पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भंडन भंडारी तालियाँ पीटते हैं । #दतिल्ला । उ.-सौग संगीत भैरताल ! हम गृह फोरहि शिशु बहु भंटा । तिनहि न देत नेक कोउ रहस होने लगा।-इंशाअल्ला। दंडा---गोपाल । (२) भंगरा । (३) भेद । रहस्य ।। भंडन-संज्ञा पुं० [सं०] (1) हानि । क्षति । (२) शुन्छ । (३) मुहा०-भंडा फूदना गुप्त रहस्य खुलना । भेद खुलना । भंडा फोड़ना=गुप्त रहस्य खोलना । भेद खोलना । भंडना-क्रि० स० [सं० भंडन] (१) हानि पहुँचाना बिगाड़ना ।! (५) वह र.कदी वा बल्ला जिसका सहारा लगाफर मोटे (२) भंग करना । तोड़ना । (३) गढ़ा करना । नष्ट भ्रष्ट । और भारी बल्लों को उठाते वा खसकाने हैं। करना । (४) बदनाम करना । अपकीर्सि फैलाना। भंडाना-क्रि० स० [हिं० भांड ] (1) उछल-कूद मचाना । उप- भँडफोड -संज्ञा पुं० [हिं० भांडा+फाड़ना] (1) मिट्टी के बर्तनों को दर करना । (२) दौर धूप करके वस्तुओं को न्यस्तव्यस्त गिराना या तोषना फोड़ना। उ.-जब हम देत लेत करना वा तोपना फोड़ना । नष्ट करना । उ.-नंद परनि नहि छोरा । पाछे आह करत भैडफोरा ।-गि.दा.।। सुत भलो पढ़ायो । अज की बीथिन पुरनि घरनि घर बाट क्रि० प्र०—करना । मचना । मचाना।—होना । घाट सब सोर मचायो । लरिकन मारि भजत काहू के काहू (२) मिट्टी के बर्तनों का टूटना फूटना । (३) भेद खोलने , को दधि दूध लुटायो । काह के घर करत बसाई मैं ज्यों त्यों का भाव । रहस्योद्घाटन । भंडाफोड़ करना। करि ५करन पायो। अब तो इन्हें जकरि बाँधौंगी इहि सब

  1. खभाँड-संज्ञा पुं० [सं० भाडीर ] एक कैंटीला क्षुप जिसकी तुम्हरो गाँव भंडायो। सूरश्याम भुज गहि नंदरानी बहुरि

पत्तियाँ नुकीली, लंबी और कंटीली होती है। यह जारे कान्ह सपने दिग आयो।—सूर । के दिनों में उगता है। इसका फूल पोस्त के फूल के आकार | भंडार-सज्ञा पुं० [सं० भांडागार ) (1) कोप । ख़ज़ाना । (२) का पीले या बसंती रंग का होता है। फूल के प्रब जाने अन्नादि रखने का स्थान । कोठार । (३) वह स्थान जहाँ पर पोस्त की तरह लंबी और काँटों से युक्त टी लगती है व्यंजन पकाकर रखे जाते हैं। पाकशाला | भंडारा। उ०-- जिसमें पकने पर काले रंग के पोस्त से और कुछ बड़े दाने कबीर जैनी के हिये बिल्ली को इतबार । साधन व्यंजन निकलते हैं । इन दानों को पेरने से तेल निकलता है जो मोक्षहित सौंपेउ तेहि भंडार ।-कबीर । (४) पेट । उदर। जलाने और दवा के काम आता है। इसके पौधे से पीले (५) अप्रिकोण । (६) दे. "भंडारा"। रंग का दूध निकलता है जो घाव और चोट पर लगाया भंडारा-संज्ञा पुं० [हिं० भडार ] (1) दे. “भंडार" । (२) जाता है। इसकी जद भी फोड़े फुसियों पर पीसकर। समूह । झुंड । उ०-पान करत जल पाप अपारा । कोटि लगाई जाती है। इसके नरम डंठल की गूदी की सरकारी । जाम कर जुरा भंडारा । नास होहिं छिन महं महिपाला । भी बनाई जाती है । भदमाद। सत्य सत्य यह वचन रसाला । भंडरिया-संज्ञा पुं० [हिं० भडरि] एक जाति का नाम । इस जाति क्रि० प्र०-जुहना वा जुटना ।—जोबना । के लोग फलित ज्योतिष या सामुद्रिक आदि की सहायता (३) साधुओं का भोज । वह भोज जिसमें संन्यासी और से लोगों को भविष्य बताकर अपना निर्वाह करते हैं और साधु आदि खिलाए जाते हैं। उ.-विजय कियो भरि शनैश्चरादि ग्रहों का दान भी लेते हैं। कहीं कहीं इस जाति आनंद भारा । होय नाथ इत ही भंडारा ।-रघुराज । के लोग तीर्थों में यात्रियों को स्नान और दर्शन आदि भी क्रि० प्र०—करना ।—देना ।-होना।-जुड़ना। खाना। कराते हैं। इस जाति के लोग माने तो प्राण ही जाते (४) पेट । उ०---उक्त पुरुप ने अपने स्थान से उचफ कर हैं, पर ब्राह्मणों में बिलकुल असिम श्रेणी के समझे जाते चाहा कि एक हाथ कटार का ऐसा लगाए कि भंडारा खुल जाय, पर पथिक ने अपट कर उसके हाथ से कटार वि० (१) ढोंगी। पाखंडी। (२) धूर्म । मक्कार। छीन लिया।--अयोध्यासिंह। संज्ञा स्त्री० [हिं० भंडारा+इया (प्रत्य॰)] दीवारों अथवा : भंडारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० भंडार+ई (प्रत्य॰)] (1) छोटी कोठरी । उनकी संधियों में बना हुआ वह ताख या छोटी कोठी (२) कोश । खजाना । उ०--कौरव पासा कपट बनाये। जिसके आगे छोटे छोटे दरवाज़े लगे रहते हैं और जिनमें धर्मपुत्र को जुवा खेलाये । तिन हारी मब भूमि मैंडारी । छोटी मोटी चीजें रखी जाती है। हारी बहुरि दोपदी नारी।--सूर। भँडसार, भँडसाला-संज्ञा स्त्री० [हिं० भांड+शाला ] वह गोदाम ! संशा पुं० [हिं० भंडार+ई (प्रत्य॰)] (1) खज़ानची । जहाँ सस्ता अन ख़रीदकर महंगी में बेचने के लिये इकट्ठा कोपाध्यक्ष । उ०—(क) शेर शाह सम दूज न कोऊ । किया जाता है । खत्ती । खता। समुंद सुमेरु भंडारी दोऊ।—जायसी । (ख) भूमि देव भंडा-संज्ञा पुं० [सं० भांड] (1) बर्तन । पात्र । भांडा। 30- देव देखिकै ना देव सुखारी । बोलि सचिव सेवक सखा ६३३