पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२५०

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भई भरत जनम भर सेवा । चलै तो यह जिव साय परेवा ।- भरणी-संज्ञा स्त्री० [सं०] (३) घोषक लता।कावी सरोई। खिया- जायसी। तरोई । (२) सत्ताइस नक्षत्रों में दूसरा नक्षत्र । तीन तारों

  • कि० वि० [हिं० भार ] भार से । बल से। द्वारा। के कारण इसकी आकृति त्रिकोण सी है। इसके अधिष्ठाता

उ.-(क) सिर भर जाउँ उचित अस मोरा । सब ते देवता यम है। यमदैवत । यमभू । (३) एक ला जो भूमि सेवक धरम कठोरा ।--सुलसी । (ख) गिरिगो मुंह के भर खोदने के लिये अच्छा माना जाता है। भूमि तहाँ। चलि बैठि पराय लजाय जहाँ।-रघुराज । वि० भरण करनेवाली । पालन करनेवाली। उ०—तोही संज्ञा पुं० [सं० भार ] (१) भार । बोझ । बज़न । (२) कर्णि हरणी । सोही विष भरणी।-विश्राम । पुष्टि। मोटाई। उ.--भर लाग्यो परन उरोजनि में रघुनाथ | भरणीभू-संज्ञा पुं० [सं०] राहु । राजी रोम राजी भांति कल अलि सैनी की।--रघुनाथ भरणीय-वि० [सं०] भरण करने के योग्य । पालने पोपने के क्रि०प्र०-पालना।-पड़ना। लायक संज्ञा पुं० [सं०] (1) वह जो भरण पोषण करता हो। भरण्य-संज्ञा पुं० [सं०] (1) मूल्य । दाम । (२) वेतन । (२) युद्ध । ललाई। तनखाह। संज्ञा पुं० [सं० भरत या भरतपुत्र ] एक छोटी और अस्पृश्य भरण्यु-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) ईश्वर । (२) चंद्रमा । (३) अनि । जाति जो संयुक्त प्रोत और बिहार में पाई जाती है। आज-I (४) मित्र । कल इस जाति के कुछ लोग अपने आपको भरद्वाज के भरत-संज्ञा पुं० [सं० ] (1) कैकेयी के गर्भ से उत्पन्न राजा दश- वंशज बतलाते हैं। स्थ के पुत्र और रामचंद्र के छोटे भाई जिनका विवाह भरई-संज्ञा पुं० दे० "भरदूल"। माण्डवी के साथ हुआ था। ये प्राय: अपने मामा के यहाँ भरक-संज्ञा पुं॰ [देश॰] दलदलों में रहनेवाला एक प्रकार का रहते थे और दशरथ के देहांत के उपरांत अयोध्या आए थे। पक्षी जो पंजाब और बंगाल में अधिकता से पाया जाता दशरथ का श्राद्ध आदि इन्हीं ने किया था। कैकेयी ने है। यह प्राय: अकेला रहता है. पर कभी कभी दो या तीन इन्हीं को अयोध्या का राज्य दिलवाने के लिये रामचंद्र को भी एक साथ दिखाई देते हैं। मांस के लिये इसका शिकार वनवास दिलाया था पर इसके लिये इन्होंने अपनी माता किया जाता है। की बहुत कुछ निंदा की थी। रामचंद्र को ये सदा अपने संज्ञा स्त्री० दे. "भड़क"। बड़े भाई के तुल्य मानते थे और उनके प्रति बहुत श्रद्धा भरफना*-कि० अ० दे. "भड़कना"। रखते थे। पिता के देहांत के उपरांत रामचंद्र को अयोध्या भरका-संज्ञा पुं० [ देश० ] (1) वह ज़मीन जिसकी मिट्टी काली वापस लाने के लिये भी यही चित्रकूट गए थे । जब राम- और चिकनी हो, परंतु सूख जाने पर सफेद और भुरभुरी हो चंद्र किसी प्रकार आने के लिये तैयार नहीं हुए, तब ये जाय । यह प्रायः जोती नहीं जाती। (२) दे. "भरक"। अपने साथ उनकी पादुका लेते आए और उसी पादुका को भरकाना*1-क्रि० स० दे० "भड़काना"। सिंहासन पर रखकर रामचंद्र के आने के समय सफ अयोध्या भरकी-संज्ञा स्त्री० दे. "भरका"। का शासन करते रहे। और जब रामचंद्र लौट आए, तब भरकूट-संज्ञा पुं० [डि• ] मस्तक । माथा । इन्होंने राज्य उन्हें सौंप दिया। इनको तक्ष और पुष्कर भरके-अव्य. [ हिं. भरना ] एक संकेत जो पालकी ढोनेवाले नामक दो पुत्र हुए थे। उन्हीं पुत्रों को साथ लेकर इन्होंने कहार नाली आदि से बचकर चलने के लिये करते हैं। गंधर्व देश के राजा शैलुश के साथ युख क्रिया था और उसे भरचिटी-संज्ञा स्त्री० [देश॰] हिसार प्रांत में होनेवाली एक परास्त करके उसका राज्य अपने दोनों पुत्रों में बाँट दिया प्रकार की घास जो वर्षा ऋतु में अधिकता से होती है। था। पीछे ये रामचंद्र के साथ स्वर्ग चले गए थे। (२) पशुओं के लिये यह बहुत पुष्टिकारक होती है। यह छोटी भागवत के अनुसार ऋषभ देव के पुत्र का नाम । वि.दे. और बड़ी दो प्रकार की होती है। "जद भरत"। (३) शकुंतला के गर्भ से उत्पन्न दुष्यंत भरट-संज्ञा पुं० [सं०] (1) कुम्हार । (२) सेवक । नौकर । के पुत्र का नाम जिनका जन्म कण्व ऋषि के आश्रम में हुआ भरटक-संज्ञा पुं॰ [सं०] सन्यासियों का एक संप्रदाय । था। जन्म के समय ऋषि ने इनका नाम सर्वदमन रखा भरण-संज्ञा पुं॰ [सं.] (1) पालन । पोषण । उ०—विध भरन था और इनको शकुंतला के साथ दुष्यंत के पास भेज पोषन कर जोई। ताकर नाम भरत अस होई। तुलसी । दिया था। दे. "दुष्यंत"। बड़े होने पर ये बड़े प्रतापी (२) भरणी नक्षत्र । (३) वेतन । तनख्वाह । (५) किसी और सार्वभौम राजा हुए। विदर्भराज की सीन कन्याओं वस्तु के बदले में जो कुछ दिया जाय। भरती। से इनका विवाह हुआ था। इन्होंने अनेक अवमेध और