पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२७१

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भार्याटिक भावता भार्याटिक-वि० [सं० को अपनी भार्या में बहुत अनुरक्तहो। ।-लक्ष्मणसिंह। प्रण। भालिया-सा पुं० [देश.] वह अन्न जो हलबाहं को वेतन में संग पुं० (१) एक मुनि का नाम । (२) एक प्रकार का दिया जाता है। भाता। हिरन । भाली-संज्ञा स्त्री० [हिं० भाटा : (१) भाले की गाँी या नांक । भार्यान्व-संशा पं० | स० ] भार्या होने का भाव । परनीस्व । उ.--जब वह सुरांत होत उर अंतर लागति कार वाण भारमि-संशा पं० [सं० 1 (१) एक प्रकार का मृग। (२) एक को भाली ।—सूर । (२) शूल । काँटा । उ.-कहारी पर्वत का नाम। कहीं कह कहत न बनि आवलगी मरम की भाली भाय्यविक्ष-संवा पुं० [सं०] पतंग नामक वृक्ष । री।-सूर। भाद-संज्ञा ५० सं० (१) भवां के ऊपर का भाग। कपाल। भाद-संज्ञा पुं० दे० "भाटू" । स.लाट । मम्तक । माथा । उ०—(क) भाल गुही गुन लाल संश। पु. [ स० ] सूर्य । स्टै लपटी लर मोतिन की सुग्वदेनी । केशव । (ग्व) भालक-संज्ञा पुं० [सं०] भालू । सछ। कानन कुंडल विशाल, गोरोचन तिलक भाल ग्रीवा छवि भान्दनाथ-संज्ञा पुं० [हि भालु+म नाथ ] जामवंत । जांबवान । देग्वि देखि शोभा अधिकाई । (२) तेज । उ.-भालुनाथ नल मील पाथ चले बली बालि का संगा पुं० [हिं० भाला ] (१) भाला । बरहा | उ.-(क) जायो।-तुलसी। भाल यॉग्स खाँडे वह परहीं। जान पावाल बाज के । भालू-संगा पु० [सं० भल्लक : एक प्रसिद्ध स्तनपायी भीषण चनहीं।-जायमी। (ख) भलपति बैठ भाल ले और बैठ चौपाया जो प्रायः ,मारे संसार के बड़े बड़े जंगलों और धनकार । जायसी । (२) तीर का फल । तीर की पहाड़ों में पाया जाता है। आकार और रंग आदि के विचार नोक । गाँयी । उ०-ग्वीरि पनज भृकुटी धनुष बधिक से यह कई प्रकार का होता है। यह प्रायः ४ फुट से ७ फुट समर तजि कानि । हनत तरुन मृग तिलक मर सुरुकि नक लंबा और २१ फुट ४ फुट तक उँचा होता है। भाल भरि तानि । साधारणत: यह काले या भूरे रंग का होता है और इसके मंगा पुं० [सं० भन्छ । रीछ । भाल। उ~-तहाँ सिंह शरीर पर बहुन बड़े बड़े बाल हान हैं। उत्तरी ध्रुव के भाल बहु श्वान वृक पर्प गीध अरु भाल ।विश्राम । का रंग प्राय: माकेद होता है। यह संस भी ग्वाता है और भालचंद्र-संक्षा पु० [सं० : (१) महादेव । (२) गणेश । फल, मूल आदि भी। यह प्रायः दिन भर माँद में सोया संगा बी० दुर्गा । रहता है और रात के समय शिकार की तलाश में बाहर भालदर्शन-संवा पु० [सं० } सिंदूर । सेंदुर। निकलता है। भारत में प्रायः मदारी इये एकदकर नाचना भालना-वि. स. (१) ध्यानपूर्वक देखना । अच्छी तरह देखना। और तरह तरह के पेल करना सिग्दलाते हैं। इसकी मादा जैसे, देखना भालना । (२)दना । तलाश करना। प्रार: जादे के दिनों में एक साथ दो बच्चे देती हैं। बहुत भालनेत्र, भाटलांचन-संज्ञा पुं० [सं० ] शिव, जिनके मस्तक ठंडे देशों में यह जाड़े के दिनों में प्रायः भूग्वा प्यासा और में एक तीसरा नेत्र है। मुरदा सा होकर अपनी माँद में पड़ा रहता है और भालवी-संग पु० सं० भल्लक रीछ । भाल्ट.। (दि.) वसंत ऋतु आने पर शिकार हूँढने निकलता है। उस समय भालक-सं। १0 [म. ] (1) करपत्र नामक अस्त्र। (२) एक यह और भी भीषण हो जाता है। यह शिकार के पीछे प्रकार का माग । (३) रोहित मछली । (३) कछुआ। अथवा फल आदि खाने के लिये पेड़ों पर भी चढ़ जाता है। (५) शिव । (६) ऐया मनुष्य जिसके शरीर में बहुत जंगलों में यह अकेले दुकेले मनुष्यों पर भी आक्रमण करने अच्छे अच्छे लक्षण हो । (सामुद्रिक) से नहीं चूकता । रोछ । भाला-संा joसं. भल बरछा नाम का हथियार । मांग। भालक-संज्ञा पुं० [सं०] भाल। नेजा। भावंता-संगा पुं० [हिं० भावना या भाना=प्रिय लगना] प्रेम. भालाबरदार-संशा पुं० [ हिं, भाला-+-फा० बरदार ] बरसा घलाने पात्र । प्रिय । प्रीतम । उ०—(क) इहि विधि भावता बमो वाला । बरछैत । हिलि मिलि नैनन माहि। खंचे हग पर जात है मन कर भालि-संचा स्त्री माला का स्त्री अल्पा] (1) बरछी। प्रोतम बाँहि । रसनिधि। (ग्य) जाते ससि नुव मुग्व साँग । (२) शूल । काँटा । उ०--(क) यापुरी मंजुल अंय लौ मेरो चिस सिंहाय । भावता उनिहार कछु सो में की हार सु भालि सी है उर में अरती क्यों । वेव । (ख) पैयत आय !--सनिधि । प्यारे के मरने को मूर्ख लोग हृदय में गड़ी हुई भालि मानते संज्ञा पुं० [सं० भावी होनहार। भावी। उ.-आगे जस