पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२४६

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भदभद २५३९ भद्रदत संशा ली. वह फसल जो भादों में तैयार होती है। मन्वंतर के विगु से उत्पन्न एक प्रकार के देवता जो तुषित भदभद-वि० [ अनु०] (1) बहुत मोटा । (२) भद्दा । भी कहलाते हैं। भदयला-संशा पुं० [हिं० भादों ? ] मेंढक । संज्ञा पुं॰ [सं० भद्राकरण ] सिर, दादी, मूछों आदि सबके भदवरिया-वि० [हिं० भदावर+इया (प्रत्य॰)] भदावर प्रांत का। बालों का मुंडन । उ०-लीन्हों हृदय लागाय सूर प्रभु भदावर-संज्ञा पुं० [सं० भद्रवर ] एक प्रांत जो आजकल ग्वालियर पुछत भद्र भये क्यों भाई। सूर । भद्रकंट-संज्ञा पुं० [सं०] गोक्षुर । गोखरू । विशेष-यहाँ के क्षत्रियों का एक विशिष्ट वर्ग है। यहाँ के | भद्रक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) एक प्राचीन देश का नाम । (२) बैल भी बहुत प्रसिद्ध होते हैं। चना, मूंग इत्यादि अन्न । (३) एक वृत्त का नाम जिसके भदेस, भदेसिला-वि० [हिं० भद्दा] भद्दा । भोंडा । कुरूप । बद- ! प्रत्येक चरण में sssm sasm 515 (भरन र शकल। न र न ग) और ४, ६, ६, ६ पर यति होती है। (४) भदैला-संशा पुं० [हिं० भादों ? ] मेंढक । नागरमोथा। (५) देवदार।। भदैला-वि० [हिं० भादों ] भादों मास में उत्पन्न होनेवाला । भद्रकपिल-संशा पुं० [सं० ] शिव । महादेव । भादों का। भद्रकल्पिक-संज्ञा पु० [सं०] एक बोधिसस्त्र का नाम । भदोहा-वि० [हिं० भादों ] भादों मास में होनेवाला । उ०- भद्रकाय--संज्ञा पुं० [सं०] हरिवंश के अनुसार श्रीकृष्ण के एक वह रस यह रस एक न होई जैसे आम भदौंह।-देव- पुत्र का नाम । स्वामी। भद्रकार-वि० [सं० ] मंगल या कल्याण करनेवाला। भदौरिया-वि० [हिं० भदावर ] भदावर प्रांत का भदावर संबंधी संज्ञा पुं० एक प्राचीन देश का नाम जिसका उल्लेख महा- संज्ञा पुं० [हिं० भदावर ] (1) क्षत्रियों की एक जाति। भारत में है। (२) मदावर प्रांत का निवासी। भद्रकाली-संज्ञा स्त्री० [सं०] (1) दुर्गा देवी की एक मूर्ति जो१६ भहा-वि० पुं० [भद अनु०] [स्त्री० भही ] (१) जिसकी बनावट हाथोंवाली मानी जाती है। (२) कात्यायिनी । (३) कार्सि- में अंग प्रत्यंग की सापेक्षिक छोटाई बदाई का ध्यान न रखा केय की एक मातृका का नाम । पुराणानुसार इसकी उत्पत्ति गया हो। (२) जो देखने में मनोहर न हो। बेढंगा। दक्ष-यज्ञ के समय भगवती के क्रोध से हुई थी। इसने उत्पन्न होते ही वीरभद्र के साथ मिलकर यश का ध्वस भद्दापन-संज्ञा पुं० [हिं० मद्दा+पन (प्रत्य॰)] भरे होने का भाव । किया था । (५) गंधसम्मारिणी । (५) नागरमोथा। भद्र-वि० [सं०] (1) सभ्य । सुशिक्षित । (२) कल्याणकारी । भद्रकाष्ठ-संशा पु० [सं० ] देवदारु वृक्ष । (३) श्रेष्ठ । (४) साधु। भद्रगणित-संज्ञा पुं० [सं०] बीज गणित के अंतर्गत एक प्रकार संज्ञा पुं० [सं०] (1) कल्याण । क्षेम कुशल । (२) चंदन। का गणित जो चक्रविन्याय की सहायता से होता है। (३) हाभियों की एक जाति जो पहले विंध्याचल में होती भद्रगौड़-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्राचीन देश जो पुराणानुसार थी। (४) बलदेवजी का एक सहोदर भाई। (५) महादेव।। पूर्वी भारत में था। (६) एक प्राचीन देश का नाम । (७) उत्तर दिशा के भद्रधन-संज्ञा पुं० [सं०] नागरमोथा । दिमाज का नाम । (८) खंजन पक्षी । (९) बैल । (१०) भद्रचार-संज्ञा पुं० [सं०] रुक्मिणी से उत्पन्न श्रीकृष्ण का एक विष्णु के एक पारिषद का नाम । (११) रामजी के एक पुत्र । सखा का नाम । (१२) स्वर साधन की एक प्रणाली जो भद्रज-संज्ञा पुं० [सं०] इंद्रजी। इस प्रकार है-सा रे सारे ग रे,गमग,मपम,पध प, भद्रतरुणी-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार का गुलाब । धनि, नि सा नि, सा रे सा । सा नि सा, नि ध नि, विशेष—पाटल, कुंजिका, भद्रतरूणी इत्यादि गुलाब की कई धपध, पम प, मगम, ग रे ग, रे सा रे, सा नि सा।। जातियां हैं। (१३) ब्रज के ८४ वनों में से एक वन । (१४) सुमेरु भद्रता-संज्ञा स्त्री० [सं० ] भद्र होने का भाव । शिष्टता। सम्बता । पर्वत । (१५) कदवा (१६) सोना । स्वर्ण । (१७) मोथा। शराफ़त । भलमनसी। (14) रामचन्द्र की सभा का वह सभासद जिसके मुँह से भद्रतुंग-संज्ञा पुं० [सं० ] महाभारत के अनुसार एक प्राचीन सीसा की निंदा सुनकर उन्होंने सीता को वनवास दिया। तीर्थ। था। (१९) विष्णु का वह द्वारपाल जो उनके दरवाजे पर भदतरग-संज्ञा पुं० [सं०] जंबू द्वीप के नौ वर्षों में से एक वर्ष । वाहिनी ओर रहता है। (२०) पुराणानुसार स्वायंभुव भद्रदंत-संज्ञा पुं॰ [सं०] हाथी।