पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२७

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फुरफुर २३२० फुलझड़ी फुरफुर-संज्ञा स्त्री० [ अनु० ] (1) उपने में परों की फरफराहट क्रि० प्र०-खाना । लेना। से उत्पन्न सदद। रेनों का शब्द। (२) पर आदि की (२) फड़फवाहट। फड़कने का भाव । फरकना । उ०- रगढ़ से उत्पन शब्द। फरकि फरफि वाम बाहु फुरहरी लेत खरकि, खरकि खुलै फुरफुराना-कि० अ० [ अनु० फुरफुर ) (१) 'फुर फुर' करना। मैन सर खोजहै।-देव । उड़कर परों का शब्द करना । जैसे, चिड़ियों या फतिंगों! कि०प्र०-खाना ।—लेना। का फुरफुराना। (२) किसी हल्की छोटी वस्तु (जैसे, (३) कपड़े आदि के हवा में हिलने की क्रिया या शन्द । रोएँ, बाल आदि) का हवा में इधर उधर हिलना । हलकी फरफराहट । (४) कैपकँपी। फुरेरी । कंप और रोमांच । वस्तु का लहराना। दे. "फुरेरी।" उ०-नहिं अ-हाय नहिं जाय घर चित क्रि० स० (8) पर या और कोई हलकी वस्तु हिलना चिहुट्यो तफि तीर । परसि फुरहरी लै फिरति विहँसति जिससे फुरफुर शब्द हो। जैसे, पर फुरफुराना । (२): धंसति न नीर ।—बिहारी। कान में रुई की फुरेरी फिराना । जैसे,~-कान में खुजली मुहा०-फुरहरी लेना-कांपना । थरथराना । है तो फुरेरी डालकर फुरफुराओ। (५) दे. "फुरेरी।" फुरफुराहद-संज्ञा स्त्री० [ अनु.] 'फुरफुर' शब्द होने का फुराना-क्रि० स० [हिं० फुर] (१) सञ्चा लहराना । ठीक उतारना । भाव । पंख फड़फड़ाने का भाव । (२) प्रमाणित करना। फुरफुरी-संशा श्री० [ अनु० फुरफुर ] 'फुरफुर' शब्द होने का क्रि० अ० दे० "फुरना"। भाव । पंख फड़फड़ाने का भाव । उ.-राजा के जी में 'फुरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फुरफुरामा । (1) सीक जिम्मके सिरे पर धर्म की चिड़िया ने फिर फुरफुरी ली।-शिवप्रसाद। हलकी रुई लपेटी हो, और जो तेल, इन, दवा आदि में मुहा०-फुरफुरी लेना उपने के लिये पंख हिलाना। डुबो कर काम में लाई जाय । (२) सरदी, भय आदि के फरमान-संज्ञा पुं० [फा० फरमान ] (१) राजाज्ञा । अनुशासन कारण थरथराहट होना और रोंगटे खड़े होना । रोमांच- पत्र। (२) मानपत्र । सनद । (३) आज्ञा। आदेश। युक्त कंप। उ.-मंगल उत्पसि आदि का सुनियो संत सुजान । कहे मुहा०-फुरेरी आना झुरझुरी दोन। । सरदा, हर आदि के कबीर गुरु जाग्रत समरथ का फरमान-कबीर। कारण कंपकंपी होना । फुरेरी लेना=(१) सरदा, भय आदि के फुरमाना-क्रि० स० [ 10 फरमान | कहना । आशा देना । दे.. कारण कॉपना । कपकपी के साथ रोगंट खः करना । थरथराना। "फरमाना"। उ०..-तब नहिं होते गाय कसाई। कह उ.-नाहिं अन्हाय नहिं जाय घर चित चिहुट्यो तकि विसमिल्लाह किन फुरमाई ।-कधीर । तीर । परसि फुरहरी लै फिरति, बिहँसति धंसति न नीर । फुरसत-संज्ञा स्त्री० [अ०] (१) अवसर । समय । (२) पास -बिहारी। (२) फड़फड़ाना । फड़कना । हिलना। उ०- में कोई काम न होने की स्थिति । किसी कार्य में न लगे : फरकि फरकि थाम बाहु फुरहरी लेति, खरकि स्वरकि उठे रहने की अवस्था । काम से निपटने या खाली होने की मैन सर खोजहै।-देव । (३) होशियार होना । चीकना । हालत । अवकाश । निवृत्ति । छुट्टी । जैसे, इस वक्त फुर-: एक बारगी सॅभल जाना। सत नहीं है दूसरे वक्त आना। ! फुती-संशा स्त्री० दे० "फुरती"। क्रि०प्र०—देना ।-पाना |-मिलना।—होना । फुर्सत-संज्ञा स्त्री० दे० "फुरसत"। मुहा०-फुरसत पाना-नौकरी से छूटना । बरनास्त होना। फुलका-संज्ञा पुं० [हि० फूलना] (1) फफोला । छाला । उ०- ( ला० ) । फुरसत से खाली वक्त में । धीरे धीरे । विना तब तिय कर फुलका करि आयो। कछु दिन में ताते सुत उतावली के। जैसे, यह काम दे जाओ, मैं फुरसत से जायो।-रघुराज । (२) हलकी और पतली रोटियाँ । करूँगा। चपाती। (३) एक छोटा कड़ाह जो चीनी के कारखाने में (३) बीमारी से छुटकारा । रोग से मुक्ति । आराम। काम आता है। फुरहरना-क्रि० अ० [सं० स्फुरण ] स्फुरित होना । निकलना । फुलचुही-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल+चूसना ] नीलापन लिए काले प्रादुर्भूत होना । उ०-छप्पन कोटि खसंदर बरा। सवा रंग की एक चमकती चिड़िया जो फूलों पर उड़ती फिरती लाख पर्वत फुरहरा ।—जायसी।। है। इसकी चोंच पतली और कुछ लंबी होती है जिससे यह फुरहरी-संशा स्त्री० [ अनु० ] (१) पर को फुलाकर फरफड़ाना। फूलों का रस चूसती है। उ.-रायमुनि सुम औरतमुही। उ.--सबै उडान फुरहरी खाई। जो भा पंख पाँख तन अलि मुख लागि भई फुलचुही।-जायसी। लाई।-जायसी। । फुलझड़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० फूल+ झड़ना ] (1) एक प्रकार की