पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२७६

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भाषावद्ध भिगाना प्राकृती का, प्राकृतों से अपभ्रंशों का और अपभ्रंशों से जिसको हनुमान ने प्रमदावन उजाबने के समय आधुनिक भारतीय भाषाओं का विकास हुआ है। मारा था । क्रि० प्र०-जानना ।न्योलना ।-सीखना ।- समझना। भासना-क्रि० अ० [सं० भास ] (1) प्रकाशित होना । चमकना। (२) किसी विशेष जन-समुदाय में प्रचलित बात चीत (२) मालूम होना । प्रतीत होना । (३) देख पड़ना । (४) करने का ढंग । बोली। जैसे, ठगों की भाषा । दलालों फैसना । लिप्स होना । उ०-अपने भुज दंडन कर गहिये की भाषा । (३) वह अव्यक्त नाद जिससे पशु पक्षी आदि विरह पलिल में भामी।—सूर । अपने मनोविकार या भाव प्रकट करते हैं । जैसे, बंदरों * क्रि० अ० [सं० भापण ] कहना । बोलना। की भाषा । (४) आधुनिक हिंदी। (५) वह बोली जो वर्त- भासमंत-वि० [सं०] चमकदार । ज्योतिपूर्ण । मान समय में किसी देश में प्रचलित हो। (६) एक प्रकार भासमान-वि० [ म० ] जान पड़ता हुआ । भासता हुआ। की रागिनी । (७) ताल का एक भेद । (संगीत) (4) दिग्याई देता हुआ। वाक्य । (९) वाणी । सरस्वती । (10) अर्जीदावा । अभि मंशा पुं० सूर्य । (डिं.) योगपत्र । भासिक-संज्ञा पुं० [सं०] (1) दिग्वाई पड़नेवाला । (२) मालूम भाषाबद्ध-वि० [सं०] साधारण देश-भाषा में बना हुआ। उ०- होनेवाला । लक्षित होनेवाला । भाषाय द्ध करब मैं खोई।-तुली । भासित-वि० [सं०] तेजोमय । चमकीला । प्रकाशित । प्रकाश- भाषासम-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का शब्दालंकार । काव्य - मान । में केवल ऐसे शब्दों की योजना जो कई भाषाओं में समान भासु-संज्ञा पुं० [सं० ] सूर्यो। रूप से प्रयुक्त होते हो। उ.---मंजुल मणि मंजीरे कर गंभीरे भासुर-संशा पुं० [सं०] (1) कुष्ठ रोग का औषध । कोढ़ की विहार सरसीतीरे। विरसामि केलिर्फीरे किमालि धीरे च देवा । (२) स्फटिक । बिल्लौर । (३) वीर । बहादुर । गंधसार समीरे। यह श्लोक संस्कृत, प्राकृत, शौरसेनी, नागर वि. चमकदार । चमकीला अपभ्रंश, अवंती आदि अनेक भाषाओं में इसी रूप में भार-संशा पुं० [सं०] (१) सुवर्ण । मोना । (२) सूर्य । होगा। (३) अग्नि । आग। (४) वीर । (५) मदार का पेड़ । भाषासमिति-संज्ञा स्त्री० [सं० ] जैनियों के अनुसार एक प्रकार (६) महादेव । शित्र । (७) ज्योतिष शास्त्र के एक का आचार जिसके अंतर्गत ऐसी बातचीत आती है जिसमे ' आचार्य। इन्होंने सिद्धांत शिरोमणि आदि ज्योतिष के सब लोग प्रसन्न और संतुष्ट हों। ग्रंथ रचे हैं।(4) महाराष्ट्र ब्राह्मणों की एक प्रकार की भाषित-वि० [सं०] कथित । कहा हुआ । पदवी । (५) पत्थर पर चित्र और बेल बृट आदि बनाने संज्ञा पुं० कथन । बातचीत । की कला । यौ०-आकाशभाषित । भास्वत्-संक्षा पुं० [सं०] (1) सूर्य । (२) मदार का पेड़ । भाषी-संज्ञा पुं० [सं० भापिन् ] बोलनेवाला । जैसे, हिंदी- (३) मक। दीप्ति। (४) वीर । बहादुर । भाषी। वि० (१) चमकीला | चमकदार । (२) प्रकाश करनेवाला । भाष्य-संज्ञा पुं० [सं०] (१) सूत्र-ग्रंथों का विस्तृत विवरण या . चमकनेवाला। ग्याख्या। सूत्रों की की हुई व्याख्या या टीका । जैसे, भास्वती-संशात्री० [सं०] एक प्राचीन नदी का नाम । वेदों का भाष्य । (२) किसी गढ़ बात या वाक्य की (महाभारत ) विस्तृत व्याख्या । जैसे,—आपके इस पथ के साथ तो एक भास्वर-संछः पुं० (१) [सं० ] कुष्ठ का औषध । कोढ़ की दवा । भाष्य की आवश्यकता है। (२) दिन 1 (३) सूर्य । (४) सूर्य का एक अनुघर जिसे भाष्यकार-संज्ञा पुं० [सं०] सूत्रों की व्याख्या करनेवाला ।। भगवान सूर्य ने तारकासुर के वध के समय स्कंद को भाष्य बनानेवाला। दिया था। भास-संशा पुं० [सं०] (1) दीप्ति । प्रकाश । प्रभा। धमक। वि० दीप्तियुक्त । चमकदार । प्रकाशमय । 'चमकोला । (२) मयूख । किरण । (३) इच्छा। (४) गोशाला । (५) भिगो-संज्ञा पुं० [सं० भंग ] (१) मुंगी नाम का कीड़ा जिसे कुक्कुट। (श.क.) (६) गृध्र । गीध । (७) शकुंत घिलनी भी कहते हैं। (२) भौरा । पक्षी। (6) स्वाद । लज्जत । (९) मिथ्या ज्ञान। (१०) संज्ञा स्त्री० [सं० भग्न वा भंग ] बाधा। महाभारत के अनुसार एक पर्यत का नाम । भिंगराज-संशा पुं० दे० "भृगराज"। भासकर्ण-संशा पुं० [सं० ] रावण की सेना का मुख्य नायक भिंगाना-क्रि० स० दे० "भिगोना" ।