पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२७३

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२५६६ भावना है। अभाव का उलटा। की केवल भावना करना। यह जैनियों के अनुसार एक भावअहंत-मंज्ञा पुं० [सं० ] एक प्रकार के तीर्थंकर । (जैन) प्रकार का पाप है। नाव - अन्य (हि. भावना या भाना अच्छा लगना, मि० पं. भाषदया-संज्ञा वि० [सं०] किमी जीव की दुर्गति देवकर उसकी मावेj जी चाहे। इच्छा हो तो। उ-भावर पानी पिर रक्षा के अर्थ अंत:करण में दया लाना 1 (जैन) परइ, भावद पर अँगार। भावन-वि० [हिं० भावन- अच्छा लगना ] अच्छा लगनेवाला। भावक:-कि वि० [सं० भाव+क (प्रत्य॰)] किंचित् । थोड़ा प्रिय लगनेवाला । जो मला लगे। भानेवाला । उ.-इमि या । जरा मा। कुछ एक । उ०-भावक उभरोही भयो कहि के व्याकुल भई सो लखि कृपानिधान । धीर धरहु कधुक परयो भरु आय । सीपहरा के मिस हिया निमि दिन भापत भए भन भावन भगवान ।-गिरिधर । हरत जाय ।-बिहारी। यौ०-मन-भावन । वि० सं०] भाव में भरा। भावपूर्ण । उ०-भेट स्यों ___ संशा पू० [सं० 1 (1) भावना । (२) ध्यान । (३) विगु । अभेद हाव भाव हूँ कुभाव केते, भावक सुबुद्धि यथारति भावना-संशा स्त्री० [सं० ] (१) मन में किसी प्रकार का चिंतन निरधारती।--रघुराज । करना । ध्यान । विचार । खयाल । उ.--जाकी रही F1 पु०सं०] (१) भावना करनेवाला । (२) भाव संयुक्त। भावना जैसी । हरि-मूरति देवी तिन्ह तैसी।--तुलसी । (३) भन । प्रेमी। अनुरागी। उ.-ताई पर जे भावक . विशेष-पुराणों में तीन प्रकार की भावनाएँ मानी गई पूरे ते दुग्व सुग्व सुनि गाया।-रघुराज । (४) भाव । है-ब्रह्म भावना, कर्म भावना और उभयात्मिका भावना; वि. म. j उत्पादक । उत्पन्न करनेवाला । और कहा गया है कि मनुष्य का चित्त जैसा होता है. नावगति-स : स्त्री० [सं० भाव+गति ] इरादा । इच्छा। वैसी ही उम्पकी भावना भी होती है। जिसका चित्त विचार । उ.---ज़रा छिपे रहो, जिसमे मैं महाराज की निर्मल होता है, उसकी भावना ब्रह्म-संबंधी होती है; और भावगति जान मर्के । रनावली। जिपका चित्त बमल होता है, उसकी भावना विषय वापना नावगम्य-वि० [सं०] भक्ति भाव से जानने योग्य । जो भाव की ओर होती है । जैनियों में परिकर्म भावना, उपचार की सहायता से जाना जा सके । उक-प्रयः शूल भावना और आत्म भावना ये तीन भावनाएँ मानी गई हैं। निर्मुलनं शूलपाणिम् । भजेऽहं भवानीपति भावगम्यम् । और बाद में माध्यमिक, योगाचार, मांत्रांतिक और वैभा- पिक ये चार भावनाएँ मानी गई है और कहा गया है कि भावप्रास्य-वि० सं० ] भक्ति से ग्रहण करने योग्य । जिये मनुष्य इन्हीं के द्वारा परम पुरुषार्थ करता है। योगशास्त्र प्रहण करने से पूर्व मन में भक्तिभाव लाने की आवश्य के अनुसार अन्य विषयों को छोड़कर बार बार केवल ध्येय कना हो। वस्तु का ध्यान करना भावना कहलाता है। वैशेषिक के भावज-वि० सं०] भाव से उत्पन्न । अनुसार यह आत्मा का एक गुण या संस्कार है जो देग्ने, मंशा १० सं० भ्रातृजाया, हिं . भौजाई ] भाई की स्त्री। सुने या जाने हुए पदार्थ के संबंध में स्मृति या पहचान का भाभी । भौजाई। हेतु होता है; और शान, मद, दु:ख आदि इसके नाशक हैं। नावता-वि० । हि० भावना-- अच्छा लगना+ता (प्रत्य॰)] [ सी. (२) चित्त का एक संस्कार जो अनुभव और स्मृति मे भावनी ] जो भला लगे। उ.--(क) सरदचंद निक उत्पन्न होता है। (३) कामना । वासना । इच्छा । चाह । मुग्व न.के । नीरज नयन भावते जीके । सुहम्पी । (ब) उ.-(क) पाप के प्रताप ताके भोग रोग सोग जाके सुनियत भव भाषते राम है खिय भावनी भवानि है।-- साभ्यो चाहै आधि व्याधि भावना अशेष वाहि। केशव । तुलसी। (ग) बाल बिनोद भावती लीला अति पुनीत (ग्व) तहँ भावना करत मन माहीं। पूजत हरि पद-पंकज पुनि भाषा हो।-सूर। काहीं ।-रघुराज । (४) साधारण विचार या कल्पना । मक्षा " प्रेममात्र । प्रियतम । उ.--पथिक आपने पथ (५) वैद्यक के अनुम्पार किसी चूर्ण आदि को किसी प्रकार के लगी इहाँ रही न पुसाइ । रमनिधि नैन पराय में एक रस या तरल पदार्थ में बार बार मिलाकर घोटना और भावतो आह ।-रस्सनिधि। सुखाना जिसमें उस औषध में रम या तरल पदार्थ के कुछ भावताव-संहा पुं० हिं. भाव+ताव । किसी चीज़ का मूल्य या गुण आ जायें। पुट। भाव आदि। निर्स। दर। क्रि०प्र०-देना। मि०प्र०-जाँचना । देखना।

  • कि. अ. अच्छा लगना। पसंद आना रुचाना। 30--

भावदत्त दान-संज्ञा पुं० [सं०] वास्तव में चोरी न करके, चोरी; (क) मन भावे तिहार तुम सोई करी, हमें नेह को नातो