नाम । (२) महाभारत के अनुसार राजा अभि भारतवर्य के प्राय: सभी भागों में होती है। यह अत्यंत क्षित् के पुत्र का नाम । सुरीली और मधुर बोली बोलती है और प्राय: सभी पशु- भंगड़-वि० [हिं० भाँग+अड़ (प्रत्य॰)] जो निस्य और बहुत अधिक पक्षियों की बोलियों का अनुकरण करती है। यह लबसी माँग पीता हो। बहुत भाँग पीनेवाला । भैगेड़ी। भी है। इसका रंग बिलकुल काला होता है, केवल पंव पर भंगना-क्रि० स० [हिं० भंग ] (1) टूटना । (२) दबना । हार दो एक पीली वा सफेद धारियाँ होती है। इसकी पूँछ भुजेटे मानना । उ.-कहि न जाय छवि कवि मतिभंगी। चपला की पूंछ की तरह कैंचीनुमा होती है। यह प्राय: जारे में मन करति गति संगी।--गोपाल। अधिक देख पड़ती है और कीड़े मकोड़े खाकर रहती है। क्रि० स० (१) तोबना । (२) दबाना । 30-राम रंग | (२) दे. "भंगरा"। ही से रंगरेजवा मोरी अगिया रंग दे रे । और रंग द्वै दिन भंगरैया -संज्ञा स्त्री० दे. "भंगरा"। चटकीले, देखस देखत होत मटीले, नहीं अमीरी नहि भंगवासा-संज्ञा स्त्री० [सं०] हलदी। महकीले, उन रंगन को भगिदेरे।-देव स्वामी। | भंगसार्थ-वि० [सं०] कुटिल । भैंगरा-संज्ञा पुं० [हिं० भाँग+रा=का ] मांग के रेशे से बुना हुआ भंगा-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] भांग ।