पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२४१

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भगतवछल २५३४ भगवान् ताह वह स्वांग जो भगत का किया जाता है। इस स्वाँग में एक हैं। इनमें पहले को छोड़ शेष चार वर्ष उत्तरोत्तर भयानक आदमी को सफेद बालों की दादी मोछ लगाकर उसके सिर । माने जाते हैं। पर तिलक, गले में तुलसी वा किसी और काठ की माला भगर* -संज्ञा पुं॰ [ देश० ] छल । फरेव । ढोंग । उ०—काटे पहनाते हैं और उपके सारे शरीर पर राख लगाकर उसके : जो कहत सीस, काटत घनेरे घाघ, भगर के हेले महा भट हाथ में एक तूं दी और सांटा दे देते हैं। वह भगत बना . पद पावहीं । केशव । हुआ स्वांगी जोगीड़े में नाचनेवाले लौंड के साथ रहता है। संज्ञा पुं० [हिं० भगरना | सका हुआ अन्न । और बीच बीच में नाचता और भादों की तरह मसखरापन | भगरना-क्रि० अ० [सं० बिकरण, हि० विगरना ] खत्ते में गर्मी करता जाता है। (७) भूत प्रेत उतारनेवाला पुरुष । ओझा पाकर अनाज का सड़ने लगना। सयाना । भोपा । (५) वेश्या के साथ तबला आदि बजाने संयो० कि०-माना । का काम करनेवाला पुरुष । सफ़रदाह । ( राजपूताना)। भगल-संज्ञा पुं॰ [देश॰] (1) छल । कपट । ढोंग । (२) हाय मुहा०---भगतबाग-१) लोडों को नचानेवाला । (२) स्वॉग | की सफाई । जादू । इंद्रजाल । बाजीगरी। . भरकर लाडो को अनेक रूप का बनानवाला पुरुष । । भगली-संज्ञा पुं० [हिं० भगल+ई (प्रत्य०)] (5) ढोंगी। छली। भगतबछल*-वि० दे० "भक्तवत्सल"। (२) बाजीगर । उ०-जाप्रत जाग्रत सोच है सोवत सपना भगति*-संज्ञा खी० दे० "भक्ति"। साँच । देह गये दोऊ गये ज्यों भगली को नाच । कबीर । भगतिया-संज्ञा पुं० [हिं० भक्त ] [स्त्री. भगतिन ] राजपूताने की भगवंत*1-संशा पुं० [सं० भगवन् का बहु० भगवन्त ] भगवान । एक जाति का नाम । इस जाति के लोग पैष्णव साधुओं ईश्वर । दे. "भगवत्" । उ०-ब्रह्म निरूपण धर्म विधि की संतान हैं जो अब गाने बजाने का काम करते है और : बरनहि तत्व विभाग । कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ज्ञान जिनकी कन्याएँ वेश्याओं की वृत्ति करके अपने कुटुंब का बिराग । -तुलसी। भरण पोषण करती है और भगतिन कहलाती है। (बंगाल भगवती-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) देवी। (२) गौरी । (३) सर- में भी वैष्णव साधुओं की लड़कियाँ वेश्यावृत्ति से अपना स्वती । (४) गंगा । (५) दुर्गा । जीवन निर्वाह करता है और अपनी जाति बोष्टम वा वैष्णव । भगवत्-वि० [सं०] [बी. भगवती ] ऐवर्गयुक्त । भगवान् । बतलाती हैं।) उ.-सेठ की दौलत पर गीध के समान पूजनीय। ताक लगाए बैठे हुए मार शिकार भांद भगतिए दर दर से . संज्ञा पुं० (१) ईश्वर । परमेश्वर । (२) विष्णु। (३) शिव । आ जमा होने लगे।-बालकृष्ण भट्ट । (५) बुद्ध । (५) कार्तिकेय । (६) सूर्य । (७) जिन । भगती-संज्ञा स्त्री० दे० "भक्ति"। भगवत्पदी-संज्ञा स्त्री० [सं०] गंगा। भगदत्त-संज्ञा पुं० [सं० ] प्राग्ज्योतिषपुर के एक राजा का नाम । | भगवद्गीता-संज्ञा स्त्री० [सं०] महाभारत के भीष्मपर्व के अंतर्गत इसके पिता का नाम नरक वा नरकासुर था । महाभारत में अठारह अध्यायों का एक प्रकरण । इसमें उन उपदेशों और युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय इसका अर्जुन से आठ प्रश्नोत्तरों का वर्णन है जो भगवान् कृष्णचंद्र ने अर्जुन का दिन तक लड़कर अंत में पराजित होना लिखा है। महा मोह छुड़ाने के लिये उससे युद्धस्थल में किए थे। यह ग्रंथ भारत युद्ध में यह कौरवों की ओर था और बड़ी वीरता से प्रस्थान चतुष्टय में चौथा है और बहुत दिनों से महाभारत बकर अर्जुन के हाथ से मारा गया था। से पृथक माना जाता है। इस पर शंकराचार्य, रामानुज, भगदर-संज्ञा स्त्री० [हिं० भागना ] अचानक बहुत से लोगों का . वल्लभादि आधाग्यों के भाग्य है। हिंदू धर्म में यह ग्रंथ किसी कारण से एक ओर न्यस्तव्यस्त होकर भागना ।। सर्वश्रेष्ठ और सब संप्रदायों का मान्य ग्रंथ है। भागने की क्रिया या भाव । भगवद्र्म-संज्ञा पुं० [सं०] महाबोधि वृक्ष । क्रि०प्र०—पड़ना । मचना । भगवद्भक्त-संछा पुं० [सं०] (१) भगवान का भक्त । ईश्वर- भगनहा-संज्ञा पुं॰ [सं० भन्महा ] करेरुआ नामक कैंटीली बेल। भक्त । (२) विष्णुभक्त। (३) दक्षिण भारत के वैष्णवों का विशेष दे. “कररुआ"। एक संप्रदाय। भगना-कि० अ० दे० "भागना"। भगवद्विग्रह-संज्ञा पुं० [सं० ] भगवान् का विग्रह । भगवान् को ___ संज्ञा पुं० [सं० भागनेय ] बहिन का लबका । भानजा। मूर्ति। भगनी* -संशा श्री. दे. "भगिनी"। भगवान, भगवान-वि० [सं० भगवत् का एक व०प्र० भगवान् ] भागयुग-संशा पुं० [सं०] बृहस्पति के बारह युगों में से अंतिम (1) भगवत् । ऐश्वर्ययुक्त। (३) पूज्य। (३) ऐश्वर्य, बल, युग। इसके पांच वर्षभि , उद्गारी, एका, क्रोध भौर क्षय यहा, श्री, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न ।