पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिल २५७२ भीटा उदर-रोग, कुष्ट, बवासीर, संग्रहणी, गुल्म, ज्वर आदि का चलूंगा। (स्व) वेतन के साथ भोजन भी मिलेगा। (ग) नाशक माना है। सज़ा के साथ जुरमाना भी होगा। पर्या०-अरुष्कर। शोपहृत् । बहिनामा । धीरतरु । रण (२) अधिक । ज़्यादा । विशेष । जैसे, इस पर समादा वृत। भूतनाशन । अग्निमुग्वी। भल्ली। शैलबीज । और भी आश्चर्यजनक है। (३) तक । लौं। उ.-मनुष्य वातारि । धनुर्वृक्ष। बीजपादप । वहि । महानीक्ष्णा । की कौन कहे, जहाँ तक दृष्टि जाती थी, पशु भा दिखलाई अग्निक । स्फोटहेतु । रक्तसर । न देता था। अयोध्यासिंह । भिल्लु-संज्ञा पु. दे. "मील"। भी -:पु० [स. भीम ] युधिष्ठिर के छोटे भाई, भीमसेन । भिल्लतरु-संज्ञा पु०म० ] लोध । उ.--जैग जरत लच्छ घर साहस कीम्हा भीउँ । जरत भिश्त-संशा सीक विहिदा । वैकुण्ठ । स्वर्ग। उ०- खंभ तप काम्यो के पुरपारथ जीउँ।—जायसी। अलस्व अकल जाने नहीं जीव जहन्नम लोय । हरदम हरि भीक-वि० [सं०] डरा हुआ। भं.त। जान्या नहीं भिश्त कहाँ ने होय ।-कबीर । संशा स्त्री० दे. "भीव" । भिश्ती-मंज्ञा पुं० [?] मशक द्वारा पानी ढोनेवाला व्यक्ति । सका। भीख-संवा स्त्री० [सं० भिक्षा ] (1) किस दरिद्र का दीनता भिषक-संशः पं० [ मं0 ] वैद्य । दिग्वाते हुए उदरपूर्ति के लिये कुछ माँगना । भिक्षा । भिप्रिया-संज्ञा स्त्री० [सं० । मुडुच । क्रि० प्र०-मांगना। भिपज-संश। पु० [सं०] वैद्य। यौन-भिखमंगा । भिग्वारी । भिष्टा-संशा पु० [सं० विधा ] मल । गृ । गलीज़ । (२) वह धन या पदार्थ जो इस प्रकार मांगने पर दिया भिसज-संश। पुं० [सं० भिषज ] वैद्य। (दि.) जाय। भिक्षा में दी हुई चीज़ । खैरात । भिसटा-संज्ञा पु० [ विधा ) गृ। मल! क्रि० प्र०-देना।–पाना।-मिलना। मिसर-संज्ञा पुं० [ भूसुर ) ग्राह्मण । (हि.) भीखन-वि० [सं० भीषण ] भयानक । भयंकर । डरावना । भिसिणी-संज्ञा पुं० [सं० व्यसनी | व्यम्पनी । (हिं.) उ०—री खनहुँ न सुग्व लखों दुख दै दुखद दिखाइ। भिस्त-संशा स्त्री० दे० "भिश्त"। भीखन भीखन लगत है तीखन तीख बनाइ।-रामसहाय । भिस्स-संशा स्त्री० [सं० विश ] कमल की जय । भैपीड़। भीखम-संज्ञा पुं० [सं० भीम ] राजा शांतनु के पुत्र भीरम भींगना-कि० अ० दे० "भीगना"। पितामह । भीगी-संज्ञा पुं० [सं० भृगी ] (1) भंवरा । अलि । (२) एक वि० भयानक । डरावना । प्रकार का फतिंगा जिमके विषय में प्रसिद्ध है कि वह किसी भागना-क्रि० अ० [सं० अभ्यज ] पानी या और किसी तरल भी कृमि को अपने रूप में ले आता है। पदार्थ के संयोग के कारण तर होना। आई होना। जैसे, भींचना-क्रि० म० [हिं० वींचना ] (1) खींचना । कसना । वर्षा से कपड़े भीगना। पानी में दवा भीगना । उ॰—गरी दबाना । उ.-स्यों तिय भींचि भुजनि मैं पी ।। (२) भरत मोरी सारी भीगी, भीगी सुरख चुनरिया।--गीत । भूदना । दाँपना । बंद करना । ( आँख के लिये ) मुहा०-भीगी बिल्ली होना-भय आदि के कारण दब जाना । भीजना*-क्रि० अ० [हिं० भीगना ] (1) आर्द्र होना । गीला बिलकुल चुप रहना। होना । तर होना । भीगना । (२) पुलकित वा गद्गद् हो भीचर-संक्षा पुं० [हि० ] सुभट । वीर । जाना । प्रेम मग्न हो जाना । (३) लोगों के साथ हेलमेल भीजना-त्रि० अ० दे० "भींगना" | बढ़ाना। मेल मिलाप पैदा करना । (४) स्नान करना। भीट-संज्ञा पुं० [ देश० ] (१) एवाला ज़मीन । टीलेदार भूमि । नहाना । (५) समा जाना । बुस जाना । उभरी हुई पृथ्वी। (२) वह ऊँची भूमि जहाँ पान की खेती भीट-संज्ञा पुं० दे० "भीट"। होती है। भीटा । (३) एक प्रकार की तील जो प्रायः मन भीत-संज्ञा स्त्री० दे० "भीत"। भर के बराबर होती है। भी संज्ञा स्त्री० [सं०] भय । डर । खौफ। उ०-सुनत आइ भीटन-संशा स्त्री० दे० "भीटा"। ऋषि कुसहरे नरसिंह मंत्र पदि भय भी के।-तुलम्पी। भीटा-संशा पु० [देश॰] (1) आस पास की भूमि से कुछ उभरी अव्य० [हिं० ही. ) (1) अवश्य । निश्चय करके । ज़रूर। . हुई भूमि । ऊँची या टीलेदार ज़मीन । (२) वह बनाई हुई विशेष-स अर्थ में इसका प्रयोग किसी एक पदार्थ या : ऊँची और तालुबाँ ज़मीन जिस पर पान की खेती होती है मनुष्य के साथ दूसरे पदार्थ या मनुष्य का निश्चयपूर्वक और जो चारों ओर से छाजन या लताओं आदि से वकी होना सूचित करता है। जैसे,—(क) सुम्हारे साथ मैं भी हुई होती है। वि० दे० पान"।