पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२५

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फुकनी २३१८ फैकनी-संशा स्त्री० [हिं० फूंकना | (1) नली जिसमें मुँह की | फुट-वि० [सं० स्फुट ] (1) जिसका जोगा न हो। अयुम्म । हवा भरकर आग पर इसलिए छोड़ते हैं जिसमें वह दहक एकाकी । अकेला । (२)जो लगाव में न हो। जो किसी जाय । (२) भाथी। सिलसिले में न हो। जिसका संबंध किसी क्रम या परंपरा फुकरना-क्रि० अ० [हिं० पुकार } फरकार छोड़ना । . शब्द से न हो । पृथक । अलग । करना । मुहँ से हवा छोरना । उ०—(क) तब चले बान संज्ञा पुं० [अ० फुट ] आयत-विस्तार का एक अँगरेज़ी कराल । फुकरत जनु बहु स्याल । -तुलसी । (ख) कहै मान । लंबाई चौदाई मापने की एक माप जो१२च या पमाकर त्यों करत फुकरत, फैलत फलात फाल बांधत ३६ जी के बराबर होती है। फलंका में।-पमाकर। फुटकर-वि० [सं० म्फुट-+का=(प्रत्य०).] (१) अयुग्न । फॅकवाना--क्रि० स० [हिं० फूंकना' का प्रे०] (1) फूकने का . विषम । फुट । जिसका जादा न हो । एकाकी । अकेला । काम कराना । (२) मुँह से हवा का झोंका निकलवाना । (२) अलग । पृथक् । जो लगाव में न हो । जिसका (३) जलवाना । भस्म करवाना। संबंध किसी क्रम या परंपरा के साथ न हो। जिसका काना-क्रि० स० | हिं. 'फुकाना' का प्रे। फूंकने का काम कोई सिलसिला न हो। जैसे, फुटकर कविता । (३) कराना। भिन्न भिन्न । कई प्रकार का। कई मेल का । (४) खंड कार-शा पुरु | अनु० साँप बैल आदि के मुंह वा नाक के खंड। थोड़ा थोड़ा। इकट्ठा नहीं। थोक का उलटा । नथनों मे बलपूर्वक वायु के बाहर निकलने से उत्पन्न जैसे,—(क) (१) वह फुटकर सौदा नहीं बेंचता। (ग्व) चीज शब्द । फूत्कार । उ.-तुम जाहु बालक छाडि यमुना इकट्ठा लिया करो फुटकर लेने में ठीक नहीं पड़ता। स्वामि मेरो जागिहै । अंग कारो मुख विकारी दृष्टि परे फुटकल-वि० दे. "फुटकर"। तोहि लागिह............."तब धाइ धायो जाइ जगायो फटका-संशा पुं० [सं० फाटक | (१) फफोला । छाला । मानो हटी हाथियों । सहस फन फुकार छाँडे जाई काली __ आबला। नाधियाँ । —सूर । क्रि० प्र०-पड़ना। फॅदना-संज्ञा पुं० | हि फल+फंद? () फूल के आकार (२) धान, मक्के, ज्वार आदि का लावा । की गाँठ जो चंद, हजारवंद, चोटी बाँधने या धोती कसने संज्ञा पुं० [देश॰] वह कड़ाह जिसमें गन्ने का रस की डोरी, झालर आदि के छोर पर शोभा के लिए बनाते . पकता है। हैं। फुलरा । अकया । उ०--उठी सो धूम नयन गरुवानी। फूटकी-संज्ञा स्त्री० [सं० पुटक] (1) किसी वस्तु के लोटे लच्छे, लागी परै आँसु यहिरानी । भीनै लागि दुए कठमुंदन। या जमे हुए कण जो पानी, दूध आदि में अलग अलग भीजे भंवर कमल सिर कुंदन । -जायसी। (२) तराजू दिखाई पड़ते हैं। बहुत छोटी अंठी । जैसे, (क) दुध की डंडी के बीच की रस्मी की गाँठ। (३) कोडे की डोरी फट गया है, उसमें फुटकियाँ सी दिखाई परती है। (ख) के छोर पर की गाँठ। घुले हुए बेसन की फुटकियाँ । (२) खून, पीब आदि का फंदी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फंदा फंदा। गाँठ। उ.-लीन्ही उसास . छींटा जो किसी वस्तु (जैसे, मल, थूक आदि) में मलीन भई दुति दीन्ही फुदी फुफुदी की छिपाइ के। दिखाई दे । (३) एक प्रकार की छोटी चिड़िया । फुदकी। फुटनोट-संशा स्त्री० [अं॰] वह टिप्पणी जो किसी लेख वा फंसी-संज्ञा स्त्री० [सं० पनसिका, पा० फनस | छोटी फोदिया । पुस्तक के पृष्ठ में नीचे की ओर दी जाती है। यौ०-फोदा फुसी। फुटपाथ-संशा पुं० [अं०] (1) शहरों में सड़क की पटरी फुआरा-संशा पुं० दे० "फुहारा" । पर का वह मार्ग जिसपर मनुष्य पैदल चलते हैं। फुकना-क्रि० अ० दे. "फुकना"। (२) पगडंडी। संज्ञा पुं० दे० "फुकना"। फुटबाल-संज्ञा पुं० [अं०] बदा गेंद जिसे पैर की ठोकर से फुकाना-कि० सं० दे० "फुकाना"। उछाल कर खेलते हैं। फुचड़ा-संज्ञा पुं० [ देश ] कपड़े, दरी, कालीन, चटाई आदि ! फुटेहरा-संज्ञा पुं० [हिं० फूटना+हरा फल ] (1) मटर वा चने खुनी हुई वस्तुओं में बाहर निकला हुआ सूत या रेशा। का दाना जो भूनने से ऐसा खिल गया हो कि छिलका जैसे,-थान में जो जगह जगह फुचड़े निकले हैं उन्हें कैंची फट गया हो। (२) चने का भुना हुआ धर्धन । से काट दो। । फुटैल-वि० दे० "फुटल"। क्रि० प्र०-निकलना। फुट्ट-वि. दे. "फुट"। सा