पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२४५

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भड़कदार २५३८ भदई भड़कीले होने का भाव । (२) भबकने का भाव । सहम। भबृहर-संज्ञा स्त्री० दे० "अँडेहर" जैसे,-अभी इसमें कुछ भदक बाकी है। भड़ार*-संशा पुं० दे० "भंडार"। भड़कदार-वि० [हिं० भड़क+फा • दार ] (1) जिसमें खुष | भड़ाला-संज्ञा पुं० [सं० भट ] सुभट । योद्धा । लडाका । चमकदमक हो । चमकीला । भड़कीला । (२) रोबदार । भड़िहा-संज्ञा पुं० [सं० भांडहर ] चोर । तस्कर । (बुदेलखंसी) भड़कना-क्रि० अ० [ भडक अनु०+ना (प्रत्य॰)] (१) प्रज्वलित ! भड़िहाई-क्रि० वि० [हिं० भडिहा ] चोरों की तरह । लुक- हो उठना। तेज़ी से जल उठना । जैसे, आग भड़कना । छिप या दबकर । उ.-इत उत चित चला भविहाई।- (२) झिझिकना । चौंकना । बरकर पीछे हटना । (विशेषतः तुलसी। घोडे आदि पशुओं के लिये बोलते हैं।) (३) कुद्ध होना : भड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बढ़ाना या भड़काना ] वह उत्तेजना जो (४) बढ़ जाना । तेज़ होना। किसी को मूर्ख बनाने या उसेजित करने के लिये दी जाय। संयो० कि०-उठना ।—जाना । झाला बढ़ावा। भड़काना-क्रि० म० [हिं० भड़कना का स. रूप] (1) प्रज्वलित क्रि०प्र०—देना ।—में आना। करना । जलाना । ज्वाला को बढ़ाना । (२) उत्तेजित | भडभा-संशा पुं० [हिं० भाँड ] (1) वह जो वेश्याओं की दलाली करना । उभारना। (३) भयभीत कर देना । चमकाना। करता हो। पुंश्चली स्त्रियों की दलाली करनेवाला । (२) (घोड़े आदि पशुओं के लिये)। (५) बढ़ावा देना। (५) बेश्याओं के साथ तबला या सारंगी आदि बजानेवाला। किसी को इस प्रकार भ्रम में डालना कि वह कोई काम . सफरदाई। करने के लिये तैयार न हो। बहकाना । भर-संज्ञा पुं० [सं० भद्र ] ब्राह्मणों में बहुत निम्न श्रेणी की संया०क्रि०-देना। एक जाति । इस जाति के लोग ग्रहादिक का दान लेते भड़कीला-वि० [हिं० भड़का+ईला (प्रत्य॰)] (1) भरफदार । अथवा यात्रियों को दर्शन आदि कराते हैं। भार। चमकीला । जिसमें खूब चमक दमक हो। (२) चौकन्ना | भण-संज्ञा पुं० [?] ताद का वृक्ष । (हिं.) होनेवाला । बरकर उत्तेजित होनेवाला । जैसे, भड़कीला भणना*1-क्रि० अ० [सं० भण] कहना । बोलना । उ.-मन बैल वा घोड़ा । (क.) लोभ मोह मद काम बस भये न केशवदास भणि । सोह भड़कीलापन-संघा पुं० [हिं० भड़कीला+पन (प्रत्य॰)] चमक परब्रह्म श्रीराम है अवतारी अवतार-मणि-केशव । दमक । भरकीले होने का भाव । भणित-संज्ञा स्त्री० [सं०] कही हुई बात । कया । भडभड़-संज्ञा स्त्री० [ मनु० ] (1) भवभर शम्द जो प्राय: एक . वि० [सं०] कहा हुआ। जो कहा गया हो। चीज़ पर दूसरी चीज़ ज़ोर ज़ोर से पटकने अथवा बड़े बड़े : भतरौड़-संज्ञा पुं० [हिं० भात+रोड़ ? ] (१) मथुरा और वृदावन टोल आदि बजाने से उत्पन होता है। आघातों का शब्द । के बीच का एक स्थान जिसके विषय में यह प्रसिद्ध है कि उ.-कर का बजत टाप हयंद। भवभर होत शब्द यहाँ श्रीकृष्ण ने चौबाइनों से भात मैंगवाकर खाया था। बलद।-सूदन । (२) जन समूह जिसमें छोटे बड़े वा खोटे उ०-भटू जमुना भतौब लौ औंदी।-रसखान । (२) खरे का विचार न हो । भीष । भम्भद । (३) व्यर्थ की ! ऊँचा स्थान । (३) मंदिर का शिखर ।। और बहुत अधिक बातचीत । | भतवान-संज्ञा पुं० [हिं० भात+वान (प्रत्य॰)] विवाह की एक भड़भड़ाना-कि० स० [ अनु० ] भा भव शब्द करना। रीति जिसमें विवाह के एक दिन पहले कन्यापक्ष के लोग कि० अ० किसी चीज़ में भदभव शब्द उत्पन्न होना । भात, दाल आदि कच्ची रसोई बनाकर वर और उसके भड़भडिया-वि० [हिं० भडभड़+श्या (प्रत्य॰)] बहुत अधिक साथ चार और कुँआरे लड़कों को बुलाकर भोजन कराते हैं। और व्यर्थ की बातें करनेवाला गिप्पी । भतार-संज्ञा पुं० [सं० भर्तार ] पति । खाविंद । खसम । भवभौंह-संज्ञा पुं० [सं० भांडार ] एक कैंटीला पौधा । सत्या- | भतीजा-संशा पुं० [सं० भ्रातृज ] [स्त्री० भतीजी ] भाई का पुत्र । नासी । मोय । वि० दे. "ममोय" या "भडभाद"। । भाई का लड़का। भर्भूजा-संशा पुं० [हिं० भाइ+ जना ] हिंदुओं की एक छोटी | भतुआ-संज्ञा पुं० [ देश० ] सफेद कुम्हारा पेठा। जाति जो भारझोंकने और अन्न भूनने का काम करती है। भतुला-संज्ञा पुं० [ देश. ] गकरिया । बाटी। पर्या-भुजवा । भुरजी! भत्ता-संहा पुं० [सं० भरण दैनिक व्यय जो किसी कर्मचारीको भड़वा-संहा पुं० दे० "मडुआ"। यात्रा के समय दिया जाता है। वेतन के अतिरिक्त वह धन भइसारा-संज्ञा स्त्री० [हिं० मॉस्+शाला ] भोज्य पदार्थ रखने के जो किसी को यात्रा काल में विशेष रूप से दिया जाता है। लिये किवाड़ीदार आला या ताक । भैडरिया। | भदा-वि० [हिं० भादों ] भादों संबंधी। भादों का ।