पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२७७

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भिगोरा भिटनी भिगोरा-संशा पु० [सं० भूगार: ] (1) भैंगरा । मुंगराज । भिक्षुरूप-सशा पु०म० महादेव । घमरा । (२) मुंगराज पक्षी। भिखमंगा-मंशा पुं० [हिं० भाग्य+मगना ] जो भीख मांगे। भिंगोरी-संज्ञा स्त्री० [सं० भृगरह मुंगराज नामक पक्षी भिखारी । भिक्षुक। भिजाना-क्रि० म० दे० "भिगोना"। भिग्वार-मंशा पुं० [हिं० भास+आर (प्रय०) ] भीख माँगनेवाला। भिंडा-संज्ञा पुं० | दश. ] यो पटक । जो भीग्ब माँगे । भिक्षुक । संभात्री 10 ] भिंडी। भिवारिणी-संज्ञा स्त्रीहि भिवारी वह स्त्री जी भिक्षा मांग। भिडि-मशा पु० सं० भिदि ] गोफना । देवाय । भीम मांगनेवाली नी । भिडिपाल-मा पु म भिदिपाल| छोटा इंडा जो प्राचीन काल भिखाग्नि-मंशाम्ब० दे० "भिग्वारिणी"। में फेंककर मारा जाता था। भिखारी-संज्ञा पुं० [हिं० भांख+आरा (अन्य०) ] ! सी भिग्वारिन, भिडी-संज्ञा स्त्री० [सं० भिसा ] एक प्रकार के पौधे की फली भिखारिणी । भीख मांगनेवाला व्यक्ति। भिक्षुक। भिखमंगा। जिपकी तरकारी बनती है। यह फली चार अंगुल से लेकर भिखिया संज्ञा स्त्री० दे० "भिक्षा"। बालिश्त भर तक लंबी होती है। इसके पौधे चैत ये जेठ भिखियारी-मधा पुं० दे० "भिवारी"। तक योए जाने है; और जब ६- अंगुल के हो जाते है, भिगाना--कि० स० दे० "भिगोना"। तय उपरे स्थान में रोपे जाते हैं। इसकी फसल को बाद भिगाना-क्रि० स० [सं० अभ्यंत्र किसी चीज़ को पानी से तर और निराई की बहुत आवश्यकता होती है। इसके रेशों में करना। पानी में इस प्रकार दुबाना जिसमें तर हो जाय । रस्से आदि बनाए जाते हैं; और कागज भी बनाया जा गीला करना। भिगाना । जैसे,—यह दवा पानी में सकता है। वैद्यक में इसे उण, ग्राही और हानिकारक भिगों दो। माना है। इसे कहीं कहीं रामतरोई भी कहते है। संया०कि-डालना ।—देना । भिदिपाल-मंज्ञा पुं० ! म दे. "मिडियाल"। भिच्छा-मा ० दे० "भिक्षा"। भिमार-संज्ञा पुं० म. मन+मरण गरा। सुबह । प्रातः- भिजवना-शि० ० [हि भिगोना | भिगोने में दूसरे को प्रवृत्त करना । पानी से तर कराना। उ०-(क) सर भिआ?-मंझा - हिं, भया ! भाई । भइया । सरोज प्रफुलिन निरग्नि हिय लग्वि अधिक अधार । भिज- भिक्षण-शा १० सं०] भिक्षा मांगने की क्रिया । भग्न यनित मंजुल करनि भरि भरि अंजुलि नर ।-प्रताप कवि। मांगना । भिवमंगी। (ब) विनती सुनि सानंद हेरि हँमि करुना बारि भूमि भिक्षा-भसाम्य [म.(1) याचना । मांगना । जैसे,—मै भिजई है। तुलसी। आपये यह भिक्षा माँगता हूँ कि आप इसे छोड़ दें। (२) भिजवाना- किस [ हि भान, का प्रे० किमी को भेजने दीनता दिखलाते हुए अपने उदरनिर्वाह के लिये घुम में प्रवृत्त करना । भेजने का काम दूसरे में कराना। जैसे,- घुमकर अन्न या धन आदि मांगने का काप । भी । (क) ज़र। अपने नौकर से यह पत्र भिजवा दीजिए। (ब) फ्रि० प्र०—मांगना। उन्होंने सब रुपया भिजवा दिया है। (३) इस प्रकार मांगने में मिली हुई वस्नु । भीग्न । (४) भिजवावरी-संशा स्त्री० दे. "भजियाउर"। संवा नोकरी। भिजाना-कि० म० [सं० अभ्यं न ] भिगोना । तर करना । गीला भिक्षाक-संज्ञा पुं० [सं०] भीग्व मांगनेवाला । भिक्षुक । करना । उ.-मुख पखारि मुंबहर भिजै सीस सजल कर भिक्षाटन--संशा पं० [म० ] भीख मांगने की फेरी । भीख मांगन वाइ। मौरि उ घटेनि नै नारि सरोवर न्हाइ।- के लिये इधर उधर धूमना । बिहारी। भिक्षापात्र-संज्ञा पुं० [सं०] वह पात्र जिसमें भिग्वमंग भीग्न कि. म० दे० "भिजवाना"। माँगते हैं। भिजीना, मिजोवना-+-क्रि० म. द. "भिगोना"। भिक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] (1) भीख मांगनेवाला । भिग्वारी । (२) भिक्ष-वि० [सं० ] जानकार । वाकिफ । गोरखमुंडी। मुंडी। (३) सन्यापी । { श्रीभिक्षुणी । भिटका-संशा पुं० [हि भाटा ] बमीठा । बामी। (४) बौद्ध संन्यासी। भिटना-संज्ञा पुं० [ दश ] छोटा गोल फल । जैसे, कपास का भिक्षुक-संशा पु० [सं०] (बी. भिक्षुका भिग्वमंगा । भिखारी। भिटना। यामक। भिटनी-संशा स्त्री० [हिं० भिटना ] म्तन के आगे का भाग। वि० [सं०] भीख मांगनेवाला ।