पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२५७

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भवभूष
भसमा
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भषभूष* -संज्ञा पु० [सं०] संसार के भूषण । उ.-भवभूष | का एक भेद । वह नायिका जो रप्ति में प्रवृत्त होनेवाली दुरंतरनंत हसे दुख मोह मनोज महा जुर को। केशव । हो और पहले से उसे छिपाने का उद्योग करे। भविष्य भवमोचन-वि० [सं० ] संसार के बंधनों से छुदानेवाले, भग सुरति गुहा। बान । उ०-होइहहि सुफल आज मम लोचन । देखि भविष्यत-संज्ञा पुं० [20] वर्तमान काल के उपरांत आनेवाला वदन पंकज भवमोचन । तुलसी। काल । आनेवाला समय । आगामी काल । भविष्य । भवरुत-संज्ञा पुं० [सं०] प्राचीन काल का एक प्रकार का राजा भविष्यद्वक्ता-संज्ञा पुं० [सं०] (१) बह जो होनेवाली बात जो मृतक की अत्येष्टि क्रिया के समय बजाया जाता था। पहले से ही कह दे । भविष्यवाणी करनेवाला । (२) प्रेतपटह । . ज्योतिषी । भषवामा-संक्षा स्त्री० [सं०] शिव जी की स्त्री, पार्वती । 'भविष्यवाणी-संशा स्त्री० [सं०] भविष्य में होनेवाली वह बात भवानी। जो पहले से ही कह दी गई हो। भवविलास-संज्ञा पुं० [सं०] (१) माया । (२) संसार के सुख भविष्य सुरति गोएना-संझा स्त्री० दे० "भविष्यगुप्ता"। जो ज्ञान के अंधकार में उदित होते हैं। उ०--मनहुँ : भवीला*-वि० [हिं० भाव+ईला (प्रत्य॰)] (1) जिसमें कोई ज्ञानधन प्रकास बीते सब भवविलास आस वास तिमिर : भाव हो। भावयुक्त । भावपूर्ण । बाँका तिरछा। तोप तरनि तेज जारे ।-तुलसी। 'भवेश-संशः पुं० [सं०] (१) संसार का स्वामी। (२) महादेव । भवशूल-संज्ञा पुं० [सं. J सांसारिक दुःख और क्लेश। शिव । उ.-पावनि करौं सो गाइ भवेस भवानिहि।- भवसंभव-वि० [सं०] संसार में होनेवाला । सांसारिकाउ.. सुलसी। तजि माया के इय परलोका। मिटहि सकल भवसंभव भव्य-वि० [सं०] (1) जो देखने में भारी और सुदर जान सोका।-तुलसी। पड़े। शानदार । (२) शुभ। मंगलसूचक । (३) मस्य । भव-संवा स्त्री० [हिं० भवना ] भौरी । फेरी । चकर । उ.-. सच्चा । (४) योग्य । लायक । (५) भविष्य में होनेवाला । जनु यमकात करहि सब भवा। जिय पै चीन्ह स्वर्ग अप (७) श्रेष्ट 1 बड़ा । (4) प्रसन्न । साँ-जायसी। संशा पुं० (१) भलता नामफ धृक्ष । (२) कमरख । (३) भवाना--क्रि० स० [सं० भ्रमण ] घुमाना। फिराना। चकर नीम । (४) करला। (५) वह जिस लिंग पद की प्राप्ति हो। देना । उ०-(क) या विधि के सुनि बैन सुरारी । मुष्टिक भवसिद्धक । (जैन) (६) वह जो जन्म ग्रहण करता हो । एक भवाह के मारी।-विश्राम। (ख) तेहि अंगद कह शरीर धारण करनेवाला । (७) नवे मन्वंतर के एक ऋषि लात उठाई । गहि पद पटके उ भूमि भवाँई।-तुलसी। का नाम । (4) पुराणानुसार ध्रुव के एक पुत्र का नाम । भषा-संज्ञा स्त्री० [सं०] पार्वती । भवानी। दुर्गा। (५) मनु चाक्षुप के अंतर्गत देवताओं के एक वर्ग का नाम । भवाचल-संज्ञा पुं० [सं० ] कैलास पर्वत जो पुराणानुसार मंदर भव्यता-संज्ञा स्त्री० [सं०] भय्य होने का भाव । पर्वत के पूर्व में है। । भव्या-संद्या स्त्री० [सं०] (1) उमा । पार्वती । गजपीपल । भवानी-संज्ञा स्त्री० [सं०] भव की भार्या, दुर्गा । भष*-संशा पुं० [सं० भक्ष्य ] आहार । भोजन । उ०-अति आतुर भवाभीष्ट-संज्ञा पुं० [सं०] गुग्गुल । भष कारण धाई धरत फनन समाई।-सूर । भधायन-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव का उपासक या भक्त । शैव। संज्ञा पुं० [सं०] कुप्ता । भवायना-संज्ञा स्त्री० [सं०] शिव के सिर पर रहनेवाली, गंगा। भषना*-क्रि० स० [सं० भक्षण ] खाना । भोजन करना । भवित-संक्षा पुं० [सं० ] जरे हो का हो । बीता हुआ। भूत । भसंधि-संशा झी० [सं० ] अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्रों के भवितव्य-संज्ञा पुं० [सं०] अवश्य होनेवाली बात । भवनीय । होनहार। भसन-संज्ञा पुं० [सं०] भ्रमर । भौरा । भवितव्यता-संशा स्त्री० [सं०] (१) होनी । भावी। होनहार । : भसना-कि० अ० [.०] (१) पानी के ऊपर सैरना । (२) (२) भाग्य । किस्मत । पानी में डूबना। भविष*-संशा पुं. दे. "भविष"। भसम-संज्ञा पुं० दे. "भस्म"। भविष्य-वि० [सं० भविष्यत् ] वर्तमान काल के उपरांत आनेवाला भसमा-संशा पुं० [सं० भस्म ] (1) पीसा हुआ आटा। (साधुओं काल । यह काल जो प्रस्तुत काल के समाप्त हो जाने पर ! की परिभाषा) (२) नील की पत्ती की बुकनी । भानेवाला हो। भानेवाला काल। संज्ञा पुं॰ [फा० दस्मा का अनु.] एक प्रकार का खिजाध भविष्यगुप्ता-संशा स्त्री० [सं०] काल के अनुसार गुप्ता नायिका | जिससे बाल काले किए जाते हैं।