पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भगशाल २५३५ भच्छना संशा पु० (1) ईश्वर । परमेश्वर । (२) विष्णु । (३) शिव। उ०-यरुनी घंबर में गूदरी पलक दोऊ, कोए राते बसन (४) बुद्ध । (५) जिन । (६) कार्तिकेय । (७) कोई पूज्य भगाह भेष रखियाँ।-देव । और आदरणीय व्यक्ति । जैसे, भगवान् वेदव्यास । भन्गुल-वि० [हिं० भागना ) (1) रण से भागा हुआ। भगशाल-संज्ञा पुं० [सं०] कामशास्त्र। भगोया । भग्ग । उ०-आय भगाल लोग बरनै युद्ध की भगहर -संज्ञा स्त्री० दे. "भगदर"। पत्र गाथ। केशव । (२) भागनेवाला । कायर । भगहारी-संज्ञा पुं० [सं० भगहारिन् ] शिव । महादेव । भावि० [हिं० भागना+ऊ (प्रत्य॰)] जो विपत्ति देखकर भगांकुर-संज्ञा पुं० [सं०] अर्श रोग । बवासीर । भागता हो। कायर । डरपोक । भागनेवाला। भगाना-कि० स० [सं० बज ] (1) किसी को भागने में प्रवृत्त भग्न-वि० [सं०] (1) टूटा हुभा। (२) जो हारा या हराया करना । दौड़ाना । (२) हटाना । दूर करना । स्वदेखना ।। गया हो । परारिस 1 उ.-दरस भूख लागै हगन भूखहि देत भगाइ।-: संज्ञा पुं० हड्डियों अथवा उनके जोड़ों का टूट जाना । रसनिधि । भग्नदूत-संज्ञा पुं० [सं०] रणक्षेत्र ये हारकर भागी हुई वह सेना क्रि० अ० दे. "भागना"। उ.-(क) उछरत उत्तरात इह जो राजा के पराजय का पमाचार देने आती हो। रात मरि जात भभरि भगात जल थल मीच मई है।- 'भनपाद-संज्ञा पुं० [सं०] फलित ज्योतिष के अनुसार पुनर्वसु, सुलमी । (ख) सभय लोक सब लोकपति चाहत भभरि | उत्तराषाद, कृत्तिका, उत्तरफाल्गुनी, पूर्वभाद्रपद और भगान । -तुलसी। विशावा ये छ: नक्षन्न जिनमें से किसी एक में मनुष्य के भगाल-संज्ञा पुं० [सं० ] आदमी की चोपड़ी। मरने से द्विपाद दोष लगता है। इस दोष की शांति भशौच भगाली-संज्ञा पुं० [सं० भगालिन् ] आदमी की खोपड़ी धारण | काल के अंदर ही कराने का विधान है। करनेवाले, शिव। भनसंधि-संज्ञा स्त्री० [सं० ] हड्डी का जोद पर से टूट जाना । भगाल-संज्ञा पुं० [सं० ] प्राचीन काल का एक अस्त्र। भनसंधिक-संज्ञा पुं० [सं०] मठा। भगिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] बहन । सहोदरा । भन्नांश-सका पुं० [सं०] (1) मूल द्रव्य का कोई अलग किया भगिनीय-संशा पुं० [सं०] बहन का लबका । भागिनेय ।। हुआ भाग वा अंश । (२) गणित शास्त्र के अनुसार किसी भान्जा। वस्तु के दो या अधिक किए हुए विभागों में से एक या भगीरथ-संज्ञा पुं० [सं०] अयोध्या के एक प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा अधिक विभाग । जैसे,-किसी वस्तु के किए हुए सात जो राजा दिलीप के पुत्र थे । कहते है कि कपिल के शाप विभागों में से दो विभाग; अर्थात् मूल वस्तु का मे जल जाने के कारण सगरवंशी राजाओं ने गंगा को पृथ्वी भांश है। पर लाने का बहुत प्रयन किया था; पर उनको सफलता भग्नारमा-संशा पुं० [सं० भन्मात्मन् ] चंद्रमा । नहीं हुई। अंत में भगीरथ घोर तपस्या करके गंगा को भग्नावशेष-संज्ञा पुं० [सं०] (1) किमी टूटे फूटे मकान या उजदी पृथ्वी पर लाए थे और इस प्रकार उन्होंने अपने पुरखाओं ! हुई बस्ती का बचा हुआ अंश । बदहर । (२) किसी टूटे का उद्धार किया था। इसीलिये गंगा का एक नाम भागी हुए पदार्थ के बचे हुए टुकड़े। रथी भी है। भझी-संज्ञा स्त्री० [सं०] भगिनी । बहन । वि० [सं०] भगीरथ की तपस्या के समान भारी । भचक-संज्ञा स्त्री० [हि. भचकना ] भचककर चलने का भाव । बहुत बड़ा । जैसे, भगीरथ परिश्रम । लँगड़ापन। भगेडु, भगेलू-वि० [हिं० भागना+पडू या एल. (प्रस्य०)1(1) भागाभचकना-कि० अ० [हिं० भींच ] आश्चर्य में निमग्न होकर हुआ। जो कहीं से छिपकर भागा हो। (२) जो काम रह जाना। पड़ने पर भाग जाता हो। कायर । क्रि. अ. [ भच अनु० चलने के समय पैर का इस प्रकार भगोड़ा-वि० [हिं० भागना+ओका (प्रत्य॰)] (1) भागा हुआ। रुक कर या टेवा पड़ना कि देखने में लंगड़ापन मालम हो। (२) भागनेवाला । कायर । भचक्र-संज्ञा पुं० [सं०] (1) राशियों या ग्रहों के चलने का भगोल-संज्ञा पुं॰ [सं०] नक्षत्र चक्र। वि० दे० "खगोल"। मार्ग । कक्षा । (२) नक्षत्रों का समूह । भगौती*-संज्ञा स्त्री० दे० "भगवती"। भन्छ-संशा पुं० दे० "भक्ष्य" । भगौहाँ-वि० [हिं० भागना+औहाँ (प्रत्य॰)] (3) भागने को उद्यत। भच्छक* -संज्ञा पुं.दे. "भक्षक"। (२) कायर। भन्छन -संज्ञा पुं० दे. "भक्षण"। वि० [हिं० भगवा ] गेरू से रंगा हुआ। भगवा । गेरुआ भन्छना*t-क्रि० स० [सं० भक्षण ] खाना। भक्षण करना ।