पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ५.pdf/२८७

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भुइँदग्धा २५७८ भुग्नवेत्र - रिकती हैं। इसका प्रयोग सनाय के स्थान में होता है। भुखमरा-वि० [हि. भूख+मरना ] (१) जो भूखों मरता हो। इपका एक कार में मिलता जुलता होता है। मरसुक्खा । अक्खड़ । (२) को खाने के पीछे मरा जाता भुइँदग्धा-संज्ञा पुं० [हिं० भुई+दग्ध ] (1) वह फर जो भूमि पर . हो। पेटू। रिता लाने के लिये मृतक के संबंधियों में लिया जाता भुखाना-क्रि० अ० [हिं० भूख ] भूख से पीड़ित होना । भूखा है। मदान का कर । (२) वह फर जो भूमि का मालिक होना । क्षुधित होना। उ०-सुनहु एक दिन एक ठिकाने। किमी व्यवसायी से व्यवसाय करने के लिये ले। गये रावन सखा मुखाने ।-विश्राम । भुईंधरा-संज्ञा पुं० [हिं० भुई+धरना ] आवाँ लगाने की बह भुखालू-वि० [हिं० भूग्व+आल. (प्रत्य॰)] जिस भूख लगी हो। रीति वा दंग जिसके अनुसार दिना गदा खोदे ही भूमि भुखा। उ०-को भी मुखालू और गुस्सैल है।-तुप्रबंध। पर बस्तनों वा अन्य पकाने की चीजों को रखकर आग भुगत-संज्ञा स्त्री० दे० "मुकि"। सुरूगा देते हैं। भुगतना-क्रि० स० [सं० भुक्ति ] महना। मेलना। भोगना। भुनास-संज्ञा पुं० सं० भून्यास ] (1) किसी वस्तु के एफ छोर उ.--(ख) देह धरे का दंश है सब कार को होय । ज्ञानी को भूमि में इस प्रकार दयाकर जमाना कि उसका कुछ भुगते ज्ञान करे अज्ञानी भुगते रोय।-कबीर । (ख) हम अंश पृथ्वी के भीतर गए जाय । तौ पाप कियो भुगते को । पुण्य प्रगट क्यों न्टिर दियो क्रि० प्र०-फरना ।—देना । है। सूरदास प्रभु रूप सुधानिधि पुट थोरो विधि नहीं (२) किवाड़ों की यह सिटकिनी जो नीचे की ओर पत्थर के दियो री।-सूर । (ग) पहले हौं भुगतों जो पाप । तनु पाढे में ठती है। (३) अनार । (४) एक छोटा पौधा जो धरि के सहिही संताय । रूरलू । (घ) और तो लोग बिना का होता और जोर सों में प्रायः उगता है। दुखी अपने दुख मैं भुगत्यों जग क्लेश अपटा।-निश्चल । भुरहार-संज्ञा पुं० [सं० भूमि+हार ] (1) मिरज़ापुर जिले के विशेष-इस क्रिया का प्रयोग 'अनिष्ट' भोग के सहने में दक्षिण भाग में रहने वाली एक अनार्य जाति । (२) दे. होता है। जैस, सजा भुगतना । दुःख भुगतना। संयो० कि-लेना। भुई-संशा स्त्री० [हिं० भूआ ] एफर्कदा जिसे क्लिा भी कहते हैं। मुहा०--झुगत लेना--समझ लेना। निपट लेना । जैसे,- इसके शरीर पर लंबे लंबे बाल होते है जो छ जाने पर शरीर आप चिंता न करें; मैं उनसे भुगत लँगा। में गड़ जाने और खुजलाहट उत्पन्न करते हैं। कमला। , क्रि० अ० (१) पूरा होना । निक्टना । जैसे, देन का भुग- मुली। तना । काम का भुगतना । (२) बीतना । कुकना । जैसे, भुक-संशा पुं० [सं० भुज् ] (1) भोजन । खाद्य । आहार। दिन भुगतना। उ.-ए गुसाईहूँ ऐस बिधाता। जावत जीव बबन मुक भुगतान-संशा पुं० [हिं • भुगतना ] (1) निपटारा । फैसला । (२) दाता।—जायसी । (२) अनि। आग । उ०-अस कहि मूल्य या देन दुकाना। बेबाकी । जैसे, हुंटी का भुगतान। भेक सर्वाना । सुनि समाज सकलौ सुख माना । करड़े का भुगतना । (३) देना । देन । विश्राम।

भुगताना-क्रि० स० [हिं० भुगतना का स० रूप ] (1) भुगतने का

भुक्खड़-वि० [हिं० भूख+अड़ (प्रत्य॰)] (१) जिय भूख लगी। सकर्मक रूप । पूत करना । संपादन करना । 30-धाम हो। भूस्वा । (२) वह जो बहुत खाता हो और जिसे प्राय: धूम मीर औ समीर मिले पाई देह, ऐरो मन कैसे दूत भूख लगी रहती हो । । (३) दरिद्र । कंगाल। फाज भुगतागो। रक्षण सिंह। (२)ताना । लगाना। भुक्त-वि० [सं० ] (१) जो वाया गया हो। भक्षित । (२) भोगा जैसे,--जरासे काम में सारा दिन भुगता दिया। (३) हुन । उपमुक्त। काना देना । बेबाक करना । जैसे, ढुसी भुगताना । (४) भुक्तशेष-संशा पु० [सं०] खाने से घश हुआ। उच्छिष्ट । जूटा। भुगतना का प्रेरणार्थक रूप । दूसरे को भुगतने में प्रवृत्त भुक्ति-संज्ञा स्त्री० [सं० ] (1) भोजन । आहार । (२) विषयो करना। अलाना । भोग कराना। (५) दु:ख देना । दुःख पभोग । लौकिक सुख । (३) धर्मशासानुसार चार प्रकार पहने के लिये याय करना। के प्रमाणों में से एक । कज़ा। दखल : (१) ग्रहों का भुगाना-क्रि० स० [हिं० भोगना का प्रे० रूप ] भोगना का प्रेरणार्थक किसीश में एक एक *श करके गमन वा भोग। रूप। भोग कराना। भुक्तिपात्र-संज्ञा पुं० [सं०] भोजन का पात्र । खाने का भरतन भुगुति*-संज्ञा स्त्री० दे० "भुति"। भुक्तिप्रद-वि० [सं०] [स्त्री० भुक्तिपदा ] भोग देनेवाला भोगदाता। भुन-वि० [सं०] (1) टेवा । वक्र । (२) रोगी । स्म । सीमर । संज्ञा पुं० मूंग। भुग्मनेत्र-संज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का सनिपात जिसमें रोगी