पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२४४

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भटनेर २५३७ और सास भी। ये फलियाँ बहुत पुष्ट होती हैं और पशुओं ! भट्टिनी-संज्ञा स्त्री० [सं०] नाटक की भाषा में राजा की वह को भी खिलाई जाती है। यह दो प्रकार की होती है-एक | पनी जिम्का अभिषेक न हुआ हो। सफेद और दूसरी काली । मैदानों में यह प्रायः खरीफ की ' भट्टी-संश। पी० दे० "भट्ठी" । फसल के साथ बोई जाती है। | भट्टोत्पल-संज्ञा पुं० [सं०] वराहमिहिर के ग्रंथों की टीका करने- भटनेर-संज्ञा पुं० [सं० भट+नगर ] एक प्राचीन राज्य का मुख्य वाले एक आचार्य का नाम । नगर जो सिंध नदी के पूर्वी तट पर स्थित था । इस नगर : भट्टा-संशा पुं० [सं० भ्रष्ट, प्रा० मठ । (१) बड़ी भट्टी । (२) को तैमूर ने अपनी पढ़ाई के समय लढा था। ईंट वा खपड़े इत्यादि पकाने का पजावा । वह बड़ी भट्ठी भटनेरा-संज्ञा पुं० [सं० भट+नगरा] (1) भटनेर नगर का जिम्ममें ईटें आदि पकती हों, चूना फेंका जाता हो, लोहा निवाग्नी । (२) वैश्यों की एक उपजाति। आदि गलाया जाता हो या इसी प्रकार का और कोई काम भटभेरा* -संशा पुं० [हिं० भट+भिड़ना ] (1) दो वीरों का होता है। सामना । मुकाबला । भिवंत । उ०-एक पिशाचिनि है भट्टी-संज्ञा स्त्री० [सं० भ्राष्ट, प्रा. भट्ठ ] (1) विशेष आकार और यहि बीच चलो किन तात करी भटभेरो।-हनुमन्नाटक । ! प्रकार का इंटों आदि का बना हुआ बड़ा चूल्हा जिम्म पर (२) धक्का । टक्कर । ठोकर । उ०-कबहुँक ही संगति हलवाई पकान बनाते, लोहार लोहा गलाते, वैध लोग रस सुभाव ते जाउ सुमारग मेरो । तब करि क्रोध संग कुमनो- । आदि फेंकते अथवा इसी प्रकार के और और काम करते रथ देत कठिन भटभेरो --तुलसी । (३) आकस्मिक . है।( भिन्न भिन्न कार्यों के लिये भट्ठियों का आकार और मिलन । ऐसी भेंट जो अनायाप हो जाय । आमने सामने । प्रकार भी भिन्न भिन्न हुआ करता है।) से आते हुए मिलन । संयोग । उ.--गली अंधेरी साकरी | मुहा०-भट्ठी दहकना=किसी का कार-बार जोरो पर होना । भो भटभेरो आनि ।—बिहारी । बहुत आय होना । (व्यंग्य) भटबाँस-संशा स्त्री० दे० "भटनास"। (२) देशी मच टपकाने का कारखाना। वह स्थान जहाँ भटा-संज्ञा पुं० दे. "बैंगन" । देशी शराब बनती हो। भटियारा-संशा पुं० दे० "भठियारा"। | भठियाना-कि० अ० [हिं० भाठा+श्याना (प्रत्य०) । समुद्र में भटियारी-संज्ञा स्त्री० [१] संपूर्ण जाति की एक संकर रागिनी भाटा आना । समुद्र के पानी का नीचे उतरना। जिसमें ऋषभ कोमल लगता है। भठियारपन-संशा पु० [हिं० भठियारा+पन (प्रत्य०)] (१) भठि- भटियाल-क्रि० वि० [हिं० भाटा+झ्याल (प्रत्य॰)] धार की यारे का काम । (२) भठियारों की तरह लड़ना और ओर । धार के साथ साथ । जिस ओर भाटा जाता हो, अश्लील गालियाँ बकना । उस और । (लश.) भठियारा-संशा पु. [ हिं . मट्ठा+श्यार (प्रत्य॰)] [स्त्री० भठियारी भट्टा-संशा स्त्री० [सं० वधू ] (१) स्त्रियों के संबोधन के लिये एक वा भठियारिन ] सराय का प्रबंध करनेवाला वा रक्षक जो आदरसूचक शब्द । (२) सखी। गोइयाँ । (३) प्रिय व्यक्ति । यात्रियों के खाने पीने और ठहरने आदि की व्यवस्था भटेरा-संज्ञा पुं॰ [देश॰] वैश्यों की एक जाति । करता है। भटोट-संज्ञा पु० [देश॰] यात्रियों के गले में फांसी लगानेवाला | भठियाल-संश। पुं० [हिं० भाटा ] समुद्र के पानी का नीचे उत- ठग । ( ठगों की भाषा) रना । ज्वार का उलटा । भाटा। भटैया-संज्ञा स्त्री० [हिं० भटकटैया ] भटकटैया। उ०-भौर भटै या भठली-संवा स्त्री० [हिं० भट्ठी+उली (प्रत्य॰)] ठठेरों की मिट्टी जाहु जनि कॉट बहुत रस थोर ।-गिरिधर । की बनी हुई वह छोटी भट्ठी जिसमें किसी चीज़ को गढ़ने भटोला-वि० [हिं० भाट+ओला (प्रत्य॰)] (१) भाट का। भाट से पहले तपाते या लाल करते हैं। संबंधी । (२) भाट के योग्य । भईबा-संशा पुं० [स० विडवा ] दिखौआ शान । आडंबर । संज्ञा पुं. वह भूमि जो भाट को इनाम के तौर पर दीगई हो। भर-संचा स्त्री० [अ० बार्ज ] एक प्रकार की नाव जो बहुत हलकी भट्ट-संज्ञा पुं० [सं० भट ] (१) प्राणों की एक उपाधि जिसके होती है। (लश) धारण करनेवाले दक्षिण भारत, मालय आदि कई प्रांतों में संज्ञा पुं० [सं० भट ) वीर । योन्ता । (हिं.) पाए जाते हैं। (२) महाराष्ट्र ब्राह्मणों की एफ उपाधि संशा पुं० [सं.] प्राचीन काल की एक वर्णसंकर जाति जिसके धारण करनेवाले दक्षिण भारत, मालब आदि कई जिसकी उत्पति लेट पिता और सीवर माता से हुई थी। प्रांतों में पाए जाते है। (३) महाराष्ट्र प्राण । (४) | भड़क-संवा स्त्री० [अनु० ] (1) दिखाऊ धमक दमक । भाट । (५) योद्धा । सूर । मट । चमकीलापन । ६३५